गीत – श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’
“गीत” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह वासंतीव गीत प्रकृति के नव विस्तार और उसमें हो रहे नव प्राण-संचार को दर्शाता है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
भावना भरो नवीन भावना भरो
साधना करो नवीन साधना करो
आ गया बसंत अन्त शीत का हुआ
हँस उठा दिगन्त जन्म गीत का हुआ
बह रहा समीर गंध माधवी लिए
आज राज्य रंग, लाल पीत का हुआ
खिल उठे सुमन नवल प्रभात आ गया
प्रभात में नवल किरण का जाल छा गया
झरा विगत उमंग ले नवीन आ गया
असंख्य मधुर स्वप्न जगत दीन पा गया
आज शान्ति सुख समृद्धि कामना करो
भावना भरो नवीन भावना भरो
उड़ रहा पराग पद्म कोष खुल गये
रंग-रंग के अनेक छंद खुल गये
गा उठे विहंग गीत स्वर नवीन में
आज सुप्त भावना के बन्ध खुल गये
झूमने लगे भ्रमर नवीन भाव में
चूमने कली-कली नवीन चाव में
मिल गये धरा गगन न भेद कुछ रहा
भ्रमर ने गुन गुना कली के कान में कहा
आज चिर मिलन की पुनः प्रार्थना करो
भावना भर नवीन भावना भरो
एक गीत हों अनेक किन्तु राग एक हों
वस्तु हों अनेक किन्तु माँग एक हो
स्नेह वर्तिका सभी अलग-अलग रहें
किन्तु नव प्रकाश का चिराग एक हो
पंथ हो अनेक किन्तु लक्ष्य एक हो
चोट हों अनेक किन्तु वक्ष एक हो
तार हों अनेक किन्तु बीन एक हो
बीन में स्वरों की किन्तु भीड़ एक हो
आज मिल सभी सुधार साधना करो
भावना भरो नवीन भावना भरो
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।