स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (19 सितम्बर, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
होटल बेल्लेवुये,
बेकन स्ट्रीट, बोस्टन,
१९ सितम्बर, १८९४
माँ सारा,
मैं आपको बिल्कुल नहीं भूला हूँ। क्या आपको यह विश्वास है कि मैं इतना अकृतज्ञ बन सकता हूँ? आपने मुझे अपना पता लिखा, फिर भी लैण्ड्सबर्ग द्वारा कुमारी फिलिप्स के भेजे हुए समाचारों से आपका समाचार भी मिलता रहा है। मद्रास से मुझे जो अभिनन्दन-पत्र भेजा गया है, शायद उसे आपने देखा होगा। आपको भेजने के लिए उसकी कुछ प्रतियाँ लैण्ड्रसबर्ग के पास भेज रहा हूँ।
हिन्दू सन्तान अपनी माता को कभी कर्ज नहीं देती है, लेकिन अपनी सन्तान पर माता का सर्वाधिकार होता है और उसी प्रकार माता पर सन्तान का भी सर्वाधिकार होता है। मेरे उन तुच्छ कुछ डॉलरों को लौटा देने की बात से मैं आपसे अत्यन्त रुष्ट हूँ। हकीकत यह है कि आपका ऋण मैं कभी भी नहीं चुका सकता।
इस समय मैं बोस्टन के कुछ स्थानों में भाषण दे रहा हूँ। अब मैं एक ऐसे स्थान की खोज में हूँ, जहाँ बैठकर अपने विचारों को लिपिबद्ध कर सकूँ। पर्याप्त भाषण हो चुके, अब मैं कुछ लिखना चाहता हूँ। मैं समझता हूँ कि इस कार्य के लिए मुझे न्यूयार्क जाना पड़ेगा। श्रीमती गर्नसी ने मेरे साथ अत्यन्त सहृदयतापूर्ण व्यवहार किया है तथा मेरी सहायता करने के लिए वे सदा इच्छुक हैं। मैं सोच रहा हूँ कि उनके यहाँ जाकर मैं इस कार्य को करूँ।
आपका चिर स्नेहास्पद,
विवेकानन्द
पुनश्च – कृपया यह लिखने का कष्ट करें कि गर्नसी दम्पति शहर में वापस आ गया है या अभी तक फिश्किल में ही है।