कविता

जंगल जंगल बात चली है – Jungle Jungle Baat Chali Hai Lyrics – The Jungle Book

“जंगल जंगल बात चली है” भारतीय टेलीविजन धारावाहिक “द जंगल बुक” का प्रसिद्ध थीम गीत है, जो 1990 के दशक में प्रसारित हुआ था। विशाल भारद्वाज द्वारा रचित और गुलज़ार द्वारा लिखित, इस गीत ने बच्चों और वयस्कों के बीच समान रूप से बहुत लोकप्रियता हासिल की थी। इसमें रुडयार्ड किपलिंग की क्लासिक किताब के मुख्य पात्र मोगली को उसके पशु मित्रों के साथ दिखाया गया है। मधुर धुन और आकर्षक गीत जंगल के रोमांच और चमत्कारों के बारे में बताते हैं। अपनी सरल लेकिन मनमोहक धुन के साथ, “जंगल जंगल बात चली है” एक लोकप्रिय गीत बना हुआ है ।

जंगल जंगल बात चली हैं
पता चला है..
जंगल जंगल बात चली हैं
पता चला है..

अरे चड्डी पहन के फूल खिला हैं
फूल खिला है
अरे चड्डी पहन के फूल खिला हैं
फूल खिला है

जंगल जंगल पता चला है,
चड्डी पहन के फूल खिला है
जंगल जंगल पता चला है,
चड्डी पहन के फूल खिला है

एक परिंदा हैं शर्मिंदा,
था वो नंगा
भाई इससे तो अंडे के अंदर,
था वो चंगा

सोच रहा है बाहर आखिर
क्यों निकला है
अरे चड्डी पहन के फूल खिला है
फूल खिला है

विदेशों में जा बसे बहुत से देशवासियों की मांग है कि हम इस गीत को देवनागरी हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी / रोमन में भी प्रस्तुत करें ताकि वे भी इस गाने को पढ़ सकें व आनंद ले सकें। पढ़ें यह Mowgli Theme Song रोमन में-

Read Jungle Jungle Baat Chali Hai Lyrics

jaṃgala jaṃgala bāta calī haiṃ
patā calā hai..
jaṃgala jaṃgala bāta calī haiṃ
patā calā hai..

are caḍḍī pahana ke phūla khilā haiṃ
phūla khilā hai
are caḍḍī pahana ke phūla khilā haiṃ
phūla khilā hai

jaṃgala jaṃgala patā calā hai,
caḍḍī pahana ke phūla khilā hai
jaṃgala jaṃgala patā calā hai,
caḍḍī pahana ke phūla khilā hai

eka pariṃdā haiṃ śarmiṃdā,
thā vo naṃgā
bhāī isase to aṃḍe ke aṃdara,
thā vo caṃgā

soca rahā hai bāhara ākhira
kyoṃ nikalā hai
are caḍḍī pahana ke phūla khilā hai
phūla khilā hai

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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