शनि चालीसा – Shani Chalisa in Hindi
शनि चालीसा का पाठ शनि देव को प्रसन्न करता है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शनि के कारण जो भी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हों, शनि चालीसा (Shani Chalisa) को पढ़ने से उनका परिहार होता है। शनि देव न्याय के देवता हैं।
वे हर व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर फल देते हैं। यदि शनि की टेढ़ी दृष्टि किसी जातक पर पड़ जाए, तो उसका जीवन बहुत कठिन हो जाता है। नियमित तौर पर श्री शनि चालीसा (Shri Shani Chalisa) का पाठ शनि देव को शांत करता है और उनके कोप को समाप्त कर देता है।
शनि चालीसा के दो स्वरूप लोक में प्रचलित हैं। हम यहाँ दोनों को ही आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। पढ़िए शनि चालीसा हिंदी में (Shani Chalisa in Hindi)–
श्री शनि चालीसा – 1
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुःख दूर करि,
कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु,
सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय,
राखहु जन की लाज॥
॥ चौपाई॥
जयति जयति शनिदेव दयाला,
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै,
माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला,
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके,
हिये माल मुक्तन मणि दमकै॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा,
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन, यम,
कोणस्थ, रौद्र दुःख भंजन॥
सौरी, मन्द शनी, दशनामा,
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जापर प्रभु प्रसन्न हवें जाहीं,
रंकहुँ राव करें क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होइ निहारत,
तृणहू को पर्वत कहि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो,
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयों।
बनहूँ में मृग कपट दिखाई,
मातु जानकी गई चुराई।
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा,
मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई,
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका,
बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा,
चित्र मयूर निगजि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी,
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो,
तेलहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों,
तब प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हयों।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी,
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी,
भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई,
पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा,
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी,
बची द्रोपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो,
युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला,
लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई,
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना,
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी,
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवें,
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा,
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै,
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी,
चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा,
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवै,
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावें॥
समता ताम्र रजत शुभकारी,
स्वर्ण सर्व सर्वसुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै,
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला,
करें शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई,
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत,
दीप दान दे बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा,
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाश।
॥ दोहा ॥
पाठ शनीश्चर देव को,
कीहों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन,
हो भव सागर पार॥
शनि चालीसा – 2
॥ दोहा ॥
श्री शनिश्चर देवजी,
सुनहु श्रवण मम् टेर।
कोटि विघ्ननाशक प्रभो,
करो न मम् हित बेर॥
॥ सोरठा ॥
तव स्तुति हे नाथ,
जोरि जुगल कर करत हौं।
करिये मोहि सनाथ,
विघ्नहरन हे रवि सुव्रन॥
॥ चौपाई ॥
शनि देव मैं सुमिरौं तोही,
विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही।
तुम्हरो नाम अनेक बखानौं,
क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं।
अन्तक, कोण, रौद्रय मगाऊँ,
कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ।
पिंगल मन्दसौरि सुख दाता,
हित अनहित सब जब के ज्ञाता।
नित जपै जो नाम तुम्हारा,
करहु व्याधि दुःख से निस्तारा।
राशि विषमवस असुरन सुरनर,
पन्नग शेष सहित विद्याधर।
राजा रंक रहहिं जो नीको,
पशु पक्षी वनचर सबही को।
कानन किला शिविर सेनाकर,
नाश करत सब ग्राम्य नगर भर।
डालत विघ्न सबहि के सुख में,
व्याकुल होहिं पड़े सब दुःख में।
नाथ विनय तुमसे यह मेरी,
करिये मोपर दया घनेरी।
मम हित विषम राशि महँवासा,
करिय न नाथ यही मम आसा।
जो गुड़ उड़द दे वार शनीचर,
तिल जव लोह अन्न धन बस्तर।
दान दिये से होंय सुखारी,
सोइ शनि सुन यह विनय हमारी।
नाथ दया तुम मोपर कीजै,
कोटिक विघ्न क्षणिक महँ छीजै।
वंदत नाथ जुगल कर जोरी,
सुनहु दया कर विनती मोरी।
कबहुँक तीरथ राज प्रयागा,
सरयू तोर सहित अनुरागा।
कबहुँ सरस्वती शुद्ध नार महँ,
या कहुँ गिरी खोह कंदर महँ।
ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि,
ताहि ध्यान महँ सूक्ष्म होहि शनि।
है अगम्य क्या करू बड़ाई,
करत प्रणाम चरण शिर नाई।
जो विदेश से बार शनीचर,
मुड़कर आवेगा जिन घर पर।
रहैं सुखी शनि देव दुहाई,
रक्षा रवि सुत रखें बनाई।
जो विदेश जावैं शनिवारा,
गृह आवें नहिं सहै दुखारा।
संकट देय शनीचर ताही,
जेते दुखी होई मन माही।
सोई रवि नन्दन कर जोरी,
वन्दन करत मूढ़ मति थोरी।
ब्रह्मा जगत बनावन हारा,
विष्णु सबहिं नित देत अहारा।
हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी,
विभू देव मूरति एक वारी।
इकहोइ धारण करत शनि नित,
वंदत सोई शनि को दमनचित।
जो नर पाठ करै मन चित से,
सो नर छूटै व्यथा अमित से।
हौं मंत्र धन सन्तति बाढ़े,
कलि काल कर जोड़े ठाढ़े।
पशु कुटुम्ब बांधन आदि से,
भरो भवन रहिहैं नित सबसे।
नाना भांति भोग सुख सारा,
अन्त समय तजकर संसारा।
पावै मुक्ति अमर पद भाई,
जो नित शनि सम ध्यान लगाई।
पढ़ै प्रात जो नाम शनि दस,
रहैं शनीश्चर नित उसके बस।
पीड़ा शनि की कबहुँ न होई,
नित उठ ध्यान धरै जो कोई।
जो यह पाठ करैं चालीसा,
होय सुख साखी जगदीशा।
चालिस दिन नित पढ़े सबेरे,
पातक नाशे शनी घनेरे।
रवि नन्दन की अस प्रभुताई,
जगत मोहतम नाशै भाई।
याको पाठ करै जो कोई,
सुख सम्पत्ति की कमी न होई।
निशिदिन ध्यान धरै मनमाहीं,
आधिव्याधि ढिंग आवै नाहीं।
॥ दोहा ॥
पाठ शनीश्चर देव को,
कीहौं विमल तैयार।
करत पाठ चालीस दिन,
हो भवसागर पार॥
जो स्तुति दशरथ जी कियो,
सम्मुख शनि निहार।
सरस सुभाषा में वही,
ललिता लिखें सुधार॥
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शनि चालीसा (Shani chalisa) न्याय के देवता शनि को समर्पित स्रोत है। ये चालीस पंक्तियों का संकलन है, जिसमें शनिदेव की महिमा का गुणगान किया गया है। चालीसा की शुरुआत में श्री गणेश जी की वंदना एवं उनसे प्रार्थना की गई है कि चालीसा का पाठ निर्विघ्न पूर्ण हो। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले गणेश भगवान की पूजा करना शुभ माना जाता है। इसके बाद चालीसा में शनि देव का बखान करते हुए दोहे हैं। इन दोहों में निम्न बातों का वर्णन है:
- इसमें शनि देव के ग्रह होने की बात और वे किस प्रकार अलग- अलग राशियों के लोगों पर प्रभाव डालते हैं, बताया गया है।
- शनि चालीसा के दोहे में शनि देव को काली देह वाले, विपत्तियों और बुरी नज़र का नाश करने वाले कहा गया है।
- उनके हाथों में गदा, त्रिशूल, और युद्ध की गदा है।
- कोणस्थ, पिंगलो आदि उनके दूसरे नाम बताए गए हैं।
- शनिदेव को रामायण के युद्ध और रघुवर के घर में विपत्तियों का कारण बताया गया है। उनकी ही नज़र की वजह से कैकयी की बुद्धि भ्रमित हुइ थी, राम को घर छोड़कर वनवास जाना पड़ा था और सीता को सोने का हिरण दिखा था।
- विक्रमादित्य और हरिश्चंद्र जैसे महान राजाओं को शनि की वजह से अपनी राज गद्दी छोड़नी पड़ी थी और मुसीबतों का सामना करना पड़ा था।
- वास्तु शास्त्र में भी शनि बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। धातु से बनी हुई चीज़ों को शनि का अच्छा सूचक बनाकर घर में रखा जाता है।
- शनि की ही दशा की वजह से देवी सती ने स्वयं को यज्ञ कुंड में समाहित कर लिया था और भगवान् गणेश को अपना सिर खोना पड़ा था।
- इनकी ही दशा की वजह से पांडवों को अपना राज पाठ खोना पड़ा था और महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें कौरवों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।
- शनि चालीसा में यह भी वर्णन है कि किस तरह शनिदेव ने सूर्य को निगल लिया था। सभी देवताओं के प्रार्थना करने पर उन्होंने सूर्य देव को अपने चंगुल से आज़ाद किया था।
- उनकी कुल 7 सवारियों का वर्णन चालीसा में किया गया है, हाथी, घोड़ा, हिरण, गधा, कुकुर, सियार, और शेर।
- शनि देव को मनाने के लिए धूप जलाना, सरसों के तेल का दीपक जलाना, और पीपल के पेड़ को पानी देना महत्वपूर्ण माना जाता है।
शनि चालीसा का महत्व
शनि की महादशा और साढ़े साती के बुरे प्रभाव को कम करने का एक बेहद कारगर उपाय है, शनि चालीसा का पाठ। शनि ग्रह को शनैश्चर अर्थात धीमी गति से चलने वाला भी बोलते हैं। एक राशि में अपना चक्र पूर्ण करने के लिए इन्हें लगभग ढ़ाई साल लगते हैं। शनि के साढ़े साती के प्रभाव को कम करके मन को शांत रखने के लिए शनि चालीसा का पाठ उत्तम माना जाता है।
शनि चालीसा का पाठ विधि और समय
वैसे तो शनि चालीसा (Shani chalisa) के पाठ के लिए कोई नियम और समय नहीं होता है। बस मन में पूर्ण श्रद्धा रखे हुए किया हुआ पाठ फलदायी होता है। परन्तु अगर इसे शनिवार के दिन शाम के समय किया जाये तो और भी उत्तम माना जाता है। आप काले रंग के वस्त्र धारण करके किसी शनि मंदिर में इसका पाठ कर सकते हैं। अथवा घर में ही पाठ से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके पाठ करने के लिए आसन में बैठना चाहिए। शनि देव की प्रतिमा या फोटो को भी सामने रख सकते हैं। भगवान शनि से अपने कष्टों का शीघ्र निवारण करने हेतु प्रार्थना करते हुए श्रद्धा भाव से पाठ करें।
शनि चालीसा के फायदे
शनि चालीसा का नियमित पाठ जातक के विचारों में शुद्धता लाता है और जीवन का सही मार्ग प्रशस्त करवाता है।
इससे आप अपनी ज़िन्दगी की कठिनाइयों और मुश्किलों से शीघ्र ही निजात पा सकते हैं। कुंडली में शनि के साढ़े साती या अन्य किसी भी प्रभाव को कम किया जा सकता है। इस चालीसा के पाठ के फलस्वरूप आपके जीवन में भौतिक सुखों की खुशहाली आएगी। आप झूठे अपराधों, आरोपों, और इल्ज़ामों से सरक्षा पा सकते हैं। आप जीवन में दुर्घटनाओं और अपराधों से बचेंगे। इस चालीसा का पाठ आपको सही रास्ते में चलने के लिए प्रेरित करेगा।
शनि चालीसा के दोनों स्वरूपों के साथ-साथ हमने उसका अर्थ, महत्व, फायदे, और विधि भी साझा की है। हमारे माध्यम से आप इसका पीडीएफ (Shani chalisa pdf) भी डाउनलोड करके और सेव करके रख सकते हैं।
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर शनि चालीसा (Shani Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें शनि चालीसा रोमन में–
Read Shani Chalisa in Hindi
śrī śani cālīsā – 1
॥dohā॥
jaya gaṇeśa girijā suvana,
maṃgala karaṇa kṛpāla।
dīnana ke duḥkha dūra kari,
kījai nātha nihāla॥
jaya jaya śrī śanideva prabhu,
sunahu vinaya mahārāja।
karahu kṛpā he ravi tanaya,
rākhahu jana kī lāja॥
॥ caupāī॥
jayati jayati śanideva dayālā,
karata sadā bhaktana pratipālā॥
cāri bhujā, tanu śyāma virājai,
māthe ratana mukuṭa chavi chājai॥
parama viśāla manohara bhālā,
ṭeḍha़ī dṛṣṭi bhṛkuṭi vikarālā॥
kuṇḍala śravaṇa camācama camake,
hiye māla muktana maṇi damakai॥
kara meṃ gadā triśūla kuṭhārā,
pala bica karaiṃ arihiṃ saṃhārā॥
piṃgala, kṛṣṇo, chāyā, nandana, yama,
koṇastha, raudra duḥkha bhaṃjana॥
saurī, manda śanī, daśanāmā,
bhānu putra pūjahiṃ saba kāmā॥
jāpara prabhu prasanna haveṃ jāhīṃ,
raṃkahu~ rāva kareṃ kṣaṇa māhīṃ॥
parvatahū tṛṇa hoi nihārata,
tṛṇahū ko parvata kahi ḍārata॥
rāja milata bana rāmahiṃ dīnhayo,
kaikeihu~ kī mati hari līnhayoṃ।
banahū~ meṃ mṛga kapaṭa dikhāī,
mātu jānakī gaī curāī।
laṣaṇahiṃ śakti vikala kariḍārā,
macigā dala meṃ hāhākārā॥
rāvaṇa kī gati-mati baurāī,
rāmacandra soṃ baira baḍha़āī॥
diyo kīṭa kari kaṃcana laṃkā,
baji bajaraṃga bīra kī ḍaṃkā॥
nṛpa vikrama para tuhi pagu dhārā,
citra mayūra nigaji gai hārā॥
hāra naulakhā lāgyo corī,
hātha paira ḍaravāyo torī॥
bhārī daśā nikṛṣṭa dikhāyo,
telahiṃ ghara kolhū calavāyo॥
vinaya rāga dīpaka maha~ kīnhayoṃ,
taba prasanna prabhu havai sukha dīnhayoṃ।
hariścandra nṛpa nāri bikānī,
āpahuṃ bhare ḍoma ghara pānī॥
taise nala para daśā sirānī,
bhūṃjī-mīna kūda gaī pānī॥
śrī śaṃkarahiṃ gahyo jaba jāī,
pāravatī ko satī karāī॥
tanika vilokata hī kari rīsā,
nabha uḍa़i gayo gaurisuta sīsā॥
pāṇḍava para bhai daśā tumhārī,
bacī dropadī hoti ughārī॥
kaurava ke bhī gati mati mārayo,
yuddha mahābhārata kari ḍārayo॥
ravi kaha~ mukha maha~ dhari tatkālā,
lekara kūdi parayo pātālā॥
śeṣa deva-lakhi vinatī lāī,
ravi ko mukha te diyo chuḍa़āī॥
vāhana prabhu ke sāta sujānā,
jaga diggaja gardabha mṛga svānā॥
jambuka siṃha ādi nakha dhārī,
so phala jyotiṣa kahata pukārī॥
gaja vāhana lakṣmī gṛha āveṃ,
haya te sukha sampatti upajāvai॥
gardabha hāni karai bahu kājā,
siṃha siddhakara rāja samājā॥
jambuka buddhi naṣṭa kara ḍārai,
mṛga de kaṣṭa prāṇa saṃhārai।
jaba āvahiṃ prabhu svāna savārī,
corī ādi hoya ḍara bhārī॥
taisahi cāri caraṇa yaha nāmā,
svarṇa lauha cā~dī aru tāmā ॥
lauha caraṇa para jaba prabhu āvai,
dhana jana sampatti naṣṭa karāveṃ॥
samatā tāmra rajata śubhakārī,
svarṇa sarva sarvasukha maṃgala bhārī॥
jo yaha śani caritra nita gāvai,
kabahuṃ na daśā nikṛṣṭa satāvai॥
adbhuta nātha dikhāvaiṃ līlā,
kareṃ śatru ke naśi bali ḍhīlā॥
jo paṇḍita suyogya bulavāī,
vidhivata śani graha śāṃti karāī॥
pīpala jala śani divasa caḍha़āvata,
dīpa dāna de bahu sukha pāvata॥
kahata rāma sundara prabhu dāsā,
śani sumirata sukha hota prakāśa।
॥ dohā ॥
pāṭha śanīścara deva ko,
kīhoṃ bhakta taiyāra।
karata pāṭha cālīsa dina,
ho bhava sāgara pāra॥
śani cālīsā – 2
॥ dohā ॥
śrī śaniścara devajī,
sunahu śravaṇa mam ṭera।
koṭi vighnanāśaka prabho,
karo na mam hita bera॥
॥ soraṭhā ॥
tava stuti he nātha,
jori jugala kara karata hauṃ।
kariye mohi sanātha,
vighnaharana he ravi suvrana॥
॥ caupāī ॥
śani deva maiṃ sumirauṃ tohī,
vidyā buddhi jñāna do mohī।
tumharo nāma aneka bakhānauṃ,
kṣudrabuddhi maiṃ jo kucha jānauṃ।
antaka, koṇa, raudraya magāū~,
kṛṣṇa babhru śani sabahiṃ sunāū~।
piṃgala mandasauri sukha dātā,
hita anahita saba jaba ke jñātā।
nita japai jo nāma tumhārā,
karahu vyādhi duḥkha se nistārā।
rāśi viṣamavasa asurana suranara,
pannaga śeṣa sahita vidyādhara।
rājā raṃka rahahiṃ jo nīko,
paśu pakṣī vanacara sabahī ko।
kānana kilā śivira senākara,
nāśa karata saba grāmya nagara bhara।
ḍālata vighna sabahi ke sukha meṃ,
vyākula hohiṃ paḍa़e saba duḥkha meṃ।
nātha vinaya tumase yaha merī,
kariye mopara dayā ghanerī।
mama hita viṣama rāśi maha~vāsā,
kariya na nātha yahī mama āsā।
jo guḍa़ uḍa़da de vāra śanīcara,
tila java loha anna dhana bastara।
dāna diye se hoṃya sukhārī,
soi śani suna yaha vinaya hamārī।
nātha dayā tuma mopara kījai,
koṭika vighna kṣaṇika maha~ chījai।
vaṃdata nātha jugala kara jorī,
sunahu dayā kara vinatī morī।
kabahu~ka tīratha rāja prayāgā,
sarayū tora sahita anurāgā।
kabahu~ sarasvatī śuddha nāra maha~,
yā kahu~ girī khoha kaṃdara maha~।
dhyāna dharata haiṃ jo jogī jani,
tāhi dhyāna maha~ sūkṣma hohi śani।
hai agamya kyā karū baḍa़āī,
karata praṇāma caraṇa śira nāī।
jo videśa se bāra śanīcara,
muḍa़kara āvegā jina ghara para।
rahaiṃ sukhī śani deva duhāī,
rakṣā ravi suta rakheṃ banāī।
jo videśa jāvaiṃ śanivārā,
gṛha āveṃ nahiṃ sahai dukhārā।
saṃkaṭa deya śanīcara tāhī,
jete dukhī hoī mana māhī।
soī ravi nandana kara jorī,
vandana karata mūḍha़ mati thorī।
brahmā jagata banāvana hārā,
viṣṇu sabahiṃ nita deta ahārā।
haiṃ triśūladhārī tripurārī,
vibhū deva mūrati eka vārī।
ikahoi dhāraṇa karata śani nita,
vaṃdata soī śani ko damanacita।
jo nara pāṭha karai mana cita se,
so nara chūṭai vyathā amita se।
hauṃ maṃtra dhana santati bāḍha़e,
kali kāla kara joḍa़e ṭhāḍha़e।
paśu kuṭumba bāṃdhana ādi se,
bharo bhavana rahihaiṃ nita sabase।
nānā bhāṃti bhoga sukha sārā,
anta samaya tajakara saṃsārā।
pāvai mukti amara pada bhāī,
jo nita śani sama dhyāna lagāī।
paḍha़ai prāta jo nāma śani dasa,
rahaiṃ śanīścara nita usake basa।
pīḍa़ā śani kī kabahu~ na hoī,
nita uṭha dhyāna dharai jo koī।
jo yaha pāṭha karaiṃ cālīsā,
hoya sukha sākhī jagadīśā।
cālisa dina nita paḍha़e sabere,
pātaka nāśe śanī ghanere।
ravi nandana kī asa prabhutāī,
jagata mohatama nāśai bhāī।
yāko pāṭha karai jo koī,
sukha sampatti kī kamī na hoī।
niśidina dhyāna dharai manamāhīṃ,
ādhivyādhi ḍhiṃga āvai nāhīṃ।
॥ dohā ॥
pāṭha śanīścara deva ko,
kīhauṃ vimala taiyāra।
karata pāṭha cālīsa dina,
ho bhavasāgara pāra॥
jo stuti daśaratha jī kiyo,
sammukha śani nihāra।
sarasa subhāṣā meṃ vahī,
lalitā likheṃ sudhāra॥
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बहुत ही सुंदर ढंग से विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है जो कि बहुत ही ज्ञानवर्धक है। आपने जिस मेहनत से ये जानकारी उपलब्ध करवाई है, astrology आपकी इसके लिए दिल की गहराइयों से प्रशंसा करता है। बहुत ही सराहनीय प्रयास
धन्यवाद, राजीव जी। आपकी साइट के लिए भी हार्दिक शुभकामनाएँ।