धर्म

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – Kashi Vishwanath Jyotirling

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर भारतकी प्रसिद्ध नगरी काशी में स्थित है। इस नगरी का प्रलयकाल में भी लोप नहीं होता। उस समय भगवान् अपनी वासभूमि इस पवित्र नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टिकाल आनेपर पुनः यथास्थान रख देते हैं।

सृष्टि की आदि स्थली भी इसी नगरी को बताया जाता है। भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि- कामना से तपस्या करके भगवान् शंकर जी को प्रसन्न किया था। अगस्त्य मुनि ने भी इसी स्थान पर अपनी तपस्या द्वारा भगवान् शिव को सन्तुष्ट किया था।

इस पवित्र नगरीकी महिमा ऐसी है कि यहाँ जो भी प्राणी अपने प्राण त्याग करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान् शंकर उसके कानमें ‘तारक’ मन्त्र का उपदेश करते हैं। इस मंत्र के प्रभाव से पापी-से-पापी प्राणी भी सहज ही भवसागर की बाधाओं से पार हो जाते हैं।

अन्य ज्योतिर्लिंगों के नाम, स्थान व महिमा आदि जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – 12 ज्योतिर्लिंग

विषयासक्तचित्तोऽपि त्यक्तधर्मरतिर्नरः।
इह क्षेत्रे मृतः सोऽपि संसारे न पुनर्भवेत्॥

अर्थात् “विषयों में आसक्त, अधर्मनिरत व्यक्ति भी यदि इस काशी क्षेत्र में मृत्यु को प्राप्त हो तो उसे भी पुनः संसार- बन्धन में नहीं आना पड़ता।”

मत्स्य पुराण में इस नगरी का महत्त्व बताते हुए कहा गया है, “जप, ध्यान और ज्ञानरहित तथा दुःखों से पीड़ित मनुष्यों के लिये काशी ही एकमात्र परमगति है। श्री विश्वेश्वर के आनन्द-कानन में दशाश्वमेध, लोलार्क, बिन्दुमाधव, केशव और मणिकर्णिका – ये पाँच प्रधान तीर्थ हैं। इसी से इसे ‘अविमुक्त क्षेत्र’ कहा जाता है।”

जपध्यानविहीनानां ज्ञानवर्जितचेतसाम्।
ततो दुःखाहतानां च गतिर्वाराणसी नृणाम्॥
तीर्थानां पञ्चकं सारं विश्वेशानन्दकानने।
दशाश्वमेधं लोलार्कः केशवो बिन्दुमाधवः॥
पञ्चमी तु महाश्रेष्ठा प्रोच्यते मणिकर्णिका।
एभिस्तु तीर्थवर्यैश्च वर्ण्यते ह्यविमुक्तकम्॥

इस परम पवित्र नगरीके उत्तरकी तरफ ॐकारखण्ड, दक्षिणमें केदारखण्ड और बीचमें विश्वेश्वरखण्ड है। प्रसिद्ध विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग इसी खण्ड में अवस्थित है। पुराणों में इस काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Kashi Vishwanath Jyotirling) के सम्बन्धमें यह कथा दी गयी है–

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा

भगवान् शंकर पार्वती जी का पाणि ग्रहण करके कैलास पर्वत पर रह रहे थे। लेकिन वहाँ पिता के घर में ही विवाहित जीवन बिताना पार्वती जी को अच्छा न लगता था। एक दिन उन्होंने भगवान् शिवसे कहा, “आप मुझे अपने घर ले चलिये। यहाँ रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। सारी लड़कियाँ शादी के बाद अपने पति के घर जाती हैं, मुझे पिता के घर में ही रहना पड़ रहा है।” भगवान् शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। वह माता पार्वती जी को साथ लेकर अपनी पवित्र नगरी काशी में आ गये। यहाँ आकर वे विश्वेश्वर या काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गये।

विश्वेश्वर की महिमा

शास्त्रों में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Vishweshwar Jyotirling) की महिमा का निगदन पुष्कल रूपों में किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन द्वारा मनुष्य समस्त पापों तापों से छुटकारा पा जाता है। प्रतिदिन नियम से श्री विश्वेश्वर के दर्शन करने वाले भक्तों के योग-क्षेम का समस्त भार भूतभावन भगवान् शंकर अपने ऊपर ले लेते हैं। ऐसा भक्त उनके परमधाम का अधिकारी बन जाता है। भगवान् शिव जी की कृपा उस पर सदैव बनी रहती है। रोग, शोक, दुःख-दैन्य उसके पास भूलकर भी नहीं जाते।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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