स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (1896)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)
ई. टी. स्टर्डी का मकान,
हाई व्यू, कैवरशम्, रीडिंग,
१८९६
प्रिय शशि,
मुझे स्मरण नहीं है कि मैंने अपने पूर्व पत्र में इसका उल्लेख किया है या नहीं, अतः इस पत्र द्वारा तुम्हें यह सूचित करता हूँ कि काली अपने रवाना होने के दिन अथवा उससे पूर्व श्री ई. टी. स्टर्डी को पत्र डाल दे, ताकि वे जाकर जहाज से उसे लिवा लायें। यह लन्दन शहर मनुष्यों का सागर है – दस-पन्द्रह कलकत्ता इसमें इकट्ठे समा सकते हैं। अतः उस प्रकार की व्यवस्था किये बिना गड़बड़ी होने की सम्भावना है। आने में देरी न हो, पत्र देखते ही उसे निकलने को कहना। शरत् की तरह आने में विलम्ब नहीं होना चाहिए और बाकी बातें स्वयं सोच-विचारकर ठीक कर लेना। काली को जैसे भी ही शीघ्र भेजना। यदि शरत् की तरह आने में बिलम्ब हो तो फिर किसीके आने की आवश्यकता नहीं है – ढुलमुल नीति-वाले आलसी से यह कार्य नहीं हो सकता, यह तो महान् रजो गुण का कार्य है।
तमोगुण से हमारा देश छाया हुआ है – जहाँ देखो वहीं तम; रजोगुण चाहिए, उसके बाद सत्व; वह तो अत्यन्त दूर की बात है।
सस्नेह,
नरेन्द्र