धर्म

बाबा मोहन राम चालीसा

बाबा मोहन राम चालीसा का पाठ न केवल सभी संकटों का नाश करता है और बिगड़ते कामों को बना देता है, बल्कि मन की सभी अभिलषाओं की पूर्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। खोली वाले मोहन बाबा की कृपा सब दुःखों की एक औषधि है। जो यह औषधि लेता है, उसके सभी रोग-शोक दूर भाग जाते हैं। मोहन बाबा की ज्योत का प्रकाश ही बाबा मोहन राम चालीसा के प्रत्येक शब्द में है। इसका पाठ अद्भुत चमत्कारी है। पढ़ें बाबा मोहन राम चालीसा–

यह भी पढ़ें – बाबा मोहन राम की आरती

जै मन मोहन जग विख्याता।
दीन दुखियों के तुम हो दाता॥

तुम्हरो ध्यान सभी जन धरते।
तुम रक्षा भक्तों की करते॥

काली खोली वास तुम्हारा।
करे सभी जग का निस्तारा॥

ज्योति गुफा में प्यारी जलती।
दूर दूर से दुनिया आती॥

राजिस्थान मिलकपुर ग्राम।
सुन मोहन का सुन्न धाम॥

यहाँ पर जन आ करे बसेरा।
हर दम मारे मोहन फेरा॥

ज्योति में ज्योति मिलाओ मन की।
निस दिन सेवा कर मोहन की॥

जो कोई करत मन से सेवा।
मोहन पार लगावे खेवा॥

सेवा यही हृदय में धर लो।
सबको छोड़ बाप एक कर लो॥

मन को करो न डामा डोल।
दुनिया समझो पोलम पोल॥

अब सुनो सुनाओ मोहन गाथा।
नर और नारी रगड़ें माथा॥

पागल भी आ रज में लेटे।
बांझ नार को दे रहे बेटे॥

ऐसे मोहन भोले भाले।
दुःखियों के दुःख हरने वाले॥

कोढ़िन को वो देते काया।
निर्धन को भर देते माया॥

अंतरयामी मोहन राम।
अड़े समारे सबके काम॥

भूत प्रेत निकट नहीं आवें।
मोहन नाम सुनत भग जावें॥

घी की ज्योति जले दिन बांकी।
मंदिर में मोहन के झांकी॥

सीता फल की गहरी छाया।
सोरन कर दई कोढ़िन काया॥

और सुनो मोहन करतूत।
साठ साल की ले रही पूत॥

नर नारी आ खाबे खींचर।
चुग रहे चुग्गा मोर कबूतर॥

परबत ऊपर बड़ लहरावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

प्रेम भक्ति से जो तुम्हें ध्यावे।
दुःख दारिद्र निकट नहीं आवे॥

मैं मनमोहन दीन घनेरो।
तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो॥

काम क्रोध मद लोभ न सतावे।
रिपु मन मोह अति भरमावै॥

करुऊ कृपा मम खोली वाला।
दास जान मोह करो निहाला॥

जब तक जीऊँ दरश तेरो पाऊँ।
निस दिन ध्यान चरन रज खाऊँ॥

कलयुग मैं तेरी कला सवाई।
कथी न जाय तेरी प्रभुताई॥

तेरी अजब निराली भान।
सत बुद्धि दो मोहन आन॥

हरदम सेवा करूँ तुम्हारी।
धूप दीप नैवेद्य पान सुपारी॥

रोम रोम में मोहन राम।
स्वास स्वास में तुम्हारा नाम॥

मैं अति दीन गरीब दुखहारी।
हरो कलेश भय भंजन भारी॥

नित्य प्रति पांच पाठ कर भाई।
लोक लाज करि सब देओ भुलाई॥

मोहन चालीसा पढ़े पढ़ावे।
अंत समय मोक्ष पद पावे॥

पीछे ना कोई रहे कलेश।
सीधा पहुँचे मोहन देश॥

अब भी मूरख कर कुछ चेत।
अपने उर में मोहन देख॥

विनती यही मेरी अरदास।
मुझे बना लो अपना दास॥

निस दिन तेरी सेवा चाहूँ।
जनम जनम ना नाम भुलाऊँ॥

तेरी भक्ति करो हमेश।
मेरी तुम से यही सन्देश॥

मेरी बोझिल जर जर नईया।
तुम बिन मोहन कौन खिवैया॥

राधे याम ना चाहे मान।
तेरे चरनों में निकले प्रान॥

॥दोहा॥
ज्योति जले उर भियसती ठंडे बढ़ की छाय।
मोहन राम मुंशी रटत हरदम घट से माय॥

॥ इति श्री बाबा मोहन राम चालीसा ॥

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version