कमल नेत्र स्तोत्र – Kamal Netra Stotra
“कमल नेत्र स्तोत्र” पढ़ें जो भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं को समर्पित है। इसके पाठ मात्र से हृदय में भक्तिभाव का संचार स्वतः ही हो जाता है। मुरलीधर घनश्याम अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं। जो भी उनकी शरण में जाता है, गीता के अनुसार वे उसके योग-क्षेम की चिन्ता स्वयं करते हैं। वे भक्तवत्सल हैं और अपने भक्तों के हृदय में वास करते हैं। ऐसे में इस सुन्दर कमल नेत्र स्तोत्र का पाठ अवश्य ही हृदय में भक्तिभाव उत्पन्न कर श्री भगवान की दिव्य छवि मन में उकेरेगा। पढ़ें यह अद्भुत कमल नेत्र स्तोत्र–
श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बर,
अधर मुरली गिरधरम।
मुकुट कुण्डल कर लकुटिया,
सांवरे राधेवरम ॥1॥
कूल यमुना धेनु आगे,
सकल गोपयन के मन हरम।
पीत वस्त्र गरुड़ वाहन,
चरण सुख नित सागरम ॥2॥
करत केल कलोल निश दिन,
कुंज भवन उजागरम।
अजर अमर अडोल निश्चल,
पुरुषोत्तम अपरा परम ॥3॥
दीनानाथ दयाल गिरिधर,
कंस हिरणाकुश हरणम।
गल फूल भाल विशाल लोचन,
अधिक सुन्दर केशवम ॥4॥
बंशीधर वासुदेव छइया,
बलि छल्यो श्री वामनम।
जब डूबते गज राख लीनों,
लंक छेद्यो रावनम ॥5॥
सप्त दीप नवखण्ड चौदह,
भवन कीनों एक पदम।
द्रोपदी की लाज राखी,
कहां लौ उपमा करम ॥6॥
दीनानाथ दयाल पूरण,
करुणा मय करुणा करम।
कवित्तदास विलास निशदिन,
नाम जप नित नागरम ॥7॥
प्रथम गुरु के चरण बन्दों,
यस्य ज्ञान प्रकाशितम।
आदि विष्णु जुगादि ब्रह्मा,
सेविते शिव संकरम ॥8॥
श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव,
कृष्ण यदुपति केशवम।
श्रीराम रघुवर, राम रघुवर,
राम रघुवर राघवम ॥9॥
श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधव,
वासुदेव श्री वामनम।
मच्छ-कच्छ वाराह नरसिंह,
पाहि रघुपति पावनम ॥10॥
मथुरा में केशवराय विराजे,
गोकुल बाल मुकुन्द जी।
श्री वृन्दावन में मदन मोहन,
गोपीनाथ गोविन्द जी ॥11॥
धन्य मथुरा धन्य गोकुल,
जहाँ श्री पति अवतरे।
धन्य यमुना नीर निर्मल,
ग्वाल बाल सखावरे ॥12॥
नवनीत नागर करत निरन्तर,
शिव विरंचि मन मोहितम।
कालिन्दी तट करत क्रीड़ा,
बाल अदभुत सुन्दरम ॥13॥
ग्वाल बाल सब सखा विराजे,
संग राधे भामिनी।
बंशी वट तट निकट यमुना,
मुरली की टेर सुहावनी ॥14॥
भज राघवेश रघुवंश उत्तम,
परम राजकुमार जी।
सीता के पति भक्तन के गति,
जगत प्राण आधार जी ॥15॥
जनक राजा पनक राखी,
धनुष बाण चढ़ावहीं।
सती सीता नाम जाके,
श्री रामचन्द्र प्रणामहीं ॥16॥
जन्म मथुरा खेल गोकुल,
नन्द के ह्रदि नन्दनम।
बाल लीला पतित पावन,
देवकी वसुदेवकम ॥17॥
श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाके,
जो भजे हरिचरण को।
भक्ति अपनी देव माधव,
भवसागर के तरण को ॥18॥
जगन्नाथ जगदीश स्वामी,
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम।
द्वारिका के नाथ श्री पति,
केशवं प्रणमाम्यहम ॥19॥
श्रीकृष्ण अष्टपदपढ़तनिशदिन,
विष्णु लोक सगच्छतम।
श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामी,
कविदत्त दास समाप्ततम ॥20॥
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर यह स्तोत्र को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें कमल नेत्र स्तोत्र रोमन में–
Read Kamal Netra Stotra
śrī kamala netra kaṭi pītāmbara,
adhara muralī giradharama।
mukuṭa kuṇḍala kara lakuṭiyā,
sāṃvare rādhevarama ॥1॥
kūla yamunā dhenu āge,
sakala gopayana ke mana harama।
pīta vastra garuḍa़ vāhana,
caraṇa sukha nita sāgarama ॥2॥
karata kela kalola niśa dina,
kuṃja bhavana ujāgarama।
ajara amara aḍola niścala,
puruṣottama aparā parama ॥3॥
dīnānātha dayāla giridhara,
kaṃsa hiraṇākuśa haraṇama।
gala phūla bhāla viśāla locana,
adhika sundara keśavama ॥4॥
baṃśīdhara vāsudeva chaiyā,
bali chalyo śrī vāmanama।
jaba ḍūbate gaja rākha līnoṃ,
laṃka chedyo rāvanama ॥5॥
sapta dīpa navakhaṇḍa caudaha,
bhavana kīnoṃ eka padama।
dropadī kī lāja rākhī,
kahāṃ lau upamā karama ॥6॥
dīnānātha dayāla pūraṇa,
karuṇā maya karuṇā karama।
kavittadāsa vilāsa niśadina,
nāma japa nita nāgarama ॥7॥
prathama guru ke caraṇa bandoṃ,
yasya jñāna prakāśitama।
ādi viṣṇu jugādi brahmā,
sevite śiva saṃkarama ॥8॥
śrīkṛṣṇa keśava kṛṣṇa keśava,
kṛṣṇa yadupati keśavama।
śrīrāma raghuvara, rāma raghuvara,
rāma raghuvara rāghavama ॥9॥
śrīrāma kṛṣṇa govinda mādhava,
vāsudeva śrī vāmanama।
maccha-kaccha vārāha narasiṃha,
pāhi raghupati pāvanama ॥10॥
mathurā meṃ keśavarāya virāje,
gokula bāla mukunda jī।
śrī vṛndāvana meṃ madana mohana,
gopīnātha govinda jī ॥11॥
dhanya mathurā dhanya gokula,
jahā~ śrī pati avatare।
dhanya yamunā nīra nirmala,
gvāla bāla sakhāvare ॥12॥
navanīta nāgara karata nirantara,
śiva viraṃci mana mohitama।
kālindī taṭa karata krīḍa़ā,
bāla adabhuta sundarama ॥13॥
gvāla bāla saba sakhā virāje,
saṃga rādhe bhāminī।
baṃśī vaṭa taṭa nikaṭa yamunā,
muralī kī ṭera suhāvanī ॥14॥
bhaja rāghaveśa raghuvaṃśa uttama,
parama rājakumāra jī।
sītā ke pati bhaktana ke gati,
jagata prāṇa ādhāra jī ॥15॥
janaka rājā panaka rākhī,
dhanuṣa bāṇa caḍha़āvahīṃ।
satī sītā nāma jāke,
śrī rāmacandra praṇāmahīṃ ॥16॥
janma mathurā khela gokula,
nanda ke hradi nandanama।
bāla līlā patita pāvana,
devakī vasudevakama ॥17॥
śrīkṛṣṇa kalimala haraṇa jāke,
jo bhaje haricaraṇa ko।
bhakti apanī deva mādhava,
bhavasāgara ke taraṇa ko ॥18॥
jagannātha jagadīśa svāmī,
śrī badrīnātha viśvambharama।
dvārikā ke nātha śrī pati,
keśavaṃ praṇamāmyahama ॥19॥
śrīkṛṣṇa aṣṭapadapaḍha़taniśadina,
viṣṇu loka sagacchatama।
śrīguru rāmānanda avatāra svāmī,
kavidatta dāsa samāptatama ॥20॥