जीवन परिचयधर्म

शंकराचार्य का जीवन परिचय

शंकचार्य के पिता श्री शिवगुरु को बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुई। अतः उन्होंने अपनी पत्नी श्रीमती सुभद्रा जी के साथ भगवान शंकर की कठोर तपस्या की। उनकी सच्ची आराधना और दृढ़ निष्ठा से प्रसन्न होकर आशुतोष भगवान् शिव प्रकट हुए और उन्हें अपने ही समान सर्वगुण सम्पन्न पुत्र होने का वरदान दिया। इस प्रकार वैशाख शुक्ल पञ्चमी को सुभद्रा माता के गर्भ से साक्षात् भगवान् भोलेनाथ का ही श्री शिव गुरु के यहाँ प्राकट्य हुआ। केरल प्रदेश का पूर्णा नदी का तटवर्ती कालडी नामक गाँव इस महान विभूति के जन्म से प्रकाशित हो उठा। भगवान् शङ्कर के आशीर्वाद के फलस्वरूप उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शंकर रखा गया।

आदि शंकराचार्य की विलक्षण प्रतिभा और महानता का परिचय इनके बचपन से ही मिलने लगा। तीन वर्ष की अवस्था में पहुँचते-पहुँचते ही इनके पिता परलोकवासी हो गये। पाँच वर्ष की अवस्था में इन्हें पढ़ने के लिये गुरुकुल भेजा गया। सात वर्ष की आयु में ये सम्पूर्ण वेद-शास्त्रों में पारंगत होकर घर वापस आ गये। इनकी असाधारण प्रतिभा को देखकर लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। विद्याध्ययन समाप्त करनेके बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने संन्यास लेना चाहा, किन्तु इनको माता ने अनुमति नहीं दी। एक दिन अपनी माता के साथ ये नदी में स्नान करने गये। स्नान करते समय इन्हें एक मगर ने पकड़ लिया। इन्होंने अपनी माता से कहा कि यदि आप मुझे संन्यास लेने की आज्ञा दे देंगी तो मगर छोड़ देगा। विवश होकर माता को संन्यास की अनुमति प्रदान करनी पड़ी। जाते समय माता को मृत्यु के समय उपस्थित रहने का वचन देकर ये संन्यास लेने के लिये चल दिये।

आद्य शंकराचार्य ने गोविन्दभगवत्पाद से संन्यास की दीक्षा ली और अल्पकाल में ही योगसिद्ध महात्मा हो गये। गुरु ने इन्हें काशी जाकर ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखने की आज्ञा दी। काशी में भगवान शिव ने इन्हें चाण्डाल के रूप में दर्शन दिया। काशी में ही इन्हें भगवान व्यास के भी दर्शन हुए और उनकी कृपा से इनकी सोलह वर्ष की आयु बत्तीस वर्ष हो गयी। भगवान् व्यास ने इनको अद्वैतवाद का प्रचार करने की आज्ञा दी।

तदनन्तर आदि शंकराचार्य ने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया और शास्त्रार्थ में विभिन्न मतवादियों को परास्त करके अद्वैतवाद को स्थापना की। यद्यपि इन्होंने अनेक मन्दिर बनवाये, किन्तु चारों धामों में इनके चार मठ विशेष प्रसिद्ध हैं। आज भी इनके द्वारा स्थापित मठों के प्रधान आचार्य शंकराचार्य के नाम से ही जाने जाते है। भगवान् शङ्कराचार्य के द्वारा बनाये ग्रन्थों में ब्रह्मसूत्र भाष्य, उपनिषद्-भाष्य, गीता भाष्य, पञ्चदशी आदि प्रमुख हैं। इस प्रकार बत्तीस वर्ष के अल्पकाल में अपने अभूतपूर्व ज्ञान से संसार को वेदान्त का अभिनव प्रकाश प्रदान करके जगतगुरु शंकराचार्य ने सम्पूर्ण मानव जाति का अनुपम कल्याण किया।

आदि गुरु शंकराचार्य का जीवन परिचय पढ़कर हमें यह पता चलता है कि वो स्वयं भगवान् शंकर के अवतार थे। इनका नाम शंकराचार्य होने की भी यही वजह थी। बचपन से ही इन्होंने अपनी महानता और असाधारण प्रतिभा का परिचय देना शुरू कर दिया था।शंकराचार्य का जीवन परिचयपढ़कर आप यह भी जान पाएंगे की उनको सन्यास लेने के लिए अपनी माँ का विरोधभास सहना पड़ा था। उन्होंने कई तरह के विरोधाभास झेल कर अद्वैतवाद की स्थापना की थी। आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय से हमें यह भी पता चलता है कि उन्होंने पूरे भारतवर्ष में भ्रमण करके कई मंदिरों और मठों की स्थापना की थी। इन्होंने विविध ग्रंथों की रचना भी की है। आदि गुरु शंकराचार्य के जीवन और व्यक्तित्व से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हर एक इंसान को उनकी जीवनी एक बार ज़रूर पढ़नी चाहिए और यथासंभव ग्रहण करना चाहिए। 

शंकराचार्य संबंधी प्रश्नोत्तर

शंकराचार्य के चार पीठ कौन-से हैं?

आदि शंकर द्वारा स्थापित चार मठ हैं – रामेश्वरम् में शृंगेरी मठ, पुरी में गोवर्धन मठ, द्वारका में शारदा मठ और बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ।

शंकराचार्य के गुरु कौन थे?

इनके गुरु का नाम गोविन्दपाद था, जिनसे इन्होंने वेदादि शास्त्रों का अध्ययन किया था।

आद्य शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन किसपर आधारित है?

जगतगुरु शंकर का अद्वैत सिद्धान्त द्वैत, विशिष्ठाद्वैत आदि वेदान्त की अन्य शाखाओं के समान ही उपनिषदों पर आधारित है।


सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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