इतिहास

ताज महल के मंदिर होने संबंधी दस्तावेज़

The Documents That Prove Taj Mahal Is A Hindu Temple By P.N. Oak

कई ऐसे दस्तावेज़ हैं जिनकी बात श्री पी.एन. ओक करते हैं, उनके अनुसार जिनसे यह सिद्ध होता है कि ताज महल को जयसिंह से कब्ज़ाया गया था। इस अध्याय पर ऐसे ही कुछ दस्तावेज़ी सुबूतों पर नज़र डाली गई है। इस पुस्तक के अन्य अध्याय पढ़ने के लिए कृपया विषय-सूची देखें – ताज महल का रहस्य: ताजमहल है हिंदू मंदिर

  1. शाहजहाँ का दरबारी वृत्त शाहजहाँनामा अपने खण्ड एक के पृष्ठ 403 पर कहता है कि अतुलनीय वैभवशाली गुम्बदयुक्त एक भव्य प्रासाद को इमारत-ए-आलीशान वा गुम्बजे (जो राजा मानसिंह के प्रासाद के नाम से जाना जाता था) मुमताज़ को दफ़नाने के लिए जयपुर के महाराज जयसिंह से लिया गया।
  2. ताजमहल के प्रवेश द्वार के साथ लगी पुरातत्वीय शिलाओं पर हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में लिखा है कि मुमताज़ की कब्र के रूप में शाहजहाँ ने सन् 1631 से 1653 तक ताजमहल का निर्माण करवाया। किन्तु उक्त कथन में किसी ऐतिहासिक आधार या दस्तावेज़ का तो उल्लेख ही नहीं। यह उसका एक बड़ा दोष है। दूसरा मुद्दा यह है कि मुमताज महल नाम ही झूठा है। मुग़ली दस्तावेज़ों में मुमताज़-उल्-ज़मानी नाम उल्लिखित है। तीसरा मुद्दा यह है कि ताजमहल निर्माण की अवधि जो 22 वर्ष कही गई है वह मुग़ल दरबार के दस्तावेज़ों पर आधारित न होकर टॅव्हरनिए नाम के एक ऐरे-ग़ैर फ्रेंच सर्राफ़ के कुछ ऊटपटाँग, संभ्रमित संस्मरणों से निकाला गया निराधार निष्कर्ष है। अन्य प्रमाणों का विश्लेषण करने पर टॅव्हरनिए का कथन गलत सिद्ध होता है।
  3. अपने पिता शाहजहाँ को लिखा औरंगज़ेब का पत्र टॅव्हरनिए के दावे को झूठा साबित कर देता है। औरंगज़ेब का वह पत्र आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ई अकबराबादी (सईद अहमद, आगरा से सम्पादित, सन् 1931, पृष्ठ 43, फुटनोट 2) में अन्तर्भूत है। सन् 1652 के उस पत्र में औरंगज़ेब ने स्वयं लिखा है कि मुमताज़ की कब्र परिसर की इमारतें सात मंज़िलों वाली थीं और वे इतनी पुरानी हो गई थीं कि उनमें से पानी टपकता था और गुम्बद के उत्तरी भाग में दरार पड़ी थी। अतः औरंगजेब ने स्वयं अपने ख़र्चे से उन भवनों को तत्काल मरम्मत करने की आज्ञा देकर शाहजहाँ को सूचित किया कि यथावकाश इन भवनों की व्यापक मरम्मत की जाए। इससे सिद्ध होता है कि शाहजहाँ के समय में ही ताज इतना पुराना हो गया था कि उसकी तत्काल मरम्मत करने की आवश्यकता पड़ी।
  4. दिसम्बर 18 सन् 1633 के शाहजहाँ द्वारा भेजे दो पत्र (फ़र्मान) महाराजा जयसिंह के कपड़द्वारा नाम के जयपुर दरबार के गुप्त विभाग में सुरक्षित हैं। उन्हें आधुनिक क्रमांक 176-77 दिये गये हैं। सारी सम्पत्ति सहित ताजमहल का शाहजहाँ द्वारा अपहरण किये जाने की अपमानकारी घटना उन पत्रों में उल्लिखित होने से जयपुर नरेश की असमर्थता छिपाने के हेतु वे पत्र गुप्त रखे गये।
  5. राजस्थान की राजपूत रियासतों के ऐतिहासिक दस्तावेज़ बीकानेर में सरकारी अभिलेखागार में रखे गये हैं। उनमें शाहजहाँ द्वारा जयसिंह को भेजे तीन पत्र हैं। एक चौथा पत्र भी भेजा गया था ऐसा उन तीन पत्रों में से एक में उल्लेख है। उनमें जयसिंह को मकराने के संगमरमर तथा संगतराश भेजने के लिए कहा है। सारी अन्तर्गत सम्पत्ति सहित ताजमहल हड़प करने के पश्चात् उसमें मुमताज़ की कब्र करने और क़ुरान की आयतें जड़ाने के हेतु शाहजहाँ जयसिंह से ही संगमरमर तथा संगतराश मँगवाने की धृष्टता कर रहा था। यह देखकर जयसिंह को बड़ा क्रोध चढ़ा। उसने न ही पत्रों का कोई उत्तर दिया और न ही संगमरमर या संगतराश भेजे। इतना ही नहीं अपितु संगतराश शाहजहाँ के पास अपने आप भी नहीं जा सकें, इस उद्देश्य से उन्हें बन्दी बना डाला।
  6. मुमताज की मृत्यु के लगभग दो वर्ष के अन्दर शाहजहाँ ने संगमरमर की माँग करते हुए जयसिंह को तीन आदेश भेजे। यदि वास्तव में 22 वर्ष की कालावधि में शाहजहाँ ने ताज निर्माण करवाया होता तो 15 या 20 वर्षों के बाद ही संगमरमर की आवश्यकता पड़ती, न कि मुमताज़ की मृत्यु के तुरन्त बाद। बना-बनाया ताजमहल हथियाने के कारण ही मुमताज़ की मृत्यु के तुरन्त पश्चात् शाहजहाँ को उसमें कुरान जड़ाने के लिए संगमरमर की आवश्यकता पड़ी।
  7. इतना ही नहीं, दस्तावेज़ के मुताबिक़ इन तीनों पत्रों में न ताजमहल, न मुमताज़ और न उसके दफ़न का कोई उल्लेख करते हैं। उसकी लागत एवं पत्थर की मात्रा का भी उनमें उल्लेख नहीं है। ताज महल को हस्तगत करने के बाद कब्र बनाने तथा आवश्यक मरम्मत के लिए कुछ थोड़े संगमरमर की आवश्यकता पड़ी। क्रुद्ध जयसिंह की मिन्नतें करके प्राप्त होने वाले अल्पस्वरूप संगमरमर से ताजमहल जैसी विशाल इमारत समुच्चय का शाहजहाँ द्वारा निर्माण वैसे भी असम्भव था।

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