हस्ती मेरे वतन की
“हस्ती मेरे वतन की” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें देशप्रेम के रस में डुबाकर देश के मूल स्वरूप को दर्शाया गया है। पढ़ें यह कविता–
बौने हैं शब्द सारे भाषा भी कह न पाये ।
हस्ती मेरे वतन की उपमान में न आये॥
सूरज की धूप सोना, चाँदी-सी चाँदनी है,
सन्दल-सी हवा महके, हर शाख गुनगुनाए।
ऐसा कहाँ हिमालय गंगा हो जिससे निकली,
है ताज कहाँ! नगमा, जो प्यार का सुनाए।
नफ़रत की आज आँधी क्यों बढ़ती जा रही है,
ये प्यार का तुम्हारा कहीं दीप बुझ न जाये।
आँसू तो किसी के हों निकले तो आँख से हैं,
गंगोत्री के जल में कोई भेद कर न पाये।
पावन जिन्हें समझकर जिनको था सर झुकाया,
उन मंदिरों में कोई हैवान रह न जाये ।
गुजरात तथा असम हो पंजाब या कि केरल,
देखो कहीं चमन में फिर आग लग न जाये।
बीती जो उसे भूलो आगे की खबर ले लो,
देखो किसी के आगे फिर सर ये झुक न जाए।
लड़ते नहीं किसी से फिर भी हमें जो छेड़े,
वो हौसला मिटा ले अरमान रह न जाये।
ऐसा वतन ‘नवल’ का हर कौम साथ रहकर,
होली दिवाली क्रिसमस मिल-जुल के जो मनाये।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।