गीत
“गीत” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें बसंत द्वारा मानव मन में उत्पन्न हुई प्रतिक्रियाओं और उसके प्रभाव का बड़ा ही रोचक वर्णन है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
आयौ ऋतु राज नई होने लगीं बतियाँ
सर्दी की नगरी में किरणों का डेरा
कुहरे ने काला मुख जाने कहाँ फेरा
प्राची में नाच उठी ऊषा मतवाली
लतिकाएँ भर लाई आसव की प्याली
भ्रमरों ने छेड़ दिये मन के तराने
मीठे सपने उभर उठे हैं जैसे चंदा उठे गगन में
किसका यह जादू होता है जिससे हलचल है हर मन में
दिशा-दिशा रंजिता दिखाती दिवस सुनहले से लगते हैं
रात रुपहली, स्वर्ण सवेरा सांझ गुलाबी सब कहते हैं
क्योंकि आगम हुआ बसंत का जिससे हर डाली पुलकित है
सुरभित है वातास सृष्टि का देखो रोम-रोम पुलकित है
कलियाँ मुस्काईं करके सौ-सौ बहाने
दिन लागे बाढ़न, सिकुड़न लागी रतियाँ
आयौ ऋतु राज नई होने लगीं बतियाँ॥
मंथर बयार ने सुगन्ध भरी झोली
द्वार-द्वार आकर के बाँटने को खोली
कोयल ने गीत गाये मोर मत्त नाचे
कवियों के कण्ठ खुले गीत नये बाँचे
पपिहा ने पीउ-पीउ कह पिया को टेरा
कामिनी ने बार-बार पी का पंथ हेरा
आंगन में बैठि पढ़े पीतम की पतियाँ
आयौ ऋतु राज नई होने लगीं बतियाँ ॥
गिनि-गिनि कंकरियन को काटे अवधिया
भैया हो आये कहि हँसि दे ननदिया
पिय का संदेसबा ले बड़े ही सकारे
बैठि के मुंडेरवा पै कागा पुकारे
उड़िजा रे कागा तेरी चोंच मढ़इयों
अइं हैं पिया तोय खीर खवैइ हों
रुकि गयी हिल की उमंगन लागी छतियाँ
आयौ ऋतु राज नई होने लगीं बतियाँ ॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।