कविता

गाँव कौं चलौ

“गाँव कौं चलौ” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया “नवल” द्वारा ब्रज भाषा में रचित अपने गाँव की यादों को सहेजती कविता है। यह दौर शहर की ओर रुख़ करने का है। हममें से हर कोई अपनी जड़ों, अपने गाँव को छोड़कर महानगरीय जीवन की ओर जा रहा है।

ऐसे में गाँव की तरफ़ वापसी का आह्वान अपने आप में सिहरन पैदा कर देता है। पढ़ें “गाँव कौं चलौ” कविता और आनंद लें–

गाँव कौं चलो रे अपने गाँव कौ चलौ।

महुआ महकें टेसू दहकैं झूमैं रस के झौंरा
बौराये रसाल पै रस के लोभी घूमै भौंरा
बड़े भोर ही पिंजरा में ते मीठी बोलैं मैना
तोता राम-राम कहि टेरै पनघट करि-करि सैना

भैना भैया कौं जगावै चलौ काम पै चलौ।
काम पै चलौ रे अपने गाम कौं चलौ॥

गेहूँ लहरावैं खेतनि में चना-मटर मुस्कायें
अरहर करै सिंगार, मेंड़ यै खड़े बेल गदरायें
देखि देखि कैं फसल कृषक मन नाचैं गावें होरी
आस मिलन की लैकें बैठी कोउ व्याहुलिया भोरी

गोरी साँवरी कौं टेरै खलिहान कौं चलौ।
खलिहान कौं चलौ रे अपने गाम को चलौ॥

जेठ दुपहरिया चलो बहुरिया छरैं छाक की डलिया
लीकहि चलै अलीक न जानै मिल्यौन कोऊ छलिया
नागिन-सी लहराति मेंड़ पै राजा के ढिंग आवै
रानी बनि कैं नीवरिया के मानों भाग्य जगावै

गावै, ढोरै विजनियाँ वाही ठाम कौं चलौ।
वाही ठाँव कौं चलौ रे अपने गाम कौं चलौ॥

सावन में घन रिमझिम बरसैं पुरवा मन हरषावै
इन्द्रधनुष-सी हँसै चुनरिया बीजुरिया सरमावै
बागनि में झूलनि पै झूलों गंगा और त्रिवैनी
चौपारिनि में आल्हा-ढोला गीता सरगम सैनी

दैनी अमिरत जैसी धार वा मुकाम कौं चलौ।
वा मुकाम कौं चलौ रे अपने गाम कौं चलौ॥

लिपे-पुते घर द्वार हमारे दिहरी सजी सजाई
आँगन में तुलसी कौ घरुआ पीपर छाँह सुहाई
छप्पर में गैंया-बछरा हैं, बाबा को अघियानौ
हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई सिग को एक ठिकानौ

मानौ अपनौ हिन्दुस्तान, अपने गाम को चलो।
अपने गाम कौं चलौ रे अपने गाम कौं चलौ॥

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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