ज्ञान प्रदीप जलाओ
“ज्ञान प्रदीप जलाओ” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। सन् 1956 में लिखी गयी इस कविता में कठिन समय के अंधेरे में ज्ञान-ज्योति जलाने का आह्वान है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
जीवन की उलझन सुलझाओ।
प्रलय घटा बनकर घुमड़े दुःख,
हृदय गगन में गहन अँधेरा।
नहीं दिखायी पड़ता मुझको,
सुख का कितनी दूर सवेरा।
ज्योतित कर दो जो अन्तर्तम
आकर ज्ञान प्रदीप जलाओ।
जीवन की उलझन सुलझाओ।
भव सागर में जीवन-नौक
कब की पड़ी थपेड़े खाती
भीषण गर्जन-तर्जन करती
क्षुब्ध तरंगें रोष दिखाती
बीच भँवर में हाथ थके हैं
अब करुणाकर पार लगाओ
जीवन की उलझन सुलझाओ।
देखो तो मैं दीन त्रस्त अति
कब का तुम्हें पुकार रहा हूँ
अपने अश्रु भरे नयनों से
कब का तुम्हें निहार रहा हूँ
युग-युग से शापित जीवन को
आकर के वरदान बनाओ।
जीवन की उलझन सुलझाओ।
(सन् 1956)
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।