अरे बावरे – स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया
“अरे बावरे” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना 14 अप्रैल सन् 1968 में की गयी थी। इसमें कवि आशाओं के धूमिल होने पर एक तरह की विरक्ति का भाव दर्शा रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
व्यर्थ आँसू बहाता अरे बावरे-
कौन किसका हुआ देख संसार में।
खिल उठी इक कली भोर की छाँव में
झूमती-सी पवन गुनगुनाने लगी
बीन बजने लगी प्रीति के गाँव में
मखमली नींद तारों को आने लगी।
दूसरे क्षण कली डाल से चू पड़ी
अनमनी भीड़ भ्रमरों की जाने लगी
लुट गयी बीच में ही लजीली दुल्हन
है रुदन गीत ही भृंग झंकार में।
साँस आई तभी गीत जलने लगे
रात रानी कहीं पर महकने लगी
प्रीति की डोर में बाँध कर ज़िन्दगी
प्राण देने शलभ भीड़ जुड़ने लगी
देखते-देखते दीप की वह शिखा
चूम ली खाक शलभों की उड़ने लगी
यों प्रणय की कहानी अधूरी रही
कब मिला सुख यहाँ पर किसे प्यार में।
नील आकाश में देख तारे बहुत
प्यार की तारिका जगमगाने लगी
एक हल्की हँसी शरबती ओठ पर
चैत की चाँदनी बन लुभाने लगी
बँध गया कुंतलों में महकता पवन
पूनमी चितवनें रस पिलाने लगीं
एक बदली उठी तारिकायें छिपी
ओस रोती रही व्यर्थ उपचार में।
दिनांक 14-4-68
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।