स्वामी विवेकानंद के पत्र – हेल बहनों को लिखित (12 मार्च, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का हेल बहनों को लिखा गया पत्र)
डिट्रॉएट,
१२ मार्च, १८९४
प्रिय बहनों,
इस समय मैं श्री पामर के साथ रह रहा हूँ। ये बड़े ही सज्जन हैं। उन्होंने परसों रात अपने पुराने मित्रों को एक भोज दिया था, जिनमें से हरेक ६० वर्ष से ऊपर का था, और इस मण्डली को वे ‘पुरातन सतीर्थगोष्ठी’ कहा करते हैं। एक नाट्यशाला में मैंने ढाई घंटे तक व्याख्यान दिया। लोग बहुत प्रसन्न हुए। मैं न्यूयार्क और बोस्टन जा रहा हूँ। मुझे अपने खर्च के लिए वहाँ पर्याप्त मिल जायेगा। मैं फ्लैग एवं प्रोफेसर राइट, दोनों के पते भूल गया हूँ। मैं मिशिगन भाषण देने नहीं जा रहा हूँ। श्री होल्डेन ने आज सुबह मुझे मिशिगन में भाषण देने के लिए मनाने की चेष्टा की, लेकिन मैं बोस्टन एवं न्यूयार्क को थोड़ा देख लेने के लिए एकदम निश्चय कर लिया हूँ। वास्तव में ज्यों ज्यों मुझे लोकप्रियता मिलती जा रही है और बोलने में आसानी होती जा रही है, त्यों त्यों मै ऊबता जा रहा हूँ। मेरे सभी व्याख्यानों में मेरा पिछला व्याख्यान ही सबसे अच्छा था। श्री पामर तो आनंदविभोर थे और श्रोतागण ऐसे मन्त्रमुग्ध बैठे रहे कि व्याख्यान के अन्त में ही चलकर मैं समझ सका कि मैं इतनी देर तक बोलता रहा। वक्ता को सदा ही श्रोताओं की अस्थिरता और ध्यानाभाव का एहसास हो जाता है। प्रभु मुझे इन व्यर्थ की बातों से बचायें, मैं इनसे ऊब चुका हूँ। अगर प्रभु को मंजूर होगा, तो मैं बोस्टन या न्यूयार्क में विश्राम करूँगा। तुम सबको मेरा प्यार। सतत प्रसन्न रहो।
तुम्हारा स्नेहशील भाई,
विवेकानन्द