ब्रज-वाणी
यह कविता ब्रज-क्षेत्र की बोली ब्रज भाषा के माधुर्य को दर्शाती है। स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया द्वारा लिखी गयी यह रचना आपके समक्ष ब्रज भाषा की मिठास और उसके महत्व का बख़ूबी वर्णन करती है–
स्याम की मूरति देखी न होती तौ मीरा कबौं यों दिबानी न होती।
खान, रहीम के मानस में, ब्रज की छबि खूब समानी न होती।
राधा-सी रानी जो होती नहीं, सतसैया की आजु निशानी न होती।
सूर की तान कों को सुनतौ, जो पै तान भरी ब्रजबानी न होती।
सूर की साँस में आइ बसी फिर मीरा की आस में जाय समानी।
देव, घनानन्द के उर में सिंगार लता बनि के लहरानी।
आलम के मन माँहि रही रसखान पियौ रस, प्रेम सौं छानी।
रसलीन, नजीर औ ताज की प्रान रहै नित आनन में ब्रजवानी।
ब्रजभूमि की पावनता सौं भरी ब्रजराज की लीलानि गावति है।
मिसुरी सौ मिठास भर्यौ याके बोलनि प्रेम-सुधा नित प्यावति है।
रसभीनी संजीवनी भावपगी, मन-प्रानन को सरसावति है।
बरसावति नेह कौ मेह सदा, ब्रजभाषा सबै हरसावति है।
यह भी पढ़ें – ब्रज भाषा में सरस्वती वन्दना
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।
अति सुंदर रचना है। स्वर्गीय कविराज श्री नवल सिंह जी ब्रज क्षेत्र के उच्चतम रचनाकार रहे हैं उनकी अनमोल रचनाएँ आज भी सर्वत्र गूंज रही हैं। आज वो इस संसार में नहीं हैं परंतु उनकी रचनाएं सर्वत्र गुंजारित हो रही हैं। कोटि-कोटि नमन ॐ ।
धन्यवाद शारदा जी। शीघ्र ही उनकी अन्य कई रचनाएँ भी आपको हिंदी पथ पर पढ़ने के लिए मिलेंगी। कृपया इसी तरह पढ़ती रहें और हमारा मार्गदर्शन करती रहें।