व्यसनी की लत – अकबर बीरबल स्टोरी
“व्यसनी की लत” अकबर और बीरबल की रोचक कहानी है, जिसमें बीरबल की सूक्ष्म बुद्धि और गहरी समझ का परिचय मिलता है। अकबर और बीरबल की दूसरी स्टोरी पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ – अकबर-बीरबल की कहानियाँ।
एक दिन बादशाह अकबर बीरबल के साथ नगर में होकर हवाखोरी के लिए निकला था।
एक जगह नुक्कड़ पर उसे एक औरत दिखाई पड़ी। वह महा-फूहड़ देख पड़ती थी। उसके मोटे-मोटे होठों के बीच से दो बड़े-बड़े दाँत बाहर को झाँक रहे थे। नाक से पोटा जारी था। मलिन वस्त्र, खुले बाल और शरीर पर मिट्टी-पानी मिश्रित दाग़ पड़े हुए थे। बात करते समय उस स्त्री के मुँह से थूक बाहर निकला आता था। कहाँ तक कहें, वह सर्वांग फूहड़ थी।
राजा की तो बात ही अलग है। उसके हाथ के स्पर्श किये फल तक भी किसी रंक का खाने को जी नहीं चाहता था।
वह स्त्री गर्भिणी थी। यह देखकर बादशाह अकबर को बड़ा आश्चर्य हुआ और वे बीरबल से बोले, “बीरबल! ज़रा कामदेव का प्रबल प्रभाव तो देखो। जिसके देखने मात्र से घृणा उत्पन्न होती है, उसके साथ रमण करने वाला भला कैसा होगा?”
बीरबल ने उत्तर दिया, “पृथिवीनाथ! भूखे को जूठा मीठा नहीं सूझता। निद्रा देवी के आवाहन के समय मुलायम सेज वा ज़मीन का विचार नहीं उठता। उसी प्रकार काम की ज्वाला के सामने भी भले-बुरे का परिज्ञान भूल जाता है। उस समय काम से पीड़ित व्यक्ति को न रूप सूझता है न रंग। आपको अन्वेषण करने पर ऐसे बहुतेरे पुरुष मिलेंगे जो देखने में तो बड़े सुन्दर और फिटिक बाज होंगे, परन्तु ऐसी-ऐसी गलीज जगहों में उन्हीं का नम्बर निकलता है।”
अकबर ने कहा, “हाँ, तुम्हारा कहना भी सत्य हो सकता है। इसलिये मैं चाहता हूँ कि इससे रमण करने वाले की खोज की जाय। मैं उसे देखना चाहता हूँ। बीरबल बोला, “शायद कुछ देर अगल-बगल के लोगों से पूछताछ करने पर कुछ भेद खुले।”
ऐसा विचार कर वे वहाँ से कुछ दूर निकल गये, परन्तु बीरबल को उस बात की ही धुन बँघी रही। उसका दिमाग़ बराबर उसी स्त्री की तरफ लगा हुआ था।
थोड़ी देर बाद एक ऐसी घटना घटी कि एक कामी पुरुष उसके बगल से होकर निकला और उस स्त्री से कुछ संकेत द्वारा कहकर आप आगे निकल गया। वह देखने में किसी उच्च कुल का जान पड़ता था, परन्तु स्वभाव से लम्पट प्रकट होता था। बीरबल ने उसे बादशाह को दिखाकर कहा, “पृथिवीनाथ! यही पुरुष उस स्त्री का यार जान पड़ता है।”
बादशाह अकबर को बीरबल की बातों से आश्चर्य हुआ और वे बोले, “इसपर कैसे विश्वास किया जाय?” बीरबल ने उत्तर दिया, “उसकी तरफ कुछ देर तक ध्यानपूर्वक देखने से आपको स्वयं सिद्ध हो जायगा।”
बादशाह ने बीरबल के कहने का अनुसरण किया। वे अनजानों की तरह उसकी दृष्टि बचाकर बराबर उसी तरफ देखते रहे। कुछ कालोपरान्त वह लम्पट फिर घूम कर आया और अंगुली के संकेत से उसे कुछ कहकर आप अग्रसर हुआ। वह स्त्री भी उसके पीछे चली। कुछ देर के बाद वे दोनों एक गली में मुड़कर इनकी आँखों से ओझल हो गये।
यह देखकर बादशाह अकबर का भ्रम मिट गया और उन्हें उस व्यक्ति का लम्पट होना निश्चित हो गया। परन्तु फिर भी उधर ही दृष्टि अड़ाये रहे। अब ये दोनों आगे बढ़े। बादशाह को बीरबल को परख पर बड़ा आश्चर्य हो रहा था। इसलिए बीरबल को छेड़कर बोले, “बीरबल! तुम्हारी परख तो बड़ी सच्ची निकली। परन्तु यह तो बताओ कि पहले तुमने उसको कैसे पहचाना था।”
बीरबल बोला, “पृथिवीनाथ! यह सब आँखों की खूबियाँ हैं। हम लोग नगर में निकलते हैं तो बराबर रास्ते में आने जाने वालों की चाल ढाल का निरीक्षण किया करते हैं। जिससे आँखों को मनुष्यों से मिलकर वा दूर से देखकर उनके आचरण समझ लेने की शक्ति प्राप्त हो गई है।
मैं बहुत देर से बराबर उस लम्पट की हरकतों को देख रहा था। पहले जब वह आया तो उसके हाथ पर केवल खैनी थी। चूने की तलाश में अगल बगल की दीवालों को देखता जा रहा था। देवात् एक सण्डास पर ताज़ा चूना लगाया गया था। उसने झट अँगुलियों सें चूना पोंछकर खेनी बनाकर खा लिया।
अब आप ही बतलावें कि जो सण्डास का चूना खैनी में मिलाकर खाने में नहीं हिचकता, उसके लिये यह काम करना कौन-सा आश्चर्य है। उसी समय मुझे विदित हो गया कि यह व्यक्ति व्यसनों का सच्चा ग़ुलाम है।”
अकबर को बीरबल की ऐसी गुप्त पहिचान से बड़ी प्रसन्नता हुई और उसने घर आकर बीरबल को एक जोड़ी दुशाला पारितोषिक दिया।