अकबर का अधर महल
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Akbar Ka Adhar Mahal
एक दिन दरबार के काम-काजों से निश्चिन्त होकर बादशाह बीरबल के साथ गप्पें मार रहा था। गप्प शप के मानी मनोरंजन के है। उसी दिन उसको एक अधर महल बनवाने की इच्छा जागृत हुई। इस अभिप्राय से प्रेरित होकर बोला–“बीरबल! क्या तुम मेरे लिये एक अधर महल बनवा सकते हो? बनवा देना तुम्हारा काम है और रुपया ख़र्चना मेरा।” बीरबल ने सोच-विचार कर उत्तर दिया–“पृथिवीनाथ, थोड़ा ठहरकर महल बनवाने का कार्यारम्भ करूंगा।
इस कार्य के लिये कुछ मुख्य सामानों के संग्रह में समय की आवश्यकता है।” बादशाह इस पर राज़ी हो गया।
फिर बीरबल ने एक दूसरी बात छेड़कर बादशाह का मन दूसरे कामों में उलझा दिया। सायंकाल अवकाश पाकर घर लौट गया। दूसरे दिन बहेलियों को रुपये देकर जंगल से तोतों को पकड़ लाने की आज्ञा दी। हुक्म की देर थी, बहेलिये उसी दिन सैकड़ों तोते पकड़ लाये। बीरबल ने कुछ तोतों को चुन कर ख़रीद लिया और उनके पढ़ाने का भार अपनी बुद्धिमती कन्या को सौंप आप दरबार का आवश्यक कार्य करने लगा।
लड़की ने बुद्धिमानी से पिता के आदेशानुसार तोतों को पढ़ाकर पक्का कर दिया। जब बीरबल ने उनकी परीक्षा ली, तो वे उसके मरज़ी के माफ़िक निकले। फिर क्या था, बीरबल तोतों को लिये हुए दरबार में हाज़िर हुआ। उनको दीवानख़ाने में बन्द कर आप बादशाह अकबर के पास गया। तोते पिंजड़ों से बाहर निकाल कर छोड़ दिये गये थे। सब तरफ़ से किवाड़ बन्द था। तोते भीतर-ही-भीतर अपनी शिक्षा के अनुसार अलग-अलग राग अलाप रहे थे।
बादशाह को सलाम कर बीरबल बोला–“पृथ्वीनाथ! आपकी मरज़ी के मुवाफ़िक अधर महल में काम लगवा दिया है। इस समय उसमें बहुतेरे पेशराज और मिस्त्री काम कर रहे हैं। आप चलकर मुवाइना कर लें।” बादशाह अकबर महल देखने की इच्छा से बीरबल के साथ हो लिया।
जब बीरबल दीवानख़ाने के पास पहुँचा तो उसका किवाड़ खुलवा दिया। तोते बाहर निकलकर आकाश में उड़ते हुये बोलने लगे–“ईंटा लाओ, चूना लावो, किवाड़ लाओ, चौखट तय्यार करो, दीवार चुनो।” इस प्रकार आकाश में तोतों ने ख़ूब शोर-गुल मचाया।
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तब बादशाह ने बीरबल से पूछा–“क्यों बीरबल! ये तोते क्या कह रहे हैं?” बीरबल ने अदब के साथ उत्तर दिया–“हुज़ूर, आपका अधर में लटका महल तय्यार हो रहा है। उसमें ये पेशराज और बढ़ई लोग लगे हुये हैं। सब सामान एकत्रित हो जाने पर महल बनना शुरू होगा।” बीरबल की इस बुद्धिमानी पर बादशाह अकबर हर्षित हुआ और उसको बहुत-सा धन देकर विदा किया।