धरा पर चरन तो धरो
“धरा पर चरन तो धरो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि वास्तविकता के धरातल पर रहने का आह्वान कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें “धरा पर चरन तो धरो” का–
उड़ लिए बहुत ही कल्पना लोक में,
आदमी हो धरा पर चरन तो धरो।
व्यर्थ ही लुट न जाए कहीं काफिला,
पौंछ आँसू किसी को नमन तो करो।
क्या हुआ जो सगाई हुई प्यार से
जो घृणा द्वार से लौट पायी नहीं ।
क्या हुआ जो बरसते रहे रात-दिन,
सीप ने एक भी बूँद पायी नहीं।
सूख जाये कहीं ये न क्आरी फसल,
अश्रु-जल से तनिक तुम नयन तो भरो।
पुष्प-शैय्या सजाते रहे क्या हुआ
दर्द सूखी धरा पर अगर सो गया
हम बढ़ाते रहे चीर तो भी अरे
द्रौपदी का बदन निर्वसन हो गया।
रह न जाए बिखर कर कहीं स्वप्न सब,
तुम नयी अब दिशाएँ चयन तो करो।
रूढ़ियाँ तोड़ कर मोड़ दो हर डगर
मुश्किलों को बना दो कड़ी गीत की
फिर पपीहा कोई ना प्रतीक्षा करे
हो न चिन्ता कभी हार या जीत की।
ऋतु बसन्ती रहे कूकती कोकिला,
हर वियावान को तुम चमन तो करो।
दर्द और प्यार मिल करके खेलें नहीं
तो मिलन की अधूरी कहानी रही
खेल पायें न अरमान होली कभी
व्यर्थ ही वह जवानी, जवानी रही।
लाश नंगी न जायें कोई घाट तक
बेकफन के लिए तुम कफन तो करो।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।