मुस्कान का वरदान दो
“मुस्कान का वरदान दो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि आशा को जीवन-स्वर बनाने की कामना कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
तुम प्रणय दो या न दो पर-
मद भरी मुस्कान का वरदान दे दो।
कंटकों के पंथ से डरता नहीं हूँ
बिजलियों का भय कभी करता नहीं हूँ
क्योंकि मरकर भी कभी मरता नहीं हूँ
इसलिए बढ़ता युगों से आ रहा हूँ
प्रिय मुझे बस पन्थ की पहचान दे दो।
मैं कभी भी आज तक हारा नहीं हूँ
मैं कभी भी भाग्य का मारा नहीं हूँ
पर किसी की आँख का तारा नहीं हूँ
किन्तु अपनी हार पर मेरे लिए तुम
जीत मेरी लो मगर अभिमान दे दो।
स्वप्न अपने मैं मिटाता चल रहा हूँ
मैं स्वयं को ही स्वयं से छल रहा हूँ
किन्तु फिर भी क्यों न जाने पल रहा हूँ
तुम रहो पाषाण ही मेरे लिए पर-
सिर चढ़ाने का मुझे अरमान दे दो।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।