कविता

गीत गा लो अभी – स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया

“गीत गा लो अभी” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना सन् 1958 में की गयी थी। इसमें कवि बता रहा है कि प्रत्येक पल को पूर्ण रूप से जीना चाहिए। पढ़ें और आनंद लें “गीत गा लो अभी” कविता का–

क्या पता है कल किसे रोना पड़े
इसलिए जी खोलकर हँस लो अभी।

रात पूनम की सदा हँसती रही
क्योंकि मावस में बदलना था उसे
माँग में सिन्दूर भर ऊषा हँसी
साँझ की साड़ी पहिननी थी उसे

क्या पता है कल न फिर ये दिन रहें
इसलिए सुख जो मिले ले लो अभी।

क्या पता है कल किसे रोना पड़े
इसलिए जी खोलकर हँस लो अभी।

कब, कहाँ और कौन टहनी टूटकर
धूल में मिल जाये तरु से छूट
मुस्कराती खिलखिलती जो कली
पवन कब ले जाये उसको लूटकर

पुष्प ने हँसकर ये कलियों से कहा
अगर हँसना है तो तुम हँस लो अभी।
क्या पता है कल किसे रोना पड़े
इसलिए जी खोलकर हँस लो अभी।

श्वाँस में भरकर मलय की वान क
नवल सुमनों से सजा निजजात को
गुनगुनाती, नाचती अरु झूमती
मस्त इठलाती दिवस अरु रात को
ऋतु बसन्ती ने कहा कल कौन जाने
इसलिए पिक गीत तुम गा लो अभी।
क्या पता है कल किसे रोना पड़े
इसलिए जी खोलकर हँस लो अभी।

दीप की लौ की तरह है जिन्दगी
एक झांके में कभी बुझ जाएग
जो जवानी आज है वह कल न होगी
देखते ही देखते ढल जाएगी।

काँपती हर साँस का किसको पता है
इसलिए जो प्यार हो कर लो अभी।
क्या पता है कल किसे रोना पड़े
इसलिए जी खोलकर हँस लो अभी।

एक दिन एक फूल चुपके से कहीं
डाल पर से चू पड़ा उद्यान में
रूप को अपने दबाये एक कली
देखती थी डाल पर अभिमान में

भ्रमर ने आकर कहा इसी की तरह
खाक होगी इसलिए हँस लो अभी
क्या पता है कल किसे रोना पड़े
इसलिए जी खोलकर हँस लो अभी।

कौन-सा श्रृंगार हो आया अमा
जो बना बनकर यहाँ पर वह मिटा
वस्त्र नूतन जो कभी अति प्यार से
अंग पर धारण किया था वह फटा।

क्या भरोसा साँस की इस बीन का
इसलिए झंकार मृदु कर लो अभी।
क्या पता है कल किसे रोना पड़े
इसलिए जी खोलकर हँस लो अभी।

सन् 1958 ई.

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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