भारतीय किसान पर निबंध
“भारतीय किसान पर निबंध” एक कृषक के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों और पहलुओं पर चर्चा करता है। किसान का जीवन त्याग-तपस्या का जीवन होता है। अन्नदाता किसान यद्यपि दिन-रात मेहनत करके खेती करता है, फिर भी उसे वह नहीं मिल पाता जिसका वह हकदार है। यद्यपि अब कृषि के क्षेत्र में कई बदलाव और सुधार जीवन-स्तर को ऊपर ले जा रहे हैं। इन सभी पक्षों की चर्चा करता है “भारतीय किसान पर निबंध”।
परिश्रम, त्याग और तपस्वी जीवन
“किसान” कठोर परिश्रम, त्याग और तपस्वी जीवन का दूसरा नाम है। किसान का जीवन कर्मयोगी की भाँति मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की साधना में लीन रहता है। वीतराग संन्यासी की भाँति उसका जीवन परम संतोषी है। तपती धूप, कड़कती सर्दी और घनघोर वर्षा ऋतु में तपस्वी की भाँति वह अपनी साधना में अडिग रहता है। सभी ऋतुएँ उसके सामने हँसती-खेलती निकल जाती हैं और वह उनका आनन्द लूटता है। यह उसके जीवन की विशेषता है।
सृष्टि का पालन विष्णु भगवान का कार्य है। मानव-समाज का पालन किसान का धर्म है। अतः किसान में हम भगवान श्री हरि के दर्शन कर सकते हैं। प्राणिमात्र के जीवन को पालने वाले किसान का तपस्या-पूर्ण त्याग, अभिमान रहित उदारता, क्लान्ति रहित परिश्रम उसके जीवन के अंग हैं। उसमें सुख को लालसा नहीं होती। कारण, दुःख उसका जीवन साथी है। संसार के प्रति अनभिज्ञता और अज्ञानता से उसमें आत्म-ग्लानि नहीं होती, न दरिद्रता में दीनता का भाव-बोध होता है। ये उसके जीवन के गुण हैं।
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किसान की दिनचर्या
भारतीय किसान पर निबंध में किसान की कठिन जीवन-चर्या की चर्चा आवश्यक है। किसान अहर्निश कर्म-रत रहता है। वह ब्रह्म-मुहूर्त में उठता है, पुत्र-सम बैलों को भोजन परोसता है, स्वयं हाथ-मुँह धो, कलेवा कर कर्मभूमि ‘खेत’ में पहुँच जाता है। जहाँ उषा की किरणें उसका स्वागत करती हैं। वहाँ वह दिनभर कठोर परिश्रम करेगा। स्नान- ध्यान, भजन-भोजन, विश्राम, सब कुछ कर्मभूमि पर ही करेगा। गोधूलि के समय अपने बैलों के साथ हल सहित घर लौटेगा। धन्य है किसान का ऐसा कर्ममय जीवन!
चिलचिलाती धूप, पसीने से तर शरीर, पैरों में छाले डाल देने वाली तपन, उस समय सामान्य जन छाया में विश्राम करता है, किन्तु उस महामानव किसान को यह विचार ही नहीं आता कि धूप के अतिरिक्त कहीं छाया भी है।
मूसलाधार वर्षा हो रही है, बिजली कड़क रही है, भयभीत जन-गण आश्रय ढूँढ रहा है, किन्तु यह देवता-पुरुष कर्मभूमि में अपनी फसल की रक्षा में संलग्न है। इन्द्र देवता की ललकार का सामना कर रहा है। वाह रे साहसिक जीवन!
प्रकृति के पवित्र वातावरण और शुद्ध वायुमण्डल में रहते हुए भी वह दुर्बल है, किन्तु उसकी हड्डियाँ वज्र के समान कठोर हैं। शरीर स्वस्थ है, व्याधि से कोसों दूर है!
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किसान की सेवा निष्काम और स्वार्थ में परमार्थ
रात-दिन के कठोर जीवन में मनोरंजन के लिए स्थान कहाँ? रेडियो पर सरस गाने सुनकर, यदा-कदा गाँव में आई भजन-मण्डली के गीत सुनकर या कचहरी की तारीख भुगतने अथवा आवश्यक वस्तुओं की खरीद के लिए शहर आने पर चलचित्र देखने में ही उसका मनोरंजन सम्भाव्य है। जहाँ किसान अपेक्षाकृत समृद्ध है, वहाँ टीवी भी मनोरंजन का साधन है।
भारतीय कृषक-जीवन के भाष्यकार मुंशी प्रेमचन्द का विचार है, “किसान पक्का स्वार्थी होता है, इसमें सन्देह नहीं। उसकी गाँठ से रिश्वत के पैसे बड़ी मुश्किल से निकलते हैं, भाव-ताव में भी वह चौकस होता है। वह किसी के फुसलाने में नहीं आता। दूसरी ओर उसका सम्पूर्ण जीवन प्रकृति का प्रतिरूप है। वृक्षों से फल लगते हैं, उन्हें जनता खाती है। खेती में अनाज होता है–यह संसार के काम आता है। गाय के थन में दूध होता है–वह दूध नहीं पीता, दूसरे ही उसे पीते हैं। इसी प्रकार किसान के परिश्रम की कमाई में दूसरों का साझा है, अधिकार है। उनके स्वार्थ में परमार्थ है और उसकी सेवा निष्काम है।”
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भारतीय कृषक कर्मयोगी और धर्मभीरू
एक ओर भारतीय कृषक कर्मयोगी है, दूसरी ओर धर्मभीरु भी है। गाँव का पण्डित उसके लिए भगवान गणेश का प्रतिनिधि है। उसकी नाराजगी उसके लिए अभिशाप है । इस शाप-भय ने इहलोक में उसे नरक भोगने को विवश कर रखा है। तीसरी ओर, वह कायदे-कानून से अनभिज्ञ भी है, तो साहूकार अथवा बैंक का कर्जदार भी है। निम्न वर्ग का किसान कर्ज में जन्म लेता है, साहूकारी-प्रथा में जीवन-भर पिसता है और कर्ज में डूबा ही मर जाता है। उसकी मेहनत की कमाई पर ये नर-गिद्ध ऐसे टूटते हैं कि उसका सारा माँस नोंच-नोंच कर उसे ठठरी बना देते हैं। ब्याज का एक-एक पैसा छुड़ाने के लिए वह घण्टों उनकी चिचोरी करता है।
इस तपस्वी के जीवन की कुछ कमजोरियाँ भी हैं। कई किसान शिक्षा का महत्व कम समझते हैं। अशिक्षा के कारण बातों-बातों में लड़ पड़ना, लट्ट चलाना, सिर फोड़ना या फुड़वा लेना; वंशानुवंश शत्रुता पालना, किसी के खेत जलवा देना, फसल कटवा देना, जनता के प्रहरी पुलिस से मिलकर षड्यन्त्र रचना, मुकदमेबाजी को कुल का गौरव मानकर उस पर बेतहाशा खर्च करना, ब्याह-शादी में चादर से बाहर पैर पसारकर झूठी शान दिखाना, इसके जीवन के अंधेरे पल को प्रकट करने वाले तत्त्व हैं।
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उपसंहार – भारतीय किसान पर निबंध
भारतीय किसान पर निबंध में हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि आज किसान का जीवन संक्रमण काल से गुजर रहा है। एक ओर वह शिक्षित हो गया है; खेती के लिए नये उपकरणों और सघन खेती करने के साधनों का प्रयोग करता है। जिससे आर्थिक सम्पन्नता की ओर अग्रसर है। रहन-सहन में नागरिकता की स्पष्ट छाप उसके जीवन पर प्रकट हो रही है, तो दूसरी ओर उसमें उच्छृंखलता व उद्दण्डता और बेईमानी, चालाकी और आधुनिक जीवन की विषमताएँ, कुसंस्कार और कुरीतियाँ घर कर रही हैं । अब उसके बेटे-पोते किसानी से नाता तोड़कर बाबू बनने लगे हैं। खेतों की सुगन्ध-युक्त हवा में उन्हें धूल अधिक दिखाई देने लगी है, जिससे वस्त्र खराब होने का भय है।
इस कठोर परिश्रमी, धर्मभीरु और स्वाभिमानी भारतीय कृषक का जीवन भविष्य में किन विचित्र धाराओं में प्रवाहित होगा, यह कहना कठिन है।
भोले-भाले कृषक देश के अद्भुत बल हैं।
राजमुकुट के रत्न कृषक के श्रम के फल हैं॥
कृषक देश के प्राण, कृषक देश के कल हैं।
राजदण्ड से अधिक मान के भाजन हल हैं॥ – लोचनप्रसाद पाण्डेय
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