कविता

दर्द ने मुझे पुकारा है (15 अगस्त 1980)

“दर्द ने मुझे पुकारा है” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 अगस्त सन् 1980 को लिखी गयी थी। इसमें अपनों के हाथों देश ने जो धोखा खाया, उसका वर्णन है। पढ़ें यह कविता–

जानें क्यों झकझोर रहा है मेरा मन मुझको
लगता है फिर किसी दर्द ने मुझे पुकारा है।

घनी उदासी के कजरारे बादल छाये हैं।
बहला सका न कोई फागुन मन तरसाये हैं
लगता है फिर पंचवटी से सीता हरण हुआ
वृद्ध जटायू पंख कटाकर के भी हारा है

लगता है फिर किसी दर्द ने मुझे पुकारा है ।

पूजा करने से पहले ही पूजा बिखर गई।
मन की भक्ति भावना जाने सहसा किधर गई।
पूजन का था समय किन्तु दूषित आचरण हुआ
भावों का बरना भी अब तो रहा कुँआरा है।

लगता है फिर किसी दर्द ने मुझे पुकारा है।।

सोचा था काँटे बीनेंगे राह बनायेंगे
अपने उपवन में गुलाब के फूल खिलायेंगे
लगता है पर मुस्कानों का अन्तिम चरण हुआ
जिधर देखता वहीं-वहीं काँटों की कारा है।

लगता है फिर किसी दर्द ने मुझे पुकारा है।

बनी धारणा अपनों को अपना ही ठगता है
मानचित्र भी अपना हमको घायल लगता है
नफरत की ज्वालाओं वाला फिर व्याकरण हुआ
मेल-जोल तो लोगों का बस झूठा नारा है
लगता है फिर किसी दर्द ने मुझे पुकारा है।

यह कविता बहुत ही मर्मस्पर्शी है और हमें जागृत होने के लिए उकसाती है। भारत के प्रति एक ज़िम्मेदार सोच विकसित करने की आवश्यकता पर इसमें ज़ोर दिया गया है। इस कविता ने निश्चित ही आपको सोचने पर विवश किया होगा। हालाँकि यह कविता निराशावादी नहीं है। कवि के अनुसार यद्यपि हमारे सामने बहुत सी मुश्किलें खड़ी हुई हैं, लेकिन हमें एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए। यही सकारात्मक नज़रिया हमें इन चुनौतियों से उबरने का मौक़ा देगा और एक नई राह दिखाएगा।

इसी नयी सोच को पैदा करने और जन-जन में पहुँचाने की ज़रूरत है। यह नई सोच तभी विकसित हो सकती है, जब लोग अपने निजी स्वार्थों को त्यागर व्यापक स्तर पर विचार करना आरंभ करें। अपने-अपने सीमित दायरों में सोचते रहने से हम एक देश के रूप में कभी भी वह हासिल नहीं कर सकेंगे, जिसकी हमारे अंदर क्षमता है। अतः कवि के अनुसार वह समय आ चुका है जब इस तरह नई दिशा चुनकर भारत का नवनिर्माण किया जाना चाहिए।

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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