माँ काली (अमृत ध्वनि छन्द)
“माँ काली (अमृत ध्वनि छन्द)” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया “नवल” द्वारा ब्रज भाषा में रचित माँ काली को समर्पित कविता है। इस अद्भुत कविता का आनन्द लें–
बन्दहुँ माता कालिका कर कपाल गल-मुण्ड।
जुद्ध-क्रुद्ध मर्दति अरिन फफ् फफ् फड़कत रुण्ड॥
फफ् फफ् करि अति दद् दद् दरि अति
थथ्थरात खल
देखत चकित भट्टवर डरिय
विखण्डति अरिदल
कटकटाति रद, व्यक्त रक्त भरि
कट्टति बन्धहु
भव भय भंजनि जन-जन रंजनि
चण्डिहि बन्दहुँ
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कोऊ कहै मुंडमाली कपाली औ गौरी, शिवा, वरबंडिका कोऊ ।
कोऊ सयानी मृडानी कहै जगदम्बिका, अम्बिका, चण्डिका कोऊ।
शुम्भ निशुम्भनि मर्दिनि खंडिनि चण्ड महासुर दंडिका कोऊ।
कोऊ कहै महिसासुर घातिनि वासिनि सैल की मण्डिका कोऊ
सर्वा कहै सर्वानी कोऊ भय भजिनि कोऊ कहै गिरिवानी,
त्र्यक्षा त्रिरूपा पुकार कोऊ कहि भीमा मतंगिनि मातु भवानी।
कोऊ अपारा शिवा जी कहि टेरतु कोऊ महेशी कहै मघवानी।
मेरे हिए में रहौ दिन राति माता काली कराली बनी वरदानी।
जो कोऊ टेरतु तोहि गरीब रहें धनदा बनि बाकैं भवानी।
दुर्गति दूरि करै पलमें निज सेवक की दुर्गा महारानी।
बंदत ही पद पद्म के देति महा मतिमंदिनि मातु शिवानी।
होउ कृपालु हरौ कलि क्लेसनि काली कराली बनी बरदानी।
आनन भीषण भैरव-भेष कराल त्रिशूल सुशोभित हाथ में।
सिंह चढ़ी कर में करवाल दहाड़ति आवति लाँगुरा साथ में।
काटति मुण्ड झपट्टि अरीन के पीवति रक्त लगावति गात में।
भक्तनि को, फल चारहु देति शिवा जगदम्बिका बात की बात में।
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स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।