कात्यायनी माता की आरती – Katyayani Mata Ki Aarti
कात्यायनी माता की आरती करने से भक्तों को सभी प्रकार के रोग, दोष, भय और शोक से मुक्ति मिलती हैI माँ कात्यायनी भगवती देवी दुर्गा का छठा अवतार हैंI इसलिए नवरात्रि के शुभ समय पर पूजा के बाद कात्यायनी माता की आरती अवश्य करनी चाहिएI कहते हैं माँ कात्यायनी की आरती करने से कुंवारी कन्याओं को मनवांछित वर की प्राप्ति होती है और विवाह में आने वाली सभी कठिनाइयाँ दूर होती हैंI
कात्यायनी माता की आरती (Katyayani Mata Ki Aarti) के लिए गोधूली बेला को सबसे उत्तम माना गया हैI यदि कोई व्यक्ति कात्यायनी माता की आरती के बाद माँ को मिठाई का भोग लगाकर कुवांरी कन्याओं में प्रसाद वितरण करते हैं तो उन्हें कभी भी धन के अभाव का सामना नहीं करना पड़ता हैI मान्यता है कि सच्चे मन से कात्यायनी माता की आरती करने से जातकों को असीम सफलता मिलती है, उनका पराक्रम बढ़ता है तथा उन्हें समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती हैI
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जय जय अम्बे, जय कात्यायनी,
जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा,
वहां वरदाती नाम पुकारा।
कई नाम हैं, कई धाम हैं,
यह स्थान भी तो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी,
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते,
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की,
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली,
अपना नाम जपाने वाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो,
ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी,
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे,
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।
मां कात्यायनी की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कात्यायनी की प्रार्थना
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
मां कात्यायनी बीज मंत्र
क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम
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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर कात्यायनी मां की आरती ( Katyayani Maa Ki Aarti ) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें कात्यायनी माता की आरती रोमन में–
Read Katyayani Maa Ki Aarti
jaya jaya ambe, jaya kātyāyanī,
jaya jagamātā, jaga kī mahārānī।
baijanātha sthāna tumhārā,
vahāṃ varadātī nāma pukārā।
kaī nāma haiṃ, kaī dhāma haiṃ,
yaha sthāna bhī to sukhadhāma hai।
hara maṃdira meṃ jota tumhārī,
kahīṃ yogeśvarī mahimā nyārī।
hara jagaha utsava hote rahate,
hara maṃdira meṃ bhakta haiṃ kahate।
kātyāyanī rakṣaka kāyā kī,
graṃthi kāṭe moha māyā kī।
jhūṭhe moha se chuḍa़āne vālī,
apanā nāma japāne vālī।
bṛhaspativāra ko pūjā kariyo,
dhyāna kātyāyanī kā dhariyo।
hara saṃkaṭa ko dūra karegī,
bhaṃḍāre bharapūra karegī।
jo bhī māṃ ko bhakta pukāre,
kātyāyanī saba kaṣṭa nivāre।
māṃ kātyāyanī kī stuti
yā devī sarvabhūteṣu māṃ kātyāyanī rūpeṇa saṃsthitā।
namastasyai namastasyai namastasyai namo namaḥ॥
māṃ kātyāyanī kī prārthanā
candrahāsojjvalakarā śārdūlavaravāhanā।
kātyāyanī śubhaṃ dadyād devī dānavaghātinī॥
māṃ kātyāyanī bīja maṃtra
klīṃ śrī trinetrāyai nama