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अकबर का संदेह

अकबर का संदेह कहानी में बीरबल की हाज़िर-जवाबी और कुशाग्र बुद्धि का परिचय मिलता है। पढ़िए यह दिलचस्प कहानी और जानिए बीरबल ने कैसे दूर किया अकबर का संदेह। शेष कहानियाँ यहाँ पढ़ें – अकबर-बीरबल की कहानियां

एक दिन बीरबल और बादशाह में बहुत देर तक वार्तालाप होने पर भी उस बीच कोई हँसी की बात नहीं आई। इस कारण अकबर ने अपने मन में सोचा, “कुछ नहीं, बीरबल स्वाभाविक बुद्धिमान नहीं है, बल्कि इधर-उधर से कुछ व्यवहार की बातें संग्रह कर बुद्धिमान बन बैठा है। एक स्वाभाविक बुद्धिमान को इतनी देर की वार्तालाप में हास्यरस ला देना कोई बड़ी बात न थी। अगर बीरबल ने ऐसा किया होता, तो वार्तालाप के साथ-ही-साथ मेरा मनोरंजन भी हो जाता। ऐसे मूर्ख को अपने पास रखने से कोई लाभ नहीं है।”

मन में ऐसी दृढ़ धारणा बनाकर अकबर प्रकट रूप से बोला, “बीरबल, आज मुझे तेरी बुद्धि की थाह लग गयी।”

बीरबल उड़ती चिड़िया की दुम पहचानने वाला व्यक्ति था। इतने ही उद्गार से उसे निश्चित हो गया कि बादशाह अकबर मनोरंजन चाहता था, जो उसको अभी तक नहीं मिला। वह अकबर का संदेह समझ चुका था।

बीरबल अकबर की बात काटकर बोला, “पृथ्वीनाथ! अब मेरे शरीर में आपको बुद्धि का लेश-मात्र भी नहीं दिखाई पड़ेगा। आप उसे क्योंकर देख सकेंगे। मेरी बुद्धि का निवास-स्थान तो एकमात्र मेरा दिमाग़ है। यदि आप उसे देखने के लिये अकुला रहे हैं, तो आपकी मंशा पूरी हो जायगी। केवल पहले-से पागल बन जाइये।”

इतना सुनते ही अकबर का संदेह दूर हो गया। वे संगति के प्रभाव से बहुत कुछ सुधर गए थे। वह उसके प्रति दुर्बुद्धि का प्रयोग करना उचित न समझकर चुप हो गए। इसीलिए कहा गया है कि अच्छी संगत से अच्छी और बुरी संगत से बुरी बुद्धि उत्पन्न होती है।

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