स्वास्थ्य

भोजन संबंधी अच्छी आदतें

Importance Of Good Eating Habits In Hindi

भोजन संबंधी अच्छी आदतें क्या हैं जिन्हें हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए–यही बताता है श्री सुदर्शन की बेहद ज्ञानवर्धक पुस्तक “प्रकृति: स्वास्थ्य और सौन्दर्य” का दूसरा अध्याय।

इसमें वे बता रहे हैं कि हमें क्या खाना चाहिए, कब खाना चाहिए, कैसे खाना चाहिए और भोजन को लेकर किन बातों की ओर ध्यान देना चाहिए।

पिछला अध्याय यहाँ पढ़ें – सौन्दर्य और स्वास्थ्य–हैं दोनों ज़रूरी

पचने योग्य पौष्टिक भोजन (Easy to digest foods)

रसोई में उपलब्ध पदार्थों से ही योजनाबद्ध तरीके से पौष्टिक भोजन बनाना एक कला है तथा इसके लिए सावधानी की भी आवश्यकता होती है। इसके लिए केवल नौकरों पर निर्भर रहना काफी नहीं। गृहिणी को दाल-सब्जियों तथा मसालों में उपलब्ध पौष्टिक गुणों का ज्ञान होना जरूरी है। इतनी समझ होनी चाहिए कि आसानी से पचने योग्य भोजन कैसे तैयार किया जा सकता है।

घरेलू तथा प्राकृतिक उपचारों के लिए इसकी विस्तृत जानकारी तथा सन्तुलित भोजन के महत्व को जान लेना जरूरी होता है। आइए, ज़रा भोजन संबंधी अच्छी आदतों का उल्लेख करते हैं–

  1. चालीस वर्ष की आयु तक तो जो जी में आए खा व पचा सकते है। इस समय भोजन से मिलने वाली ऊर्जा भी बहुत होती है। साधारणतः इससे कोई परेशानी भी नहीं होती।
  2. चालीस की आयु पार करते-करते आमतौर पर तैयार किया भोजन सुपाच्य नहीं रहता। यह आपको फिट रखने में सहायक नहीं हो पाता।
  3. अत: चालीस से भी काफी पहले से अपने खाने-पीने के तीर-तरीकों मे तब्दीली लाना ही अच्छा होगा।
  4. बेहतर होगा यदि आप अपने बच्चों को अधिक मात्रा में फल, हरी सब्जियां, दूध, दही तथा पानी के प्रयोग की आदत डालें। इससे आप तथा आपके बच्चे स्वस्थ रहेंगे।
  5. दवाइयों पर, ताकत वाली गोलियों और इंजेक्शनों पर निर्भर न रहकर, अपनी खुराक पर ही निर्भर रहने की आदत बनाएं।
  6. अपनी आर्थिक स्थिति, घर में उपलब्ध खाद्य सामग्री, कार्य का समय, किस सदस्य को कब घर से जाना या घर पर आना है–इन बातों को भी ध्यान में रखकर अपने भोजन की किस्म तथा मात्रा का फैसला करना है।
  7. किस सदस्य को मानसिक तथा किसे शारीरिक कार्य करना है। आपकी भोजन व्यवस्था में भी ध्यान जरूरी है। यह उनके योग्य हो।
  8. प्रोटीन, मिनरल तथा विटामिन-युक्त भोजन स्कूली बच्चों को अधिक मिलना चाहिए।
  9. जवानी में कदम रखती लड़कियों के लिए आयरन-युक्त भोजन लाभकर होता है।
  10. जवानी के नशे में अपनी खुराक के प्रति उदासीन न रहें। इस समय तो पौष्टिक भोजन अनिवार्य होती है। यह आसानी से पच भी जाता है। अतः ताकत बनाए रखें।
  11. प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर भोजन हल्का तथा सुपाच्य हो। मगर समय-समय पर खाना न भूलें। अन्यथा एकदम कमजोरी आ सकती है। फिर इसकी भरपाई होनी कठिन होगी।
  12. वृद्धावस्था में तो और भी संभलकर चलना होगा। भोजन कम चर्बी वाला हो। सुगमता से पचने वाला हो। नियमित समय पर, भोजन करने की सलाह दी जाती है।
  13. जिस बच्चे के मां-बाप नवजात शिशु से लेकर पहले दस वर्षों तक पूरा ध्यान रखते हैं। आयु के अनुसार पौष्टिक भोजन देते हैं। उन बच्चों की भोजन करने में भी रुचि बनी रहती है। इसके पश्चात् वे अपनी जरूरत का भोजन कर सकने की स्थिति में आ जाते हैं। ऐसे बच्चे का स्वास्थ्य कभी गिरता नहीं।

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साग-सब्जी की भी कद्र करें (Importance of green leafy vegetables)

घर में, किचन गार्डन में या बाजार से प्राप्त साग-सब्जी की ओर विशेष ध्यान दें। इसके लिए कुछ निम्न बातें जरूरी हैं–

  1. चाहे बाजार से लाएं या अपने किसी अन्य स्रोत से। साग-सब्जी सदा ताजा ही लें। इसका प्रयोग भी समय पर करें।
  2. शलगम, मूली, गोभी, पत्ता गोभी, मेथी, पालक, सरसों, सबकी पत्तियाँ प्रयोग में आती हैं। डंडियां, डंठल भी खाने के योग्य होती हैं। इन्हें बेकार समझ फेकें मत! इनका सही प्रयोग करें, ताकि इनमें उपलब्ध पौष्टिक तत्व आपके शरीर में जाकर ताकत प्रदान करें।
  3. आपको हरी पत्तियों से विटामिन मिलेंगे। शरीर की कई कमियां पूरी होंगी। जिन पत्तियों को कच्चे ही खाया-चबाया जा सके उन्हें सलाद के रूप में अवश्य लें। कच्ची सब्जियाँ या पत्तियां अधिक लाभकर होती हैं।
  4. पत्तियों को बारीक काटकर, पकी हुई सब्जियों में मिलाना होता है।
  5. आटे का चोकर यदि निकाल ही दिया है तो भी इसका प्रयोग किसी व्यंजन के बनाने में करें। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। यह कब्ज से भी छुटकारा दिलाता है।
  6. यदि नर्म, कच्चे कद्दू के छिलके, घीया के छिलके पीसकर चटनी बना लें तो इनकी पौष्टिकता प्राप्त हो जाएगी। इन्हें कद्दूकस से कसकर, या बारीक पीसकर दाल में भी मिलाया जा सकता है।
  7. आप एक दाल तो बनाती हैं। कभी-कभी दो प्रकार की दालों की मिलाकर बना लें। हरे धनिये का प्रयोग करें।
  8. हरे प्याज, पोदीना, भाबरी, कच्ची अदरख का इस्तेमाल लाभकर होता है।
  9. केवल गेहूं की रोटी तो बनाती ही हैं। यदि दो प्रकार का आटा मिलाकर रोटी बनाएं तो यह पौष्टिक व स्वादिष्ट हो जाती है।
  10. गेहूं के आटे में चने का आटा, या फिर सोयाबीन का आटा मिला सकती हैं। मक्के के आटे में प्याज, धनिया, पोदीना बारीक काटकर डालें। स्वाद भी बढ़ेगा। ताकतवर भी हो जाएगा।
  11. मिक्स वेजीटेबल तो होटलों में बढ़िया डिश मानी जाती है। इसको घर में भी बनाएं। सस्ती व पौष्टिक होगी। बची सब्जियां भी काम में आ जाएंगी।
  12. दालों को यदि 3-4 घंटे पहले भिगोकर रख दें तो जल्दी बन जाएंगी। समय और ईंधन, दोनों की बचत होगी।
  13. मगर सब्जियों को काटने से पहले अच्छी तरह धो लें। बाद में न ही धोनी पड़ें तो अच्छा होता है।

अंकुरित भोजन (Sprouted foods)

इसके लिए विशेषकर दालों को अंकुरित करके पका सकती हैं। कुछ दालें तथा अनाज भी अंकुरित कर नाश्ता के लिए प्रयोग हो सकते हैं। इनकी पौष्टिकता तो बढ़ती ही है।

एक बड़ी खूबी यह भी है कि दालें, मटर, गेहूं आदि अंकुरित होने पर मात्रा में 3-4 गुणा बढ़ जाते हैं। अतः सस्ते भी, लाभकर भी होते हैं। इससे आपका पैसा तो बचेगा ही, शरीर भी बलिष्ठ होगा। रोगों के साथ लड़ने की क्षमता भी बढ़ जाएगी। डॉक्टर को दूर से सलाम।

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ऋतु के फल व सब्जियां (Fruits & vegetables as per weather)

जिन दिनों जो फल या सब्जियां खूब मात्रा में बाजार में आ जाती हैं, सस्ती होंगी ही। अत: आप इन दिनों महंगी या बेमौसमी सब्जियों की ओर मत भागें। सस्ती सब्जी खरीदें। इनको खाने से ताकत बढ़ेगी। बचत भी होगी। ऋतु में उपलब्ध ताजे फल व सब्जियों को प्राप्त करने का शौक होना चाहिए। यदि हाथ तंग है तो सस्ती सब्जी की मात्रा बढ़ाकर, अनाज की मात्रा घटाई जा सकती है। दालें भी कम की जा सकती हैं!

अपनी शक्ति के अनुसार खर्च करें (Cost consideration for food)

मान लो आर्थिक दृष्टि से सब ठीक है, तो भोजन में अण्डा, दही, छाछ, मछली का प्रयोग आसानी से हो सकता है। अच्छी मात्रा में फल खरीदे तथा खाए जा सकते हैं। हरे या सूखे मेवों का इस्तेमाल भी शरीर की शक्ति को क्षीण होने से बचाता है। फिर भी अपनी आमदनी के अनुसार ही ख़र्च करना चाहिए।

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बदलाव जरूरी (Importance of implementing good food habits)

एक ही प्रकार के भोजन करने की आदत को कम करना चाहिए। इस प्रकार का भोजन बदल-बदलकर करने से शरीर की अनेक जरूरतें पूरी हो जाती है। भोजन करने में स्वाद भी आता है। जीवन नीरस होने से बच जाता है। दोपहर के भोजन के बाद थोड़े आराम की सलाह दी जाती है। रात्रि के भोजन के बाद कुछ सैर जरूरी है। भोजन करते ही रात को सो नहीं जाना चाहिए। कम-से-कम दो घंटे के अन्तराल से सोयें।

यदि आप बीमारियों से बचकर, अच्छी सेहत चाहते हैं, तो भोजन पौष्टिक होना जरूरी है। यह सुपाच्य भी होना चाहिए। आपकी मानसिक तथा शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने वाला हो। मगर यह जरूरी है कि भोजन आदि नियमित करें। समय के पाबन्द रहें तथा भोजन करते समय कभी क्रोध, चिन्ता न करें। प्रसन्न मन से किया गया भोजन ही लाभकारी हो सकता है।

भोजन के बिना पेड़-पौधे, पक्षी-जानवर, मनुष्य कोई भी जीवित नहीं रह सकता। भोजन उतना ही करना चाहिए, जितनी शरीर की जरूरत हो । जो पचाया जा सके। यदि सामने देर सारा भोजन रखा है, इसका कभी यह मतलब नहीं कि खाते जाओ, चाहे पेट ही क्यों न फट जाए।

सुपाच्य व आवश्यकता तथा आयु को ध्यान में रखकर भोजन करना ही समझदारी है।

हमें उम्मीद है कि इस अध्याय से आपको भोजन संबंधी अच्छी आदतें समझने और सीखने का मौक़ा मिला होगा। पिछला अध्याय यहाँ पढ़ें – सौन्दर्य और स्वास्थ्य–हैं दोनों ज़रूरी

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