श्री गंगाजी महिमा
“श्री गंगाजी महिमा” स्व श्री नवल सिंह भदौरिया “नवल” द्वारा ब्रज भाषा में रचित गंगा मैया को समर्पित कविता है। आनन्द लें–
ब्रह्म कमण्डल तें निकसी अरु,
सीस गिरीश बिहार कियौ है।
धेनु दुधारहु ते अगरी-
सुरवृक्ष कौ मान उतारि दियौ है।
कोटिक हू कलिकाल के पाप,
नसात, जो नेंक निहारि लियौ है।
पानि में पानि छुआवत ही,
भवसागर तें नर तारि दियौ है।
ध्यान धरें तें मिटें सब पाप,
प्रताप तिहारौ दसौं दिशि छायौ।
पाँव उठावत मारग में कटि-
जात त्रिताप सुवेदनि गायौ।
तीर में पहुँचत पीर हरै अरु,
नीर छुएँ सुख होत सवायौ।
धार में पैठि नहात जो गंग-
तरंग तिन्हे सुरलोक पठायौ।
तीन-तीन लोकन को सीतल करन वारी,
कोऊ सरिता हू सरिता की ना करैया है
हरि पद ठाँउ नाँव सुरसरि जानें सब,
सुधा के समान दुख दारिद हरैया हैं।
भागीरथ तप की पताका बनी लहराति,
हेरी मातु गंगे! तू ही विपति टरैया है।
जोग-जग्य, जप-तप कोऊ ना समान याके,
जाह्नवी जमाति जमराज की मरैया है।
भाल में बिराजै आगि कालकूट कंठ धर्यौ,
तन में विभूति आभूषण हैं भुजंगा के।
भूत-प्रेत जोगिनी-जमाति जुरि नाचें तहाँ,
घर में न खाक खाइबे कौं नेंक नंगा के।
अम्बर दिगम्बर बघम्बर क्यों बाँधे कटि,
आक औ धतूरा खाय गोला हरी भंगा के।
देतौ दान कैसें कैसें महादेव होतौ निज
सीस पै न होती जो पै गंगा अरधंगा के।
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स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।
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