चित्रगुप्त जी की आरती
चित्रगुप्त जी की आरती भक्तों को नरक की पीड़ाओं और यातनाओं से मुक्ति दिलाती है तथा धन, यश और वंश में वृद्धि करती है। सनातन धर्म में चित्रगुप्त महाराज को धर्माधिकारी और प्रथम न्यायाधीश की उपाधि दी गई है। चित्रगुप्त जी की आरती (Chitragupta Ji Ki Aarti) मानव जीवन को पाप से तारने वाली कही जाती है।
ऐसी मान्यता है कि मनुष्य के जीवन काल में किए गए समस्त पाप और पुण्य का लेखा जोखा चित्रगुप्त महाराज द्वारा बहीखातों में लिखा जाता है और उसी के अनुसार मनुष्य की स्वर्ग या नरक यात्रा का निर्धारण किया जाता है। चित्रगुप्त जी की आरती से पहले कलम, दवात और बहीखातों की पूजा का विधान है।
महाराज चित्रगुप्त ब्रह्मा जी के अंश है जिनकी उत्पत्ति यमराज की सहायता और पाप-पुण्य की सही गणना के लिए हुई है। इसलिए यम द्वितीया के दिन यमराज की पूजा के बाद चित्रगुप्त जी की आरती (Chitragupta Ji Ki Aarti) करने का भी बहुत विशेष महत्व माना जाता है। व्यापारियों और कारोबारियों के बीच चित्रगुप्त महाराज की पूजा अत्यंत लोकप्रिय है। व्यापारी लोग अपनी आय-व्यय का पूरा ब्यौरा भगवान चित्रगुप्त के सामने रखते हैं और चित्रगुप्त आरती (Chitragupta Aarti) और मंत्रों का जाप करके व्यापार में उन्नति की प्रार्थना करते हैं। चित्रगुप्त जी की आरती पढ़ें। जो यह चित्रगुप्त आरती पढ़ता है उसे सभी इच्छित फल मिलते हैं व विघ्न नष्ट हो जाते हैं।
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ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे॥
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,
सन्तनसुखदायी।
भक्तों के प्रतिपालक,
त्रिभुवनयश छायी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,
पीताम्बरराजै।
मातु इरावती, दक्षिणा,
वामअंग साजै॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,
प्रभुअंतर्यामी।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन,
प्रकटभये स्वामी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
कलम, दवात, शंख, पत्रिका,
करमें अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला,
त्रिभुवनमन मोहै॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,
ब्रम्हाहर्षाये ।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे,
चरणनमें धाये ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,
यादतुम्हें कीन्हा।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं,
इच्छितफल दीन्हा॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
दारा, सुत, भगिनी,
सबअपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,
तुमतज मैं भर्ता॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
बन्धु, पिता तुम स्वामी,
शरणगहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा,
आसकरूँ जिसकी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,
प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं,
इच्छित फल पावैं॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…
न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,
पापपुण्य लिखते।
‘नानक’ शरण तिहारे,
आसन दूजी करते॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे॥
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर चित्रगुप्त जी की आरती (Chitragupta Ji Ki Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें श्री चित्रगुप्त जी की आरती रोमन में–
Read Chitragupta Ji Ki Aarti
oṃ jaya citragupta hare,
svāmījaya citragupta hare।
bhaktajanoṃ ke icchita,
phalako pūrṇa kare॥
vighna vināśaka maṃgalakartā,
santanasukhadāyī।
bhaktoṃ ke pratipālaka,
tribhuvanayaśa chāyī॥
oṃ jaya citragupta hare…
rūpa caturbhuja, śyāmala mūrata,
pītāmbararājai।
mātu irāvatī, dakṣiṇā,
vāmaaṃga sājai॥
oṃ jaya citragupta hare…
kaṣṭa nivāraka, duṣṭa saṃhāraka,
prabhuaṃtaryāmī।
sṛṣṭi samhārana, jana du:kha hārana,
prakaṭabhaye svāmī॥
oṃ jaya citragupta hare…
kalama, davāta, śaṃkha, patrikā,
karameṃ ati sohai।
vaijayantī vanamālā,
tribhuvanamana mohai॥
oṃ jaya citragupta hare…
viśva nyāya kā kārya sambhālā,
bramhāharṣāye।
koṭi koṭi devatā tumhāre,
caraṇanameṃ dhāye॥
oṃ jaya citragupta hare…
nṛpa sudāsa arū bhīṣma pitāmaha,
yādatumheṃ kīnhā।
vega, vilamba na kīnhauṃ,
icchitaphala dīnhā॥
oṃ jaya citragupta hare…
dārā, suta, bhaginī,
sabaapane svāstha ke kartā।
jāū~ kahā~ śaraṇa meṃ kisakī,
tumataja maiṃ bhartā॥
oṃ jaya citragupta hare…
bandhu, pitā tuma svāmī,
śaraṇagahū~ kisakī।
tuma bina aura na dūjā,
āsakarū~ jisakī॥
oṃ jaya citragupta hare…
jo jana citragupta jī kī āratī,
prema sahita gāvaiṃ।
caurāsī se niścita chūṭaiṃ,
icchita phala pāvaiṃ॥
oṃ jaya citragupta hare…
nyāyādhīśa baiṃkuṃṭha nivāsī,
pāpapuṇya likhate।
‘nānaka’ śaraṇa tihāre,
āsana dūjī karate॥
svāmījaya citragupta hare।
bhaktajanoṃ ke icchita,
phalako pūrṇa kare॥