धर्म

साईनाथ अष्टकम – Sainatha Ashtakam

पढ़ें “साईनाथ अष्टकम”

पत्रिग्राम समुद्भूतं द्वारकामायि वासिनं
भक्ताभीष्टप्रदं देवं सायिनाथं नमाम्यहम् ॥ 1 ॥

महोन्नत कुलेजातं क्षीराम्बुधि समे शुभे
द्विजराजं तमोघ्नं तं सायिनाथं नमाम्यहम् ॥ 2 ॥

जगदुद्धारणार्थं यो नररूपधरो विभुः
योगिनं च महात्मानं सायिनाथं नमाम्यहम् ॥ 3 ॥

साक्षात्कारे जये लाभे स्वात्मारामो गुरोर्मुखात्
निर्मलं मम गात्रं च सायिनाथं नमाम्यहम् ॥ 4 ॥

यस्य दर्शन मात्रेण नश्यन्ति व्याधि कोटयः
सर्वे पापाः प्रणश्यन्ति सायिनाथं नमाम्यहम् ॥ 5 ॥

नरसिंहादि शिष्याणां ददौ योऽनुग्रहं गुरुः
भवबन्धापहर्तारं सायिनाथं नमाम्यहम् ॥ 6 ॥

धनाढ्यान् च दरिद्रान्यः समदृष्ट्येव पश्यति
करुणासागरं देवं सायिनाथं नमाम्यहम् ॥ 7 ॥

समाधिस्थोपि यो भक्त्या समतीर्थार्थदानतः
अचिन्त्य महिमानन्तं सायिनाथं नमाम्यहम् ॥ 8 ॥

इथी श्री सायिनाथ अष्टकम्

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर साईनाथ अष्टकम को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें साईं अष्टकम रोमन में–

Read Sainatha Ashtakam

patrigrāma samudbhūtaṃ dvārakāmāyi vāsinaṃ
bhaktābhīṣṭapradaṃ devaṃ sāyināthaṃ namāmyaham ॥ 1 ॥

mahonnata kulejātaṃ kṣīrāmbudhi same śubhe
dvijarājaṃ tamoghnaṃ taṃ sāyināthaṃ namāmyaham ॥ 2 ॥

jagaduddhāraṇārthaṃ yo nararūpadharo vibhuḥ
yoginaṃ ca mahātmānaṃ sāyināthaṃ namāmyaham ॥ 3 ॥

sākṣātkāre jaye lābhe svātmārāmo gurormukhāt
nirmalaṃ mama gātraṃ ca sāyināthaṃ namāmyaham ॥ 4 ॥

yasya darśana mātreṇa naśyanti vyādhi koṭayaḥ
sarve pāpāḥ praṇaśyanti sāyināthaṃ namāmyaham ॥ 5 ॥

narasiṃhādi śiṣyāṇāṃ dadau yo’nugrahaṃ guruḥ
bhavabandhāpahartāraṃ sāyināthaṃ namāmyaham ॥ 6 ॥

dhanāḍhyān ca daridrānyaḥ samadṛṣṭyeva paśyati
karuṇāsāgaraṃ devaṃ sāyināthaṃ namāmyaham ॥ 7 ॥

samādhisthopi yo bhaktyā samatīrthārthadānataḥ
acintya mahimānantaṃ sāyināthaṃ namāmyaham ॥ 8 ॥

ithī śrī sāyinātha aṣṭakam

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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