स्वामी विवेकानंद के पत्र – एक अमेरिकन मित्र को लिखित (7 अप्रैल, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का एक अमेरिकन मित्र को लिखा गया पत्र)
सैन फ़्रांसिस्को,
७ अप्रैल, १९००
प्रिय – ,
किन्तु अब मैं इतना निश्चल तथा शान्त हो चुका हूँ, जैसा पहले कभी नहीं रहा। अब मै अपने पैरों पर खड़ा होकर महान् आनन्द के साथ पूर्ण परिश्रम कर रहा हूँ। कर्म में ही मेरा अधिकार है, शेष सब ‘माँ’ जानें।
देखो, जितने दिन यहाँ रहने को मैंने सोचा था, उससे अधिक दिन यहाँ रहकर मुझे कार्य करना होगा – ऐसा प्रतीत हो रहा है। किन्तु तदर्थ तुम विचलित न होना; अपनी सारी समस्याओं का समाधान मैं स्वयं ही कर लूँगा। अब मैं अपने पैरों पर खड़ा हो चुका हूँ एवं मुझे आलोक का भी दर्शन मिल रहा है। सफलता के फलस्वरूप मैं विपथगामी बन जाता और मै सन्यासी हूँ इस मूल बात की ओर सम्भवतः मेरी दृष्टि न रहती। इसलिए माँ मुझे यह शिक्षा दे रही हैं।
मेरी नौका क्रमशः उस शान्त बन्दरगाह को जा रही है, जहाँ से उसे कभी हटना न पड़ेगा। जय, जय माँ! अब मुझे किसी प्रकार की आकांक्षा अथवा कोई उच्चाभिलाषा नहीं है। ‘माँ’ का नाम धन्य हो। मैं श्रीरामकृष्ण देव का दास हूँ। मैं एक साधारण यन्त्र मात्र हूँ – और मैं कुछ नहीं जानता, जानने की भी मेरी कोई इच्छा नहीं है। ‘वाह गुरू की फतह।’