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अकबर और बीरबल की कहानी – बैल का दूध

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Akbar Aur Birbal Ki Kahani – Bail Ka Doodh

एक दिन की बात है कि अकबर और बीरबल दोनों एक उपवन में बैठे हुये आनन्द मना रहे थे। इतने में शाम हो गई। जब बीरबल घर जाने को उद्यत हुआ तो बादशाह ने उसे रोक कर कहा–“बीरबल! आज कई दिनों से मैं एक बात सोच रहा था, परन्तु तुमसे कहना भूल जाता था। एक हकीम दवा बनाता है, उसमें बैल के दूध की अनिवार्य आवश्यकता है। यदि तुम कहीं-से उसे ला दो तो अति-उत्तम हो।” पत्ता खड़का बन्दा भड़का। बीरबल बादशाह अकबर की मन्शा समझ गया और मन में कहा कि बादशाह इस बहाने मुझे मूर्ख बनाना चाहते हैं।

बीरबल बोला–“इसमें घबड़ाने की कौन-सी बात है? मैं एक सप्ताह में बैल का दूध ला दूंगा।” बादशाह ने कहा–“दो-चार दिन और अधिक लग जाएँ तो कोई चिन्ता की बात नहीं है, परन्तु दूध का आना बहुत लाज़िमी है।” “बहुत अच्छा”–कहता हुआ बीरबल वहाँ से विदा हुआ।

वह घर पहुँच एकान्त स्थान में बैठकर बैल के दूध वाले प्रश्न पर विचार करने लगा। चिन्ताग्रस्त बीरबल के कई घण्टे का समय मिण्टों के समान बीत गया। जब भोजन करने का समय हुआ तो नियमानुसार उसकी लड़की बुलाने आई। वह अपने पिता का चेहरा उतरा और विचार-मग्न देखकर ठिठक गई। जब उसको खड़े कई मिनट व्यतीत हो गये और पिता का ध्यान न टूटा तो उसने उद्विग्न होकर पिता से चिन्ता का कारण पूछा। यद्यपि यह बीरबल की बड़ी लड़की थी और वह इसकी बुद्धिमत्ता की कई बार परीक्षा भी ले चुका था, फिर भी ऐसे गूढ़ विषय में उसे सफलता मिलेगी ऐसी आशा स्वप्न में भी न थी। इसलिये कुछ समय तक उसकी बातों को अनसुनी कर टाल-मटोल करता रहा। पुत्री के पुनः-पुनः अनुरोध करने पर उसे विवश होकर बादशाह का जटिल प्रश्न सुनाना पड़ा।

कन्या बोली–“पिताजी! यह कौन-सी ऐसी कठिन बात है जिसके लिये आप ऐसे चिन्ताकुल हो रहे हैं। चलिये, भोजन का समय बीता जा रहा है। मैं उसका उत्तर एक हफ़्ते के भीतर ही बादशाह को पहुँचा दूंगी।”

लड़की के ऐसे उत्तर से बीरबल की चिन्ता घटी और शाहसकर भोजन करने गया। इस प्रकार जब दो दिन व्यतीत हो गये तो बीरबल की लड़की ने एक नयी तरकीब निकाली। वह ढूँढकर बहुतेरे पुराने वस्त्रों को घर से बाहर निकाल लाई और उनका एक गट्ठर तैयार किया। जब आधी रात का समय हुआ तो उस गट्ठर को सिर पर लादकर नदी तट पर जा पहुँची और “छियो-छियो” कर वस्त्र पछारने लगी। बादशाह का महल ठीक नदी तट पर बना हुआ था। अर्धरात्रि के समय नींद के प्रथम प्रहर में जब कपड़ा धोने की आवाज़ बादशाह के कान में पड़ी तो उसकी निद्रा भंग हो गई और पहरे वाले सन्तरी को पुकार कर बोला–“देखो, इतनी रात्रि में कौन धोबी कपड़ा छाँट रहा है; उसे तुरंत पकड़कर मेरे पास लावो?”

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पहरे वाला सिपाही हुक्म पाते ही कई अन्य सिपाहियों के साथ वहाँ पर जा पहुँचा जहाँ से कपड़े धोने की आवाज़ आ रही थी। वे सब बड़े हैरान और परेशान हुए क्योंकि देखते क्या हैं कि एक सिर-से-पैर-तक अति सुंदरी युवती कपड़े पछाड़ रही है। सिपाहियों ने उसे कई बार पुकार कर बादशाह का हुक्म सुनाया, परन्तु वह उनकी बातें अनसुनी कर बराबर अपने काम में व्यस्त रही। आख़िर एक सिपाही उसके बिल्कुल समीप पहुँचकर बोला–“अरी, तू कौन है जो इतनी धृष्टता कर रही है और पुकारने पर सुनती भी नहीं! चल तुझे बादशाह ने बुलाया है?” लड़की तो येनकेन प्रकारेण बादशाह के पास पहुँचना ही चाहती थी। परन्तु फिर भी अपना अभिप्राय छिपाकर बोली–“आप लोग मुझे क्यों दुःख देने पर उतारू हुए हैं, लो मैं अपने घर चली जाती हूँ।” सिपाहियों ने कहा–“ख़बरदार! तुम्हारा भला इसी में है कि सीधे हमलोगों के साथ बादशाह के पास चलो।”

लड़की कपड़ों को जहाँ-का-तहाँ छोड़ उनके पीछे हो ली और जब बादशाह के सन्निकट पहुँची तो बड़े अदब से झुक कर सलाम किया और डरी-सी होकर एक किनारे खड़ी हो बादशाह के हुक्म की प्रतीक्षा करने लगी। अकबर क्रोध से आग बबूला हो रहा था। उसने अपनी लाल-लाल आँखें निकाकर पूछा–“ऐ कम्बख़्त! तू कौन है और इस रात्रि के मध्यकाल में यहाँ कपड़े क्यों धो रही है?” लड़की ने देखा कि बादशाह क्रोध से तमतमा गया है इसलिये काँपती हुई गिड़गिड़ाकर लड़खड़ाती ज़ुबान से बोली–“श्रीमान! श्रीमान! मैं तो…..!” बादशाह को उसे घबड़ाई हुई देखकर दया आ गई और उसे सान्त्वना देते हुए बोला–“तू इतना घबड़ाती क्यों है? यदि साफ़-साफ़ बतला देगी तो तुझे माफ़ी दी जायगी, अन्यथा बहुत कष्ट उठायेगी।” लड़की ने कहा–“पृथ्वीनाथ! मुझे इस समय नितान्त आवश्यकता पड़ी है जिस कारण विवश हो कर कपड़े धोने आई हूँ।”

बादशाह ने कहा–“ऐ अभागी! ऐसी कौन-सी ज़रूरत थी जिसके लिये तू इतनी परेशान है।” लड़की ने उत्तर दिया–“क्या कहूँ, पृथ्वीनाथ! आज दोपहर में मेरे पिता ने एक लड़के को जन्म दिया है। सो मैं दिन भर तो और-और कामों में परेशान थी, इस वक़्त फ़ुरसत पाने पर कपड़े धोने आई हूँ। क्योंकि साफ़ कपड़ों की आवश्यकता आन पड़ी है।”

लड़की के ऐसे कौतूहलपूर्ण उत्तर को सुन बादशाह बड़ा आश्चर्यचकित हुआ और उसे फटकारते हुए बोला–“रे नादान छोकरी! तू क्या बकती है! क्या तेरा दिमाग़ खब्त तो नहीं हो गया है, भला पुरुष को भी कहीं लड़का पैदा होता है?” लड़की सुअवसर देखकर विनम्रतापूर्वक बोली–“पृथ्वीनाथ! जब पुरुष को लड़का नहीं हो सकता, तो बैल को दूध कैसे होगा?”

बादशाह अकबर को अपनी पहली बात स्मरण हो आई। चकित होकर लड़की से पूछा–“कहीं तुम बीरबल की लड़की तो नहीं हो?”

लड़की ने उत्तर दिया–“जी हाँ, पृथिवीनाथ! आपका अनुमान बिल्कुल ठीक है।” बादशाह उसकी इस चतुरता से बड़ा प्रसन्न हुआ और उसको आभूषण और द्रव्य पुरस्कार में देकर बड़ी इज़्ज़त से पालकी में बैठाकर विदा किया। लड़की ने घर पहुँचकर पिता का चरण स्पर्श कर रात की घटना का सारा वृत्तान्त कह सुनाया। बीरबल अपनी बुद्धिमती कन्या से बहुत प्रसन्न हुआ और उसका पुरस्कार उसे लौटाकर बहुत आशीर्वाद दिया।

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