धर्म

सूरह ता. हा. हिंदी में – सूरह 20

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

ता० हा०। हमने कुरआन तुम पर इसलिए नहीं उतारा कि तुम मुसीबत में पड़ जाओ। बल्कि ऐसे शख़्स की नसीहत के लिए जो डरता हो। यह उसकी तरफ़ से उतारा गया है जिसने ज़मीन को और ऊंचे आसमानों को पैदा किया है। वह रहमत वाला है, अर्श पर क़ायम है। उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और जो इन दोनों के दर्मियान है और जो कुछ ज़मीन के नीचे है। (1-6)

और तुम चाहे अपनी बात पुकार कर कहो, वह चुपके से कही हुई बात को जानता है। और इससे ज़्यादा छुपी बात को भी। वह अल्लाह है। उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। तमाम अच्छे नाम उसी के हैं। (7-8)

और क्या तुम्हें मूसा की बात पहुंची है। जबकि उसने एक आग देखी तो अपने घर वालों से कहा कि ठहरो, मैंने एक आग देखी है, शायद मैं उसमें से तुम्हारे लिए एक अंगारा लाऊं या उस आग पर मुझे रास्ते का पता मिल जाए। (9-10)

फिर जब वह उसके पास पहुंचा तो आवाज़ दी गई कि ऐ मूसा। मैं ही तुम्हारा रब हूं, पस तुम अपने जूते उतार दो क्योंकि तुम तुवा की मुक़दृदस (पवित्र) वादी में हो। और मैंने तुम्हें चुन लिया है। पस जो “वही” (प्रकाशना) की जा रही है उसे सुनो। मैं ही अल्लाह हूं। मेरे सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। पस तुम मेरी ही इबादत करो और मेरी याद के लिए नमाज़ क़ायम करो। बेशक क्रियामत आने वाली है। मैं उसे छुपाए रखना चाहता हूं। ताकि हर शख्स को उसके किए का बदला मिले। पस इससे तुम्हें वह शख्स ग़ाफ़िल न कर दे जो इस पर ईमान नहीं रखता और अपनी ख़्वाहिशों पर चलता है कि तुम हलाक हो जाओ। (11-16)

और यह तुम्हारे हाथ में क्या है ऐ मूसा, उसने कहा, यह मेरी लाठी है। मैं इस पर टेक लगाता हूं और इससे अपनी बकरियों के लिए पत्ते झाड़ता हूं। इसमें मेरे लिए दूसरे काम भी हैं। फ़रमाया कि ऐ मूसा इसे ज़मीन पर डाल दो। उसने उसे डाल दिया तो यकायक वह एक दौड़ता हुआ सांप बन गया। फ़रमाया कि इसे पकड़ लो और मत डरो, हम फिर इसे इसकी पहली हालत पर लौटा देंगे। (17-21)

और तुम अपना हाथ अपनी बग़ल से मिला लो, वह चमकता हुआ निकलेगा बगैर किसी ऐब के। यह दूसरी निशानी है। ताकि हम अपनी बड़ी निशानियों में से कुछ निशानियां तुम्हें दिखाएं। तुम फ़िरऔन के पास जाओ। वह हद से निकल गया है। (22-24)

मूसा ने कहा कि ऐ मेरे रब, मेरे सीने को मेरे लिए खोल दे। और मेरे काम को मेरे लिए आसान कर दे। और मेरी ज़बान की गिरह खोल दे | ताकि लोग मेरी बात समझें। और मेरे ख़ानदान से मेरे लिए एक मुआविन (सहायक) मुक़र्रर कर दे, हारून को जो मेरा भाई है। उसके ज़रिए से मेरी कमर को मज़बूत कर दे। और उसे मेरे काम में शरीक कर दे ताकि हम दोनों कसरत (अधिकता) से तेरी पाकी बयान करें और कसरत से तेरा चर्चा करें। बेशक तू हमें देख रहा है। फ़रमाया कि दे दिया गया तुम्हें ऐ मूसा तुम्हारा सवाल। (25-36)

और हमने तुम्हारे ऊपर एक बार और एहसान किया है जबकि हमने तुम्हारी मां की तरफ़ वही” (प्रकाशना) की जो “वही” की जा रही है, कि उसे संदूक़ में रखो, फिर उसे दरिया में डाल दो, फिर दरिया उसे किनारे पर डाल दे। उसे एक शख्स उठा लेगा जो मेरा भी दुश्मन है और उसका भी दुश्मन है। और मैंने अपनी तरफ़ से तुम पर एक मुहब्बत डाल दी। और ताकि तुम मेरी निगरानी में परवरिश पाओ। जबकि तुम्हारी बहिन चलती हुई आई, फिर वह कहने लगी, क्या मैं तुम लोगों को उसका पता दूं जो इस बच्चे की परवरिश अच्छी तरह करे। पस हमने तुम्हें तुम्हारी मां की तरफ़ लौटा दिया ताकि उसकी आंख ठंडी हो और उसे ग़म न रहे। और तुमने एक शख्स को क़त्ल कर दिया। फिर हमने तुम्हें इस ग़म से नजात दी। और हमने तुम्हें ख़ूब जांचा। फिर तुम कई साल मदयन वालों में रहे। फिर तुम एक अंदाज़े पर आ गए ऐ मूसा। (37-40)

और मैंने तुम्हें अपने लिए मुंत॒खब किया। जाओ तुम और तुम्हारा भाई मेरी निशानियों के साथ। और तुम दोनों मेरी याद में सुस्ती न करना। तुम दोनों फ़िरऔन के पास जाओ कि वह सरकश हो गया है। पस उससे नर्मी के साथ बात करना, शायद वह नसीहत क़ुबूल करे या डर जाए। (41-44)

दोनों ने कहा कि ऐ हमारे रब, हमें अंदेशा है कि वह हम पर ज़्यादती करे या सरकशी करने लगे। फ़रमाया कि तुम अंदेशा न करो। मैं तुम दोनों के साथ हूं, सुन रहा हूं और देख रहा हूं। पस तुम उसके पास जाओ और कहो कि हम दोनों तेरे रब के भेजे हुए हैं, पस तू बनी इस्राईल को हमारे साथ जाने दे। और उन्हें न सता। हम तेरे रब के पास से एक निशानी भी लाए हैं। और सलामती उस शख्स के लिए है जो हिदायत की पैरवी करें। हम पर यह “वही” (प्रकाशना) की गई है कि उस शख्स पर अज़ाब होगा जो झुठलाए और एराज़ (उपेक्षा) करे। (45-48

)

फ़िरऔन ने कहा, फिर तुम दोनों का रब कौन है, ऐ मूसा। मूसा ने कहा, हमारा रब वह है जिसने हर चीज़ को उसकी सूरत अता की, फिर रहनुमाई फ़रमाई | फ़िरऔन ने कहा, फिर अगली क़ौमों का क्या हाल है। मूसा ने कहा। इसका इल्म मेरे रब के पास एक दफ़्तर में है। मेरा रब न ग़लती करता है और न भूलता है। (49-52)

वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन का फ़र्श बनाया। और उसमें तुम्हारे लिए राहें निकालीं और आसमान से पानी उतारा | फिर हमने उसके ज़रिए से मुख्तलिफ़ क़िस्म की नबातात (पौधें) पैदा कीं। खाओ और अपने मवेशियों को चराओ। इसके अंदर अक़्ल वालों के लिए निशानियां हैं। उसी से हमने तुम्हें पैदा किया है और उसी में हम तुम्हें लौटाएंगे और उसी से हम तुम्हें दुबारा निकालेंगे। (53-55)

और हमने फ़िरऔन को अपनी सब निशानियां दिखाईं तो उसने झुठलाया और इंकार किया। उसने कहा कि ऐ मूसा, क्‍या तुम इसलिए हमारे पास आए हो कि अपने जादू से हमें हमारे मुल्क से निकाल दो। तो हम तुम्हारे मुक़ाबले में ऐसा ही जादू लाएंगे। पस तुम हमारे और अपने दर्मियान एक वादा मुक़र्रर कर लो, न हम उसके ख़िलाफ़ करें और न तुम। यह मुक़ाबला एक हमवार (खुले) मैदान में हो। (56-58)

मूसा ने कहा, तुम्हारे लिए वादे का दिन मेले वाला दिन है और यह कि लोग दिन चढ़े तक जमा किए जाएं। फ़िरऔन वहां से हटा, फिर अपने सारे दाव जमा किए, इसके बाद वह मुक़ाबले पर आया। मूसा ने कहा कि तुम्हारा बुरा हो अल्लाह पर झूठ न बांधों कि वह तुम्हें किसी आफ़त से ग़ारत कर दे। और जिसने ख़ुदा पर झूठ बांधा वह नाकाम हुआ। (59-61)

फिर उन्होंने अपने मामले में इख़्तेलाफ़ (मतभेद) किया। और उन्होंने चुपके-चुपके बाहम मश्विरा किया। उन्होंने कहा ये दोनों यक्नीनन जादूगर हैं, वे चाहते हैं कि अपने जादू के ज़ोर से तुम्हें तुम्हारे मुल्क से निकाल दें और तुम्हारे उम्दा तरीक़े का ख़ात्मा कर दें। पस तुम अपनी तदबीरें इकट्ठा करो। फिर मुत्तहिद होकर आओ और वही जीत गया जो आज ग़ालिब रहा। (62-64)

उन्होंने कहा कि ऐ मूसा या तो तुम डालो या हम पहले डालने वाले बनें। मूसा ने कहा कि तुम ही पहले डालो तो यकायक उनकी रस्सियां और उनकी लाठियां उनके जादू के ज़ोर से उसे इस तरह दिखाई दीं गोया कि वे दौड़ रही हैं। पस मूसा अपने दिल में कुछ डर गया। हमने कहा कि तुम डरो नहीं तुम ही ग़ालिब रहोगे। और जो तुम्हारे दाहिने हाथ में है उसे डाल दो, वह उन्हें निगल जाएगा जो उन्होंने बनाया है। यह जो कुछ उन्होंने बनाया है यह जादूगर का फ़रेब है। और जादूगर कभी कामयाब नहीं होता, चाहे वह कैसे आए। पस जादूगर सज्दे में गिर पड़े। उन्होंने कहा कि हम हारून और मूसा के रब पर ईमान लाए। (65-70)

फ़िरऔन ने कहा कि तुमने उसे मान लिया इससे पहले कि मैं तुम्हें इजाज़त देता। वही तुम्हारा बड़ा है जिसने तुम्हें जादू सिखाया है। तो अब मैं तुम्हारे हाथ और पांव मुख़ालिफ़ सम्तों से कटवाऊंगा। और मैं तुम्हें खजूर के तनों पर सूली दूंगा। और तुम जान लोगे कि हम में से किस का अज़ाब ज़्यादा सख्त है और ज़्यादा देर तक रहने वाला है। (71)

जादूगरों ने कहा कि हम तुझे हरगिज़ उन दलाइल (स्पष्ट प्रमाणों) पर तरजीह नहीं देंगे जो हमारे पास आए हैं। और उस ज़ात पर जिसने हमें पैदा किया है, पस तुझे जो कुछ करना है उसे कर डाल। तुम इसी दुनिया की ज़िंदगी का कर सकते हो। हम अपने रब पर ईमान लाए ताकि वह हमारे गुनाहों को बख़्श दे और उस जादू को भी जिस पर तुमने हमें मजबूर किया। और अल्लाह बेहतर है और बाक़ी रहने वाला है। (72-73)

बेशक जो शख्स मुजरिम बनकर अपने रब के सामने हाज़िर होगा तो उसके लिए जहन्नम है, उसमें वह न मरेगा और न जिएगा। और जो शख्स अपने रब के पास मोमिन होकर आएगा जिसने नेक अमल किए हों, तो ऐसे लोगों के लिए बड़े ऊंचे दर्जे हैं। उनके लिए हमेशा रहने वाले बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें जारी होंगी। वे उनमें हमेशा रहेंगे। और यह बदला है उस शख्स का जो पाकीज़गी इख़्तियार करे। (74-76)

और हमने मूसा को “वही” (प्रकाशना) की कि रात के वक़्त मेरे बंदों को लेकर निकलो। फिर उनके लिए समुद्र में सूखा रास्ता बना लो, तुम न तआक्रुब (पीछा करने) से डरो और न किसी और चीज़ से डरो। फिर फ़िरऔन ने अपने लक्करों के साथ उनका पीछा किया फिर उन्हें समुद्र के पानी ने ढांप लिया। जैसा कि ढांप लिया और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को गुमराह किया और उसे सही राह न दिखाई। (77-79)

ऐ बनी इस्राईल हमने तुम्हें तुम्हारे दुश्मन से नजात दी और तुमसे तूर के दाई जानिब वादा ठहराया। और हमने तुम्हारे ऊपर मन्‍न और सलवा उतारा। खाओ हमारी दी हुई पाक रोज़ी और उसमें सरकशी न करो कि तुम्हारे ऊपर मेरा ग़ज़ब नाज़िल हो। और जिस पर मेरा ग़ज़ब उतरा वह तबाह हुआ। अलबत्ता जो तौबा करे और ईमान लाए और नेक अमल करे और सीधी राह पर रहे तो उसके लिए मैं बहुत ज़्यादा बख्शने वाला हूं। (80-82)

और ऐ मूसा, अपनी क़ौम को छोड़कर जल्द आने पर तुम्हें किस चीज़ ने उभारा। मूसा ने कहा, वे लोग भी मेरे पीछे ही हैं। और मैं ऐ मेरे रब, तेरी तरफ़ जल्द आ गया ताकि तू राज़ी हो। फ़रमाया तो हमने तुम्हारी क़ौम को तुम्हारे बाद एक फ़ितने में डाल दिया। और सामिरी ने उसे गुमराह कर दिया। (83-85)

फिर मूसा अपनी क़ौम की तरफ़ गुस्से और रंज में भरे हुए लौटे। उन्होंने कहा कि ऐ मेरी क़ौम क्या तुमसे तुम्हारे रब ने एक अच्छा वादा नहीं किया था। क्या तुम पर ज़्यादा ज़माना गुज़र गया। या तुमने चाहा कि तुम्हारे ऊपर तुम्हारे रब का ग़ज़ब (प्रकोप) नाज़िल हो, इसलिए तुमने मुझसे वादाख़िलाफ़ी की। (86)

उन्होंने कहा कि हमने अपने इख़्तियार से आपके साथ वादाख़िलाफ़ी नहीं की। बल्कि क़ौम के ज़ेवरात का बोझ हमसे उठवाया गया था तो हमने उसे फेंक दिया। फिर इस तरह सामरी ने ढाल लिया। पस उसने उनके लिए एक बछड़ा बरामद कर दिया। एक मूर्ति जिससे बैल की सी आवाज़ निकलती थी। फिर उसने कहा कि यह तुम्हारा माबूद (पूज्य) है और मूसा का माबूद भी, मूसा इसे भूल गए। क्‍या वे देखते न थे कि न वह किसी बात का जवाब देता है और न कोई नफ़ा या नुक़्सान पहुंचा सकता है। (87-89)

और हारून ने उनसे पहले ही कहा था कि ऐ मेरी क़ौम, तुम इस बछड़े के ज़रिए से बहक गए हो और तुम्हारा रब तो रहमान है। पस मेरी पैरवी करो और मेरी बात मानो। उन्होंने कहा कि हम तो इसी की परस्तिश (पूजा) में लगे रहेंगे जब तक कि मूसा हमारे पास लौट न आए। (90-94)

मूसा ने कहा कि ऐ हारून, जब तूने देखा कि वे बहक गए हैं तो तुम्हें किस चीज़ ने रोका कि तुम मेरी पैरवी करो। क्या तुमने मेरे कहने के ख़िलाफ़ किया। हारून ने कहा कि ऐ मेरी मां के बेटे, तुम मेरी दाढ़ी न पकड़ो और न मेरा सर। मुझे यह डर था कि तुम कहोगे कि तुमने बनी इस्राईल के दर्मियान फूट डाल दी और मेरी बात का लिहाज़ न किया। (92-94)

मूसा ने कहा कि ऐ सामरी, तुम्हारा क्या मामला है। उसने कहा कि मुझे वह चीज़ नज़र आई जो दूसरों को नज़र नहीं आई तो मैंने रसूल के नक़्शेक्दम (पद चिन्हों) से एक मुट्ठी उठाई और वह इसमें डाल दी। मेरे नफ़्स (अंतःकरण) ने मुझे ऐसा ही समझाया। मूसा ने कहा कि दूर हो। अब तेरे लिए ज़िंदगी भर यह है कि तू कहे कि मुझे न छूना। और तेरे लिए एक और वादा है जो तुझसे टलने वाला नहीं। और तू अपने इस माबूद (पूज्य) को देख जिस पर तू बराबर मोअतकिफ़ (एकाग्र) रहता था, हम उसे जलाएंगे फिर उसे दरिया में बिखेर कर बहा देंगे। तुम्हारा माबूद तो सिर्फ़ अल्लाह है उसके सिवा कोई माबूद नहीं। उसका इल्म हर चीज़ पर हावी है। (95-98)

इसी तरह हम तुम्हें उनके अहवाल (वृत्तांत) सुनाते हैं जो पहले गुज़र चुके। और हमने तुम्हें अपने पास से एक नसीहतनामा दिया है। जो इससे एराज़ (उपेक्षा) करेगा वह क़ियामत के दिन एक भारी बोझ उठाएगा। वे उसमें हमेशा रहेंगे और यह बोझ क्रियामत के दिन उनके लिए बहुत बुरा होगा। जिस दिन सूर में फूंक मारी जाएगी और मुजरिमों को उस दिन हम इस हाल में जमा करेंगे कि ख़ौफ़ से उनकी आंखें नीली होंगी। आपस में चुपके-चुपके कहते होंगे कि तुम सिर्फ़ दस दिन रहे होगे। हम ख़ूब जानते हैं जो कुछ वे कहेंगे। जबकि उनका सबसे ज़्यादा वाक़िफ़कार कहेगा कि तुम सिर्फ़ एक दिन ठहरे। (99-104)

और लोग तुमसे पहाड़ों की बाबत पूछते हैं। कहो कि मेरा रब उन्हें उड़ाकर बिखेर देगा। फिर ज़मीन को साफ़ मैदान बनाकर छोड़ देगा। तुम इसमें न कोई कजी (टेढ़) देखोगे और न कोई ऊंचान। उस दिन सब पुकारने वाले के पीछे चल पड़ेंगे। ज़रा भी कोई कजी न होगी। तमाम आवाज़ें रहमान के आगे दब जाएंगी। तुम एक सरसराहट के सिवा कुछ न सुनोगे। (105-108)

उस दिन सिफ़ारिश नफ़ा न देगी मगर ऐसा शख्स जिसे रहमान ने इजाज़त दी हो और उसके लिए बोलना पसंद किया हो। वह सबके अगले और पिछले अहवाल को जानता है। और उनका इल्म उसका इहाता नहीं कर सकता। और तमाम चेहरे उस ह्य व क्रय्यूम (जीवंत एवं शाश्वत) के सामने झुके होंगे। और ऐसा शख्स नाकाम रहेगा जो ज़ुल्म लेकर आया होगा। और जिसने नेक काम किए होंगे और वह ईमान भी रखता होगा तो उसे न किसी ज़्यादती का अंदेशा होगा और न किसी कमी का। (109-112)

और इसी तरह हमने अरबी का कुरआन उतारा है और इस में हमने तरह-तरह से वईद (चेतावनी) बयान की है ताकि लोग डरें या वह उनके दिल में कुछ सोच डाल दे। पस बरतर है अल्लाह, बादशाह हक़ीक़ी। और तुम कुरआन के लेने में जल्दी न करो जब तक उसकी “वही” (प्रकाशना) तक्मील को न पहुंच जाए। और कहो कि ऐ मेरे रब मेरा इल्म ज़्यादा कर दे। (113-114)

और हमने आदम को इससे पहले हुक्म दिया था तो वह भूल गया और हमने उस में अज़्म (दृढ़-संकल्प) न पाया। और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करो तो उन्होंने सज्दा किया मगर इब्लीस (शैतान) कि उसने इंकार किया। फिर हमने कहा कि ऐ आदम, यह बिलाशुबह तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का दुश्मन है तो कहीं वह तुम दोनों को जन्नत से निकलवा न दे फिर तुम महरूम होकर रह जाओ। (115-117)

यहां तुम्हारे लिए यह है कि तुम न भूखे रहोगे और न तुम नंगे होगे। और तुम यहां न प्यासे होगे, और न तुम्हें धूप लगेगी। फिर शैतान ने उन्हें बहकाया। उसने कहा कि क्या मैं तुम्हें हमेशगी (अमरता) का दरख़्त बताऊं। और ऐसी बादशाही जिसमें कभी कमज़ोरी न आए। पस उन दोनों ने उस दरख़्त का फल खा लिया तो उन दोनों से सह एक दूसरे के सामने खुल गए। और दोनों अपने आपको जन्नत के पत्तों से ढांकने लगे। और आदम ने अपने रब के हुक्म की ख़िलाफ़वर्ज़ी की तो भटक गए। फिर उसके रब ने उसे नवाज़ा | पस उसकी तौबा क़ुबूल की और उसे हिदायत दी। (118-122)

ख़ुदा ने कहा कि तुम दोनों यहां से उतरो। तुम एक दूसरे के दुश्मन हो गए। फिर अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत आए तो जो शख्स मेरी हिदायत की पैरवी करेगा वह न गुमराह होगा और न महरूम रहेगा। और जो शख्स मेरी नसीहत से एराज़ (उपेक्षा) करेगा तो उसके लिए तंगी का जीना होगा। और क्रियामत के दिन हम उसे अंधा उठाएंगे | वह कहेगा कि ऐ मेरे रब, तूने मुझे अंधा क्‍यों उठाया मैं तो आंखों वाला था। इर्शाद होगा कि इसी तरह तुम्हारे पास हमारी निशानियां आईं तो तुमने उनका कुछ ख़्याल न किया तो इसी तरह आज तुम्हारा कुछ ख्याल न किया जाएगा। और इसी तरह हम बदला देंगे उसे जो हद से गुज़र जाए और अपने रब की निशानियों पर ईमान न लाए। और आख़िरत (परलोक) का अज़ाब बड़ा सख्त है और बहुत बाक़ी रहने वाला। (123-127)

क्या लोगों को इस बात से समझ न आई कि उनसे पहले हमने कितने गिरोह हलाक कर दिए। ये उनकी बस्तियों में चलते हैं बेशक इसमें अहले अक़्ल के लिए बड़ी निशानियां हैं। और अगर तुम्हारे रब की तरफ़ से एक बात पहले तय न हो चुकी होती। और मोहलत की एक मुद्दत मुक़र्रर न होती तो ज़रूर उनका फ़ैसला चुका दिया जाता। पस जो ये कहते हैं उस पर सब्र करो। और अपने रब की हम्द (प्रशंसा) के साथ उसकी तस्बीह (अर्चना) करो, सूरज निकलने से पहले और उसके डूबने से पहले, और रात के औक़ात में भी तस्बीह करो। और दिन के किनारों पर भी। ताकि तुम राज़ी हो जाओ। (128-130)

और हरगिज़ उन चीज़ों की तरफ़ आंख उठाकर भी न देखो जिन्हें हमने उनके कुछ गिरोहों को उनकी आज़माइश के लिए उन्हें दे रखा है। और तुम्हारे रब का रिज़्क़ ज़्यादा बेहतर है और बाक़ी रहने वाला है। और अपने लोगों को नमाज़ का हुक्म दो और उसके पाबंद रहो। हम तुमसे कोई रिज़्क़ नहीं मांगते। रिज़्क़ तो तुम्हें हम देंगे और बेहतर अंजाम तो तक़वा (ईश-परायणता) ही के लिए है। (131-132)

और लोग कहते हैं कि यह अपने रब के पास से हमारे लिए कोई निशानी क्यों नहीं लाते। क्या उन्हें अगली किताबों की दलील नहीं पहुंची। और अगर हम उन्हें इससे पहले किसी अज़ाब से हलाक कर देते तो वे कहते कि ऐ हमारे रब तूने हमारे पास रसूल क्यों न भेजा कि हम ज़लील और रुसवा होने से पहले तेरी निशानियों की पैरवी करते। कहो कि हर एक मुन्तज़िर है तो तुम भी इंतिज़ार करो। आइंदा तुम जान लोगे कि कौन सीधी राह वाला है और कौन मंज़िल तक पहुंचा। (133-135)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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