कविता

दृग नीर चढ़ाऊँ

“दृग नीर चढ़ाऊँ” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना सन् 1963 में की गयी थी। इसमें कवि अमूर्त प्रिय के वियोग को व्यक्त कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–

कब तक गीत तुम्हारे गाऊँ?
अपनी श्रद्धा, भक्ति-प्रेम से
अब तक मैंने तुम्हें रिझाया
कंकुम, कंचन कुसुमित सुमनों-
के हारों से खूब सजाया

पर मेरे हो सके नहीं तुम
कब तक मैं दृग-नीर चढ़ाऊँ?
मेरे अन्तर की पीड़ा का
कुछ भी भान अगर हो पाता

तो निश्चय था यह आकुल मन
मिल तुममें ही लय हो जाता
दूर रहे पर मृग-जल बनकर
कैसे अपनी प्यास बुझाऊँ?

जीवन का मध्याह्न ढल गया
दुःखद निगोड़ी सन्ध्या आयी
जीवन-बाती बुझने को है
बढ़ती जाती तम गहराई

निबिड़ निशा में भटक न जाऊँ,
स्नेह मिले तो दीप जलाऊँ।

(सन् 1963)

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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