ज्योतिर्मय दान दो
“ज्योतिर्मय दान दो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना सन् 1957 में की गयी थी। इसमें कवि राष्ट्र व समाज को आगे ले जाने वाले ज्योतिर्मय दान की परिकल्पना कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें “ज्योतिर्मय दान दो” कविता का–
ज्योतिर्मय दान दो।
अमर ज्योति अपनी वह-
जिससे इस धरती की
अन्धकार परिवेष्टित
राहें उज्जवल तम बनें
भौतिक दु:ख दूर टले
और फिर युग युग तक
स्नेह, दया, क्षमा-सिन्धु
उर उर में लहराये
जन समाज सुख पाये।
(सन् 1957)
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।