स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (3 जनवरी, 1895)

(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)

५४१, डियरबोर्न एवेन्यू,
शिकागो,
३ जनवरी, १८९५

प्रिय श्रीमती बुल,

गत रविवार को ब्रुकलिन में मेरा भाषण हुआ। जिस दिन मैं पहुँचा – शाम को श्रीमती हिगिन्स ने स्वागत-सत्कार की छोटी-सी व्यवस्था की थी। जिसमें एथिकल सोसाइटी के कुछ प्रमुख सदस्य – डॉक्टर जेन्स के साथ – उपस्थित थे। उनमें से कुछ लोगों की धारणा थी कि प्राच्य धर्म सम्बन्धी ऐसे विषय में ब्रुकलिन की जनता दिलचस्पी नहीं लेगी।

किन्तु, भगवान् की दया से मेरे भाषण को महान् सफलता मिली। ब्रुक्रलिन के लगभग ८०० श्रेष्ठ जन उपस्थित थे, और जिन महानुभावों को मेरे भाषण की सफलता में शंका थी, अब वे ही ब्रुकलिन में भाषणमाला संयोजित करने की चेष्टा में लगे हैं। न्यूयार्क का पाठ्यक्रम मेरे पास करीब-करीब तैयार है, किन्तु जब तक कुमारी थर्सबी न्यूयार्क नहीं आ जाती हैं – मैं तिथि निश्चित नहीं कर सकता। यों, कुमारी फिलिप्स – जिनकी कुमारी थर्सबी से मित्रता है, और जो न्यूयार्क कोर्स की संयोजिका हैं – यदि न्यूयार्क में कुछ करना चाहें, तो कुमारी थर्सबी के साथ काम करें।

हेल-परिवार के प्रति मैं बहुत आभारी हूँ। इसलिए, मैंने सोचा कि नव वर्ष के दिन बिना किसी पूर्व सूचना के पहुँचकर उन्हें जरा अचरज में डाल दिया जाए।

मैं यहाँ एक नया गाउन बनवाने की कोशिश कर रहा हूँ। पुराना गाउन साथ है। किन्तु, बार-बार की धुलाई से सिमट-सिकुड़ कर ऐसा हो गया है कि उसे पहनकर बाहर नहीं निकला जा सकता। शिकागो में सही चीज मिल जाएगी, मुझे पूर्ण विश्वास है।

आशा है, आपके पिता जी अब स्वस्थ हैं। कुमारी फार्मर को, श्री और श्रीमती गिब्बन्स तथा ‘पवित्र परिवार’ के अन्य सदस्यों को मेरा प्यार –

सदैव स्नेहाधीन,
विवेकानन्द

पुनश्च – मैंने ब्रुकलिन में कुमारी कोरिंग से मुलाकात की। सदा की भाँति उनकी कृपा अब तक मुझ पर है। यदि इधर हाल में उन्हें पत्र लिखें, तो उन्हें मेरा प्यार दें।

वि.

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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