ग्रंथधर्म

भृग का अग्निदेव को शाप – महाभारत का छठा अध्याय (पौलोम पर्व)

“भृग का अग्निदेव को शाप” नामक यह कथा महाभारत के आदिपर्व के अन्तर्गत पौलोमपर्व में आती है। यह पौलोम पर्व का तीसरा अध्याय है और इसमें 14 श्लोक हैं। यह कथा पिछले अध्याय में पुलोमा और अग्नि संवाद के आगे शुरू होती है। पढ़ें भृग का अग्निदेव को शाप देने के पीछे क्या कारण था, महर्षि च्यवन का जन्म कैसे हुआ और किस तरह भस्म हुआ पुलोमा राक्षस। महाभारत के शेष अध्याय पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – महाभारत हिंदी में

सौतिरुवाच
अग्नेरथ वचः श्रुत्वा तद् रक्षः प्रजहार ताम् ⁠।
ब्रह्मन् वराहरूपेण मनोमारुतरंहसा ॥⁠ १ ॥
उग्रश्रवा जी कहते हैं—ब्रह्मन्! अग्नि का यह वचन सुनकर उस राक्षस ने वराह का रूप धारण कर के मन और वायु के समान वेग से उसका अपहरण किया ॥⁠ १ ॥

ततः स गर्भो निवसन् कुक्षौ भृगुकुलोद्वह ⁠।
रोषान्मातुश्च्युतः कुक्षेश्च्यवनस्तेन सोऽभवत् ॥⁠ २ ॥
भृगुवंश-शिरोमणे! उस समय वह गर्भ जो अपनी माता की कुक्षि में निवास कर रहा था, अत्यन्त रोष के कारण योग-बल से माता के उदर से च्युत होकर बाहर निकल आया। च्युत होने के कारण ही उसका नाम च्यवन हुआ ॥⁠ २ ॥

तं दृष्ट्वा मातुरुदराच्च्युतमादित्यवर्चसम् ⁠।
तद् रक्षो भस्मसाद्भूतं पपात परिमुच्य ताम् ॥⁠ ३ ॥
माता के उदर से च्युत होकर गिरे हुए उस सूर्य देव के समान तेजस्वी गर्भ को देखते ही वह राक्षस पुलोमा को छोड़कर गिर पड़ा और तत्काल जलकर भस्म हो गया ॥⁠ ३ ॥

सा तमादाय सुश्रोणी ससार भृगुनन्दनम ।
च्यवनं भार्गवं पुत्रं पुलोमा दुःखमूर्च्छिता ॥⁠ ४ ॥
सुन्दर कटिप्रदेश वाली पुलोमा दुःख से मूर्च्छित हो गयी और किसी तरह सँभलकर भृगुकुल को आनन्दित करने वाले अपने पुत्र भार्गव च्यवन को गोद में लेकर ब्रह्मा जी के पास चली ॥⁠ ४ ॥

तां ददर्श स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः ⁠।
रुदतीं बाष्पपूर्णाक्षीं भृगोर्भार्यामनिन्दिताम् ॥⁠ ५ ॥
सान्त्वयामास भगवान् वधूं ब्रह्मा पितामहः ⁠।
अश्रुबिन्दूद्भवा तस्याः प्रावर्तत महानदी ॥⁠ ६ ॥

सम्पूर्ण लोकों के पितामह ब्रह्मा जी ने स्वयं भृगु की उस पतिव्रता पत्नी को रोती और नेत्रों से आँसू बहाती देखा। तब पितामह भगवान ब्रह्मा ने अपनी पुत्र-वधू को सान्त्वना दी—उसे धीरज बँधाया। उसके आँसुओं की बूँदों से एक बहुत बड़ी नदी प्रकट हो गयी ॥⁠ ५-६ ॥

आवर्तन्ती सृतिं तस्या भृगोः पन्त्यास्तपस्विनः ⁠।
तस्या मार्गं सृतवतीं दृष्ट्वा तु सरितं तदा ॥⁠ ७ ॥
नाम तस्यास्तदा नद्याश्चक्रे लोकपितामहः ⁠।
वधूसरेति भगवांश्च्यवनस्याश्रमं प्रति ॥⁠ ८ ॥
वह नदी तपस्वी भृगु की उस पत्नी के मार्ग को आप्लावित किये हुए थी। उस समय लोकपितामह भगवान् ब्रह्मा ने पुलोमा के मार्ग का अनुसरण करने वाली उस नदी को देखकर उसका नाम वधूसरा रख दिया, जो च्यवन के आश्रम के पास प्रवाहित होती है ॥⁠ ७-८ ॥

स एव च्यवनो जज्ञे भृगोः पुत्रः प्रतापवान् ⁠।
तं ददर्श पिता तत्र च्यवनं तां च भामिनीम् ⁠।

स पुलोमां ततो भार्यां पप्रच्छ कुपितो भृगुः ॥⁠ ९ ॥
इस प्रकार भृगु-पुत्र प्रतापी च्यवन का जन्म हुआ। तदनन्तर पिता भृगु ने वहाँ अपने पुत्र च्यवन तथा पत्नी पुलोमा को देखा और सब बातें जानकर उन्होंने अपनी भार्या पुलोमा से कुपित होकर पूछा— ॥⁠ ९ ॥

भृगुरुवाच
केनासि रक्षसे तस्मै कथिता त्वं जिहीर्षते ⁠।
न हि त्वां वेद तद् रक्षो मद्भार्यां चारुहासिनीम् ॥⁠ १० ॥
भृगु बोले—कल्याणी! तुम्हें हर लेने की इच्छा से आये हुए उस राक्षस को किसने तुम्हारा परिचय दे दिया? मनोहर मुसकान वाली मेरी पत्नी तुझ पुलोमा को वह राक्षस नहीं जानता था ॥⁠ १० ॥

तत्त्वमाख्याहि तं ह्यद्य शप्तुमिच्छाम्यहं रुषा ⁠।
बिभेति को न शापान्मे कस्य चायं व्यतिक्रमः ॥⁠ ११ ॥
प्रिये! ठीक-ठीक बताओ। आज मैं कुपित होकर अपने उस अपराधी को शाप देना चाहता हूँ। कौन मेरे शाप से नहीं डरता है? किसके द्वारा यह अपराध हुआ है? ॥⁠ ११ ॥

पुलोमोवाच
अग्निना भगवंस्तस्मै रक्षसेऽहं निवेदिता ⁠।
ततो मामनयद् रक्षः क्रोशन्तीं कुररीमिव ॥⁠ १२ ॥
पुलोमा बोली—भगवन्! अग्निदेव ने उस राक्षस को मेरा परिचय दे दिया। इससे कुररी की भाँति विलाप करती हुई मुझ अबला को वह राक्षस उठा ले गया ॥⁠ १२ ॥

साहं तव सुतस्यास्य तेजसा परिमोक्षिता ⁠।
भस्मीभूतं च तद् रक्षो मामुत्सृज्य पपात वै ॥⁠ १३ ॥
आपके इस पुत्र के तेज से मैं उस राक्षस के चंगुल से छूट सकी हूँ। राक्षस मुझे छोड़कर गिरा और जलकर भस्म हो गया ॥⁠ १३ ॥

सौतिरुवाच
इति श्रुत्वा पुलोमाया भृगुः परममन्युमान् ⁠।
शशापाग्निमतिक्रुद्धः सर्वभक्षो भविष्यसि ॥⁠ १४ ॥
उग्रश्रवा जी कहते हैं—पुलोमा का यह वचन सुनकर परम क्रोधी महर्षि भृगु का क्रोध और भी बढ़ गया। उन्होंने अग्नि देव को शाप दिया—‘तुम सर्वभक्षी हो जाओगे’ ॥⁠ १४ ॥

इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि अग्निशापे षष्ठोऽध्यायः ॥⁠ ६ ॥
इस प्रकार श्री महाभारत आदि पर्व के अन्तर्गत पौलोम पर्व में भृग का अग्निदेव को शाप विषयक छठा अध्याय पूरा हुआ ॥⁠ ६ ॥

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version