घर आइ जइयो
“घर आइ जइयो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया “नवल” द्वारा ब्रज भाषा में रचित घर लौटने का आह्वान करती कविता है। आनन्द लें इस कविता का।
चाहे रहियो देस विदेश मेरे राजा!
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
मैंने जेठ मास तपि- तपि काटे,
सावन अँसुअन की धार मेरे राजा!
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
मैं तौ सरद चाँदनी ने जारी,
हेमन्त ठिठुरि करै पार मेरे राजा!
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
मैं तौ सिसिर नींद भरि ना सोई,
भई नई रजाई बेकार मेरे राजा!
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
सिबइ सुहागिनें सिंगार करैं,
अब मोकों हार अंगार मेरे राजा!
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
मोसों ननदुइया ठीसैं करै,
बोली होति करेजे के पार मेरे राजा !
फागुन के महीना घर आ जइयो।
‘पीऊ’-आधी राति पपिहा बोलै,
कोयल रही बादर फारि मेरे राजा !
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
मेरे अँग अँग बगिया फूली,
अब निबुआ भरे अनार मेरे राजा!
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
अपु आऔ तो होरी मनिहै,
नहिं फीकौ सिबु त्यौहार मेरे राजा!
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
मेरे सँग की खिलाबैं द्वे ललना,
मेरे घर में ना एक हु डार मेरे राजा !
फागुन के महीना घर आइ जइयो।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।