कविता

दीप जलाओ तो

“दीप जलाओ तो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता साथ मिलकर हर तरह के अंधेरे को मिटाने का आह्वान करती है। पढ़ें यह कविता–

हर रोज साथ मिल करके दीप जलाओ तो-
युग-युग का काला अन्धकार मिट जायेगा
दीवाली के दिन केवल दीप जलाने से
यह तम प्रकाश को ही बढ़कर खा जायेगा

हम देख रहे आने वाली हर दीवाली
अपनी गोदी में कर दिये जलाती है
बढ़ती जाती हैं अन्धकार की सीमायें
हर किरन धरा पर आने में सकुचाती है

स्वार्थों की अंधी गलियाँ हमको प्यारी हैं
रोशनी मात्र तो केवल एक दिखावा है
हम पहन रहे उजले कपड़े तन के ऊपर
अभ्यान्तर का यह केवल एक दुरावा है

हर रोज न्याय सिर पटक रहा जिस देहली पर
एक रोज वहाँ दीपक धरने से क्या होगा ?
है खड़ा हो रहा सत्य नित्य दरवाजों पर
उन पर दीपों की पंक्ति जलाकर क्या होगा ?

आँसू ही जिनको मिले विरासत में केवल
एक रोज अगर हँस ले तो इससे क्या होगा ?
डाके पड़ते हों जिनकी रोज जवानी पर
एक रोज अगर त्यौहार मना लें क्या होगा ?

मत व्यय करो उन पर कहकर दीवाली है
वक्षस्थल के नीचे उनके भी दिल है
रिश्वत के दिये जलाओ अपने महलों में
पर यह न कहो हर एक झोंपड़ी कातिल है

जो खून पसीना देकर फसल उगाता है
इसलिए नहीं वह स्वंय अकेला खायेगा
उसको नसीब तो रूखी-सूखी रोटी है
किस्मत वाला ही कोई मौज उड़ायेगा

जो रोज प्रदर्शन करते सेवक बनने का
जनता के उन रखवालों से मैं पूछ रहा
कितनों के दिए बुझाकर, दिए जलाये हैं
उत्तर दो समय आ गया है युग पूछ रहा

अन्धेर बहुत थोड़े दिन ही चल पाता है
दिखने को शाखें बहुत बड़ी होती उसकी
गिर जाता है वह वृक्ष एक ही झटके में
उथली होती हैं किन्तु जड़े जितनी जिसकी

झूठे वायदे अब काम नहीं कर सकते हैं
हर एक योजना रद्दी बन बिक जाती है
उद्घाटन होने से पहले ही बाँधों में
भारी, मोटी, लम्बी दरार पड़ जाती है

नंगी भूखी-जनता के सूखे कन्धों में
लटका दी तुमने आज भिखारी की झोली
अपनी तिजोरियों में खुशहाली बन्द किए
हर रोज मनाते अपनी दीवाली- होली

जिनको अब तक थे स्वप्न दिखाये महलों के
उन पर अपनी झोपड़ियाँ भी अब नहीं रहीं
जो सूर्य उगाया था हमने बलिदानों से
उसकी भी दिखती नहीं हमें रोशनी कहीं

इसलिए जलाने होंगे ऐसे दीपक
जिनसे समानता का प्रकाश नित फूटेगा
गर एक आँख से आँसू गिरता धरती पर
हर एक आँख से आँसू टप-टप टूटेगा
हर रोज जलाओ न्याय सच्चाई के दीपक
बन्दी प्रकाश को अन्धकार से मुक्त करो
जो छला जा रहा अब तक मानव युग-युग से
अभिनन्दन करके फिर उसको अभिषिक्त करे

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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