ग्रंथधर्म

महाभारत का आस्तीक पर्व – Mahabharat Astik Parv in Hindi

आस्तीक पर्व महाभारत के प्रथम पर्व आदिपर्व का पाँचवाँ उपपर्व है। इसमें 46 अध्याय और कुल 1108 श्लोक हैं। आस्तीक पर्व अपने में मुख्यतः जनमेजय के सर्पयज्ञ की कथा को समेटे हुए है। शेष महाभारत हिंदी में पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – महाभारत कथा

इस पर्व में शौनक के सर्पयज्ञ पूर्ण न हो पाने के प्रश्न का उत्तर उग्रश्रवा ऋषि देते हैं। कथा समुद्र मंथन से आरंभ होती है। तत्पश्चात् कश्यप की दोनों पत्नियों कद्रू और विनता की कथाएँ इसमें समाहित हैं। इसके बाद परीक्षित का प्रकरण आता है। तदन्तर आस्तीक पर्व में आस्तीक का उपाख्यान आता है कि कैसे उन्होंने सर्प यज्ञ को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। पढ़ें आस्तीक पर्व के सभी अध्याय–

  1. तेरहवाँ अध्याय – जरत्कारु से पितरों का अनुरोध
  2. चौदहवाँ अध्याय – जरत्कारु का विवाह
  3. पंद्रहवाँ अध्याय – आस्तीक का जन्म
  4. सोलहवाँ अध्याय – कश्यप के पुत्रों की उत्पत्ति
  5. सत्रहवाँ अध्याय – समुद्र मंथन की चर्चा
  6. अट्ठारहवाँ अध्याय – समुद्र मंथन की कथा
  7. उन्नीसवाँ अध्याय – अमृत मंथन की समाप्ति
  8. बीसवाँ अध्याय – सर्पों को शाप
  9. इक्कीसवाँ अध्याय – समुद्र का विस्तारसे वर्णन
  10. बाईसवाँ अध्याय – समुद्र-दर्शन की कथा
  11. तेईसवाँ अध्याय – गरुड का जन्म
  12. चौबीसवाँ अध्याय – सूर्यदेव का कोप
  13. पच्चीसवाँ अध्याय – सर्पों की मूर्च्छा
  14. छब्बीसवाँ अध्याय – इंद्र द्वारा वर्षा
  15. सत्ताईसवाँ अध्याय – रामणीयक द्वीपके मनोरम वनका वर्णन तथा गरुडका दास्यभावसे छूटनेके लिये सर्पोंसे उपाय पूछना
  16. अट्ठाईसवाँ अध्याय – गरुडका अमृतके लिये जाना और अपनी माताकी आज्ञाके अनुसार निषादोंका भक्षण करना
  17. उनतीसवाँ अध्याय – कश्यपजीका गरुडको हाथी और कछुएके पूर्वजन्मकी कथा सुनाना, गरुडका उन दोनोंको पकड़कर एक दिव्य वटवृक्षकी शाखापर ले जाना और उस शाखाका
  18. तीसवाँ अध्याय – गरुडका कश्यपजीसे मिलना, उनकी प्रार्थनासे वालखिल्य ऋषियोंका शाखा छोड़कर तपके लिये प्रस्थान और गरुडका निर्जन पर्वतपर उस शाखाको छोड़ना
  19. इकत्तीसवाँ अध्याय – इन्द्रके द्वारा वालखिल्योंका अपमान और उनकी तपस्याके प्रभावसे अरुण एवं गरुडकी उत्पत्ति
  20. बत्तीसवाँ अध्याय – गरुडका देवताओंके साथ युद्ध और देवताओंकी पराजय
  21. तेंतीसवाँ अध्याय – गरुडका अमृत लेकर लौटना, मार्गमें भगवान् विष्णुसे वर पाना एवं उनपर इन्द्रके द्वारा वज्र-प्रहार
  22. चौंतीसवाँ अध्याय – इन्द्र और गरुडकी मित्रता, गरुडका अमृत लेकर नागोंके पास आना और विनताको दासीभावसे छुड़ाना तथा इन्द्रद्वारा अमृतका अपहरण
  23. पैंतीसवाँ अध्याय – मुख्य-मुख्य नागोंके नाम
  24. छत्तीसवाँ अध्याय – शेषनागकी तपस्या, ब्रह्माजीसे वर-प्राप्ति तथा पृथ्वीको सिरपर धारण करना
  25. सैंतीसवाँ अध्याय – माताके शापसे बचनेके लिये वासुकि आदि नागोंका परस्पर परामर्श
  26. अड़तीसवाँ अध्याय – वासुकिकी बहिन जरत्कारुका जरत्कारु मुनिके साथ विवाह करनेका निश्चय
  27. उनतालीसवाँ अध्याय – ब्रह्माजीकी आज्ञासे वासुकिका जरत्कारु मुनिके साथ अपनी बहिनको ब्याहनेके लिये प्रयत्नशील होना
  28. चालीसवाँ अध्याय – जरत्कारुकी तपस्या, राजा परीक्षित्‌का उपाख्यान तथा राजाद्वारा मुनिके कंधेपर मृतक साँप रखनेके कारण दुःखी हुए कृशका शृंगीको उत्तेजित करना
  29. एकतालीसवाँ अध्याय – शृंगी ऋषिका राजा परीक्षित्‌को शाप देना और शमीकका अपने पुत्रको शान्त करते हुए शापको अनुचित बताना
  30. बायलीसवाँ अध्याय – शमीकका अपने पुत्रको समझाना और गौरमुखको राजा परीक्षित्‌के पास भेजना, राजाद्वारा आत्मरक्षाकी व्यवस्था तथा तक्षक नाग और काश्यपकी बातचीत
  31. तैंतालीसवाँ अध्याय – तक्षकका धन देकर काश्यपको लौटा देना और छलसे राजा परीक्षित्‌के समीप पहुँचकर उन्हें डँसना
  32. चौवालीसवाँ अध्याय – जनमेजयका राज्याभिषेक और विवाह
  33. पैंतालिसवाँ अध्याय – जरत्कारुको अपने पितरोंका दर्शन और उनसे वार्तालाप
  34. छियालीसवाँ अध्याय – जरत्कारुका शर्तके साथ विवाहके लिये उद्यत होना और नागराज वासुकिका जरत्कारु नामकी कन्याको लेकर आना
  35. सैंतालीसवाँ अध्याय – जरत्कारु मुनिका नागकन्याके साथ विवाह, नागकन्या जरत्कारुद्वारा पतिसेवा तथा पतिका उसे त्यागकर तपस्याके लिये गमन
  36. अड़तालीसवाँ अध्याय – वासुकि नागकी चिन्ता, बहिनद्वारा उसका निवारण तथा आस्तीकका जन्म एवं विद्याध्ययन
  37. उनचासवाँ अध्याय – राजा परीक्षित्‌के धर्ममय आचार तथा उत्तम गुणोंका वर्णन, राजाका शिकारके लिये जाना और उनके द्वारा शमीक मुनिका तिरस्कार
  38. पचासवाँ अध्याय – शृंगी ऋषिका परीक्षित्‌को शाप, तक्षकका काश्यपको लौटाकर छलसे परीक्षित्‌को डँसना और पिताकी मृत्युका वृत्तान्त सुनकर जनमेजयकी तक्षकसे बदला लेनेकी प्रतिज्ञा
  39. इक्यबनवाँ अध्याय – जनमेजयके सर्पयज्ञका उपक्रम
  40. बावनवाँ अध्याय – सर्पसत्रका आरम्भ और उसमें सर्पोंका विनाश
  41. तिरपनवाँ अध्याय – सर्पयज्ञके ऋत्विजोंकी नामावली, सर्पोंका भयंकर विनाश, तक्षकका इन्द्रकी शरणमें जाना तथा वासुकिका अपनी बहिनसे आस्तीकको यज्ञमें भेजनेके लिये कहना
  42. चौवनवाँ अध्याय – माताकी आज्ञासे मामाको सान्त्वना देकर आस्तीकका सर्पयज्ञमें जाना
  43. पचपनवाँ अध्याय – आस्तीकके द्वारा यजमान, यज्ञ, ऋत्विज्, सदस्यगण और अग्निदेवकी स्तुति-प्रशंसा
  44. छप्पनवाँ अध्याय – राजाका आस्तीकको वर देनेके लिये तैयार होना, तक्षक नागकी व्याकुलता तथा आस्तीकका वर माँगना
  45. सत्तावनवाँ अध्याय – सर्पयज्ञमें दग्ध हुए प्रधान-प्रधान सर्पोंके नाम
  46. अट्ठावनवाँ अध्याय – यज्ञकी समाप्ति एवं आस्तीकका सर्पोंसे वर प्राप्त करना

वस्तुतः डुंडुभ की बातें सुनकर पिछले पर्व पौलोम पर्व में रुरु सर्प-यज्ञ का कारण जानना चाहता है, जिसका उत्तर इस पर्व में प्राप्त होता है। जनमेजय के सर्प यज्ञ का मूल कारण सर्प दंश से उसके पिता की मृत्यु था। उसके मंत्री आदि उसे इस सर्प-सत्र के लिए सहमत कर लेते हैं। आस्तीक की कथा में–वही जिनके नाम पर पर्व का नाम आस्तीक पर्व है–इसे रोकने के लिए किए गए प्रयासों का उल्लेख है। जनमेजय के पिता परीक्षित की तक्षक नामक साँप के काटने से हुई मृत्यु के बाद जो सर्पयज्ञ आरंभ होता है, आस्तीक उसी को रोकने का प्रयास करते हैं। यही आस्तीक पर्व की कथा का सार है।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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