धन्वन्तरि आरती – Dhanvantari Aarti in Hindi
धन्वन्तरि आरती का पाठ रोग-शोक का समूल विनाश करने में सक्षम है। ऐसी कोई बीमारी नहीं जिसमें धन्वंतरि जी की आरति का गायन लाभ न दे सके। भगवान धन्वंतरि जी का आविर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। अन्य कई पुराणों के साथ ही महाभारत में भी समुद्र-मंथन के प्रसंग का विस्तार से वर्णन आता है। देवताओं और दानवों-दैत्यों ने मिलकर जब समुद्र का मंथन किया तो उसमें से कई सारे रत्नों की प्राप्ति हुई।
सबके लिए सर्वाधिक अभीष्ट वस्तु थी अमृत जिसे पीकर मृत्यु पर विजय पाई जा सकती थी। अन्ततः मंथन से भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए जिनके हाथों में अमृत का कलश विद्यमान था। धन्वन्तरि आरति उन्हीं भगवान धन्वंतरि की प्रसन्नता के लिए गाई जाती है। कहते हैं कि ये ही आयुर्वेद शास्त्र के जन्मदाता भी थे जिससे सबको स्वास्थ्य का वरदान प्राप्त हुआ। धन्वन्तरि आरती पढ़ने से जीवन में रोगमुक्त काया और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। पढ़ें धन्वंतरि जी की आरति–
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा॥
जय धन्वंतरि देवा…
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए॥
जय धन्वंतरि देवा…
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया॥
जय धन्वंतरि देवा…
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी॥
जय धन्वंतरि देवा…
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे॥
जय धन्वंतरि देवा…
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा॥
जय धन्वंतरि देवा…
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे॥
जय धन्वंतरि देवा…
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर धन्वन्तरि आरती ( Dhanvantari Aarti ) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें धन्वन्तरि आरती रोमन में–
Read Dhanvantari Aarti
jaya dhanvaṃtari devā, jaya dhanvaṃtari jī devā।
jarā-roga se pīḍa़ita, jana-jana sukha devā॥
jaya dhanvaṃtari devā…
tuma samudra se nikale, amṛta kalaśa lie।
devāsura ke saṃkaṭa ākara dūra kie॥
jaya dhanvaṃtari devā…
āyurveda banāyā, jaga meṃ phailāyā।
sadā svastha rahane kā, sādhana batalāyā॥
jaya dhanvaṃtari devā…
bhujā cāra ati suṃdara, śaṃkha sudhā dhārī।
āyurveda vanaspati se śobhā bhārī॥
jaya dhanvaṃtari devā…
tuma ko jo nita dhyāve, roga nahīṃ āve।
asādhya roga bhī usakā, niścaya miṭa jāve॥
jaya dhanvaṃtari devā…
hātha joḍa़kara prabhujī, dāsa khaḍa़ā terā।
vaidya-samāja tumhāre caraṇoṃ kā gherā॥
jaya dhanvaṃtari devā…
dhanvaṃtarijī kī āratī jo koī nara gāve।
roga-śoka na āe, sukha-samṛddhi pāve॥
jaya dhanvaṃtari devā…