करवा चौथ पर निबंध
करवा चौथ पर निबंध इस पर्व के विभिन्न पहलुओं यथा रीति-रिवाज़, धार्मिक मान्यताएँ और विविधता आदि पर प्रकाश डालता है। यह पर्व पति और पत्नी के संबंध को दृढ़ता प्रदान करता है। साथ ही यह आधुनिक समय में अपनी परम्पराओं से जुड़े रहने का भी माध्यम है। पढ़ें करवा चौथ पर निबंध–
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पति की दीर्घायु का व्रत
पति को दीर्घायु और मंगलकामना हेतु हिन्दू-सुहागिन नारियों का यह महान पावन पर्व है। करवा (जल-पात्र) द्वारा कार्तिक मास के कृष्ण-पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पारण (उपवास के बाद का पहला भोजन) करने का विधान होने से इसका नाम करवा चौथ है।
करवा चौथ और करक चतुर्थी पर्यायवाची हैं। चंद्रोदय तक निर्जल उपवास रखकर पुण्य संचय करना इस पर्व की विधि है। चन्द्र दर्शनोपरांत सास या परिवार में ज्येष्ठ श्रद्धेय नारी को बायन (बायना) दान देकर ‘सदा सौभाग्यवती भव’ का आशीर्वाद लेना व्रत साफल्य का सूचक है।
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सुहागिन नारी का पर्व होने के नाते यथासम्भव और यथाशक्ति न्यूनाधिक सोलह शृंगार से अलंकृत होकर सुहागिन अपने अन्तःकरण के उल्लास को प्रकट करती है। पति से स्त्री के संबंध चाहे जैसे भी क्यों न हों, उनके बीच तनाव हो अथवा कोई और समस्या चल रही है–यह पर्व उसे दूर करने का एक साधन बन जाता है। जहाँ दोनों ही अपने अपने अहम् को त्यागकर जीवन को प्रेममय बनाने का निश्चय करते हैं। पत्नी और पति के बीच प्रेम का अद्भुत प्रतीक यह पर्व दूसरे किसी भी धर्म या संस्कृति में कहाँ?
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उपवास का कारण और प्रकार
पुण्य प्राप्ति के लिए किसी पुण्य तिथि में उपवास करने या किसी उपवास के कर्मनुष्ठान द्वारा पुण्य संचय करने के संकल्प को व्रत कहते हैं। व्रत और उपवास द्वारा शरीर को तपाना तप है। व्रत धारण कर, उपवास रखकर पति की मंगलकामना सुहागिन का तप है। तप द्वारा सिद्धि प्राप्त करना पुण्य का मार्ग है। अतः सुहागिन करवा चौथ का व्रत धारण कर उपवास रखती हैं।
समय, सुविधा और स्वास्थ्य के अनुकूल उपवास करने में ही व्रत का आनन्द है। उपवास तीन प्रकार के रखे जाते हैं–
- ब्राह्म मुहूर्त से चन्द्रोदय तक जल तक भी ग्रहण न करना।
- ब्राह्ममुहूर्त में सर्गी, मिष्ठान्न, चाय आदि द्वारा जलपान कर लेना।
- दिन में चाय या फल स्वीकार कर लेना, किन्तु अन्न ग्रहण नहीं करना।
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पर्व की विविधता
करवा चौथ पर निबंध में इसके विविध रूपों की चर्चा आवश्यक है। भारतीय पर्वों में विविधिता का इन्द्रधनुषीय सौन्दर्य है। इस पर्व के मनाने, व्रत रखने, उपवास करने में मायके से खाद्य-पदार्थ भेजने, न भेजने, रूढ़ि-परम्परा से चली कथा सुनने-न सुनने, बायना देने-न देने, करवे का आदान-प्रदान करने-न करने, श्रद्धेय, प्रौढ़ा से आशीर्वाद लेने-न लेने की विविध शैलियाँ हैं। इन सब विविधता में एक ही उद्देश्य निहित है, पति का मंगल और आपसी प्रेम की भावना।
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करवा चौथ की सार्थकता
इस समय पूरा देश पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध से विस्मित है। हम अपने पुराने मूल्य और परम्पराएँ विस्मृत करते जा रहे हैं। भाषा, पहनावा आदि सब बदल रहा है। फिर भी करवा चौथ के दिन सब ओर से ध्यान हटाकर व्रत के प्रति निष्ठा और इस परंपरा के प्रति समर्पण करवा चौथ की ही महिमा है।
हिन्दू धर्म विरोधी ‘खाओ-पीओ मौज उड़ाओ’ की सभ्यता में सरोबार तथा कथित प्रगतिशील तथा प्रत्येक परंपरा में नारी-विरोधी तत्त्व देखने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी एक प्रश्न खड़ा करते हैं कि करवा चौथ का पर्व नारी के लिए ही क्यों? आइए, करवा चौथ पर निबंध में इस विषय पर भी संक्षेप में चर्चा करते हैं।
वस्तुतः ऋषि-मुनियों ने सभी के लिए अलग-अलग तरह के व्रत-उपवास आदि का विधान किया है। प्रायः स्त्रियाँ ही संस्कृति को आगे ले जाती हैं और भावी पीढ़ियों को परंपराओं से जोड़े रखती हैं–यह उनका विशेष गुण है। उन्हीं की वजह से भारतीय संस्कृति अविच्छिन्न प्रवाहित हो रही है। करवा चौथ के व्रत के माध्यम से वे स्वयं के भीतर प्रेम और त्याग के भाव को जीवित रखती हैं। व्रत करने के लिए कोई ज़बरदस्ती नहीं है। जो स्वेच्छा से चाहे वह व्रत कर सकता है, जैसा कि अधिकांश विवाहित स्त्रियाँ करती हैं। भारत के अनेक भागों में आज भी करवा चौथ का व्रत न करके स्त्रियाँ अन्य व्रत आदि करती हैं, क्योंकि यह स्थान-विशेष की परंपरा का विषय है।
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पतिव्रता नारी और पति का कर्त्तव्य
यह एक कटु सत्य है कि पति की मृत्यु के बाद परिवार पर जो दुःख-कष्ट आते हैं, विपदाओं का जो पहाड़ टूटता है, उससे नारी का जीवन नरक-तुल्य बन जाता है। निराला जी ने सच ही कहा है–
वह क्रूर काल तांडव की स्मृति रेखा-सी
वह टूटे तरु की छूटी लता-सी दीन
दलित भारत की विधवा है। (अपरा, पृष्ठ 57)
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कुछ भ्रष्टबुद्धि नगण्य-सम पतियों को छोड़कर सभी पति परिवार-पोषण के संकल्प से, व्रत से आबद्ध रहते हैं। अपना पेट काटकर, अपनी आकांक्षाओं को कुचलकर, अपने दुःख-सुख की परवाह छोड़कर इस व्रत का नित्य पालन करते हैं। अपने परिवार का भरण-पोषण, सुख-सुविधा और उज्ज्वल भविष्य मेरा दायित्व है, मेरा व्रत है–वे इस व्रत-पालन में जीवन की सिद्धि मानता है–
व्रतेन् दीक्षामाणोति, दीक्षयाणोति दक्षिणाम्।
दक्षिणा श्रद्धामाणोति, श्रद्धया सत्यमाप्यते।
व्रत से दीक्षा प्राप्त होती है । दीक्षा से दक्षिणा प्राप्त होती है। दक्षिणा से श्रद्धा प्राप्त होती है। श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है।
यदि पति-पत्नी करवा चौथ के इस व्रत की सभी विशेषताओं को समझते हुए एक-दूसरे का हर क़दम पर साथ देंगे, एक-दूसरे के प्रति अटूट निष्ठा रखेंगे, एक-दूसरे का हर परिस्थिति में साथ देंगे, तो निश्चित ही ऐसा घर स्वर्ग के समान बन जाएगा।
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