ग्रंथधर्म

इंद्र द्वारा वर्षा – महाभारत का छब्बीसवाँ अध्याय (आस्तीक पर्व)

“इंद्र द्वारा वर्षा” नामक यह महाभारत कथा आदि पर्व के अन्तर्गत आस्तीक पर्व में आती है। कहानी पिछले अध्याय सर्पों की मूर्च्छा से आगे बढ़ती है, जिसमें सूर्य के ताप से नाग मूर्च्छित हो जाते हैं। सर्पों की रक्षा के लिए माता कद्रू इन्द्रदेव का स्तवन करती हैं। अब पढ़ें इंद्र द्वारा वर्षा से किस तरह होती है सर्पों की प्राण-रक्षा विस्तार से। महाभारत के अन्य अध्याय क्रमिक रूप से पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – महाभारत कथा

इन्द्र द्वारा की हुई वर्षा से सर्पों की प्रसन्नता

सौतिरुवाच
एवं स्तुतस्तदा कद्र्वा भगवान् हरिवाहनः ⁠।
नीलजीमूतसंघातैः सर्वमम्बरमावृणोत् ⁠॥⁠ १ ⁠॥
उग्रश्रवा जी कहते हैं—
नाग माता कद्रू के इस प्रकार स्तुति करने पर भगवान् इन्द्र ने मेघों की काली घटाओं द्वारा सम्पूर्ण आकाश को आच्छादित कर दिया ⁠॥⁠ १ ⁠॥

मेघानाज्ञापयामास वर्षध्वममृतं शुभम् ⁠।
ते मेघा मुमुचुस्तोयं प्रभूतं विद्युदुज्ज्वलाः ⁠॥⁠ २ ⁠॥
साथ ही मेघों को आज्ञा दी—‘तुम सब शीतल जल की वर्षा करो।’ आज्ञा पाकर बिजलियों से प्रकाशित होने वाले उन मेघों ने प्रचुर जल की वृष्टि की ⁠॥⁠ २ ⁠॥

परस्परमिवात्यर्थं गर्जन्तः सततं दिवि ⁠।
संवर्तितमिवाकाशं जलदैः सुमहाद्भुतैः ⁠॥⁠ ३ ⁠॥
सृजद्भिरतुलं तोयमजस्रं सुमहारवैः ⁠।
सम्प्रनृत्तमिवाकाशं धारोर्मिभिरनेकशः ⁠॥⁠ ४ ⁠॥
वे परस्पर अत्यन्त गर्जना करते हुए आकाश से निरन्तर पानी बरसाते रहे। जोर-जोर से गर्जने और लगातार असीम जल की वर्षा करने वाले अत्यन्त अद्‌भुत जलधरों ने सारे आकाश को घेर-सा लिया था। असंख्य धारा रूप लहरों से युक्त वह व्योम समुद्र मानो नृत्य-सा कर रहा था ⁠॥⁠ ३-४ ⁠॥

मेघस्तनितनिर्घोषैर्विद्युत्पवनकम्पितैः ⁠।
तैर्मेघैः सततासारं वर्षद्भिरनिशं तदा ⁠॥⁠ ५ ⁠॥
नष्टचन्द्रार्ककिरणमम्बरं समपद्यत ⁠।
नागानामुत्तमो हर्षस्तथा वर्षति वासवे ⁠॥⁠ ६ ⁠॥
भयंकर गर्जन-तर्जन करने वाले वे मेघ बिजली और वायु से प्रकम्पित हो उस समय निरन्तर मूसलाधार पानी गिरा रहे थे। उनके द्वारा आच्छादित आकाश में चन्द्रमा और सूर्य की किरणें भी अदृश्य हो गयी थीं। इन्द्र देव के इस प्रकार वर्षा करने पर नागों को बड़ा हर्ष हुआ ⁠॥⁠ ५-६ ⁠॥

आपूर्यत मही चापि सलिलेन समन्ततः ⁠।
रसातलमनुप्राप्तं शीतलं विमलं जलम् ⁠॥⁠ ७ ⁠॥
पृथ्वी पर सब ओर पानी-ही-पानी भर गया। वह शीतल और निर्मल जल रसातल तक पहुँच गया ⁠॥⁠ ७ ⁠॥ 

तदा भूरभवच्छन्ना जलोर्मिभिरनेकशः ⁠।
रामणीयकमागच्छन् मात्रा सह भुजङ्गमाः ⁠॥⁠ ८ ⁠॥
उस समय सारा भूतल जल की असंख्य तरंगों से आच्छादित हो गया था। इस प्रकार वर्षा से संतुष्ट हुए सर्प अपनी माता के साथ रामणीयक द्वीप में आ गये ⁠॥⁠ ८ ⁠॥

इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे षड्विंशोऽध्यायः ⁠॥⁠ २६ ⁠॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत आस्तीकपर्व में गरुड चरित्र विषयक छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ⁠॥⁠ २६ ⁠॥

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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