बृहस्पतिवार व्रत कथा – Brihaspativar Vrat Katha
बृहस्पतिवार व्रत कथा के पाठ से सारे पाप-ताप मिट जाते हैं। कहते हैं कि बृहस्पति देव की कथा पढ़ने से सुख-समृद्धि, उन्नति और अन्ततः मुक्ति तक मिल जाती है। पढ़ें बृहस्पतिवार के व्रत की कथा–
बृहस्पतिवार व्रत की विधि
इस दिन बृहस्पतेश्वर महादेव जी की पूजा होती है। दिन में एक समय ही भोजन करें। पीले वस्त्र धारण करें, पीले पुष्पों को धारण करें। भोजन भी चने की दाल का होना चाहिए, नमक नहीं खाना चाहिए। पीले रंग का फूल, चने की दाल, पीले कपड़े तथा पीले चन्दन से पूजा करनी चाहिए।
पूजन के पश्चात् बृहस्पतिवार व्रत कथा (Brihaspativar Vrat Katha) सुननी चाहिए। इस व्रत के करने से नवग्रहों के गुरु बृहस्पति देव अति प्रसन्न होते हैं तथा धन और विद्या का लाभ होता है। स्त्रियों के लिए यह व्रत अति आवश्यक है। इस व्रत में केले का पूजन होता है। आइए, अब पढ़ते हैं बृहस्पतिवार व्रत कथा–
बृहस्पतिवार व्रत कथा
बृहस्पतिवार व्रत कथा ब्रह्महत्या तक के पाप का क्षय करने में सक्षम है। जो नियम-पूर्वक बृहस्पतिवार की कथा पढ़ता है, उसके सारे पाप नष्ट होने लगते हैं। साथ ही उस व्यक्ति को अनन्त पुण्य सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।
एक दिन इन्द्र बड़े अहंकार से अपने सिंहासन पर बैठे थे और बहुत से देवता, ऋषि, गन्धर्व, किन्नर आदि सभा में उपस्थित थे। जिस समय बृहस्पतिजी वहां पर आए तो सबके सब उनके सम्मान के लिए खड़े हो गए परन्तु इन्द्र गर्व के मारे खड़ा न हुआ, यद्यपि वह सदैव उनका आदर किया करता था।
बृहस्पतिजी अपना अनादर समझते हुए वहां से उठकर चले गये। तब इन्द्र को बड़ा शोक हुआ कि देखो मैंने गुरुजी का अनादर कर दिया, मुझ से बड़ी भारी भूल हो गई। गुरुजी के आशीर्वाद से ही मुझको यह वैभव मिला है। उनके क्रोध से यह सब नष्ट हो जायेगा। इसलिये उनके पास जाकर उनसे क्षमा मांगनी चाहिए। जिससे उनका क्रोध शान्त हो जाए और मेरा कल्याण होवे।
ऐसा विचार कर इन्द्र उनके स्थान पर गये। जब बृहस्पतिजी ने अपने योगबल से यह जान लिया कि इन्द्र क्षमा मांगने के लिये यहां आ रहा है तब क्रोधवश उससे भेंट करना उचित न समझकर अन्तर्ध्यान हो गए। जब इन्द्र ने बृहस्पतिजी को घर पर न देखा तब निराश होकर लौट आए।
जब दैत्यों के राजा वृषवर्मा को यह समाचार विदित हुआ तो उसने अपने गुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से इन्द्रपुरी को चारों तरफ से घेर लिया। गुरु की कृपा न होने के कारण देवता हारने व मार खाने लगे। तब उन्होंने ब्रह्माजी को विनयपूर्वक सब वृत्तांत सुनाया और कहा कि महाराज दैत्यों से किसी प्रकार बचाइए।
तब ब्रह्माजी कहने लगे कि तुमने बड़ा अपराध किया है जो गुरुदेव को क्रोधित कर दिया। अब तुम्हारा कल्याण इसी में हो सकता है कि त्वष्टा ब्राह्मण का पुत्र विश्वरूपा बड़ा तपस्वी और ज्ञानी है। उसे अपना पुरोहित बनाओ तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है। यह वचन सुनते ही इन्द्र त्वष्टा के पास गये और बड़े विनीत भाव से त्वष्टा से कहने लगे कि आप हमारे पुरोहित बनिये, जिससे हमारा कल्याण हो। तब त्वष्टा ने उत्तर दिया कि पुरोहित बनने से तपोबल घट जाता है परन्तु तुम बहुत बिनती करते हो, इसलिए मेरा पुत्र विश्वरूपा पुरोहित बनकर तुम्हारी रक्षा करेगा।
विश्वरूपा ने पिता की आज्ञा से पुरोहित बनकर ऐसा यत्न किया कि भगवान हरि की इच्छा से इन्द्र वृषवर्मा को युद्ध में जीतकर अपने इन्द्रासन पर स्थित हुआ। विश्वरूपा के तीन मुख थे। एक मुख से वह सोमवल्ली लता का रस निकाल पीते थे। दूसरे मुख से वह मदिरा पीते और तीसरे मुख से अन्नादि भोजन करते। इन्द्र ने कुछ दिनों उपरान्त कहा कि मैं आपकी कृपा से यज्ञ करना चाहता हूं।
बृहस्पतिवार व्रत कथा (Brihaspati Vrat Katha) के अनुसार जब विश्वरूपा की आज्ञानुसार यज्ञ प्रारम्भ हो गया, तब एक दैत्य ने विश्वरूपा से कहा कि तुम्हारी माता दैत्य की कन्या है। इस कारण हमारे कल्याण के निमित्त एक आहुती दैत्यों के नाम पर भी दे दिया करो तो अति उत्तम बात है। विश्वरूपा उस दैत्य का कहा मानकर आहुति देते समय दैत्य नाम भी धीरे से लेने लगा। इसी कारण यज्ञ करने से देवताओं का तेज नहीं बढ़ा।
इन्द्र ने यह वृतांत जानते ही क्रोधित होकर विश्वरूपा के तीन सर काट डाले। मद्यपान करने से भंवरा, सोमवल्ली पीने से कबूतर और अन्न खाने के मुख से तीतर बन गया।
विश्वरूपा के मरते ही इन्द्र का स्वरूप ब्रह्महत्या के प्रभाव से बदल गया। देवताओं के एक वर्ष पश्चाताप करने पर भी ब्रह्महत्या का वह पाप न छूटा तो सब देवताओं के प्रार्थना करने पर ब्रह्माजी बृहस्पतिजी के सहित वहां आए।
उस ब्रह्महत्या के चार भाग किये। बृहस्पति देव की कथा के अनुसार उनमें से एक भाग पृथ्वी को दिया। इसी कारण कहीं-कहीं धरती ऊँची-नीची और बीज बोने के लायक भी नहीं होती। साथ ही ब्रह्माजी ने यह वरदान दिया जहां पृथ्वी में गड्ढा होगा, कुछ समय पाकर स्वयं भर जाएगा।
दूसरा वृक्षों को दिया, जिससे उनमें से गोंद बनकर बहता है। इस कारण गूगल के अतिरिक्त सब गोंद अशुद्ध समझे जाते हैं। वृक्षों को यह वरदान दिया कि ऊपर से सूख जाने पर जड़ फिर फूट जाती है।
तीसरा भाग स्त्रियों को दिया, इसी कारण स्त्रियाँ हर महीने रजस्वला होकर चौथे दिन शुद्ध होती हैं और सन्तान प्राप्ति का उनको वरदान दिया। चौथा भाग जल को दिया जिससे फेन और सिवाल आदि जल के ऊपर आ जाते हैं। जल को यह वरदान मिला कि जिस चीज में डाला जाएगा, वह बोझ में बढ़ जायेगी।
इस प्रकार इन्द्र को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त किया। जो मनुष्य इस बृहस्पतिवार व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है उसके सब पाप बृहस्पतिजी महाराज की कृपा से नष्ट होते हैं। बृहस्पतिवार व्रत कथा (brihaspati Katha) का नियमित पाठ संसार में यश और उन्नति भी प्रदान करता है।
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