कौन धरा पर उतरा है
“कौन धरा पर उतरा है” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। बसंत पंचमी के अवसर पर लिखी गयी यह कविता बासंती ऋतु के आगमन और उसके स्वागत का सुंदर वर्णन करती है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
बंसत पंचमी के सुअवसर पर,
आसमान से किरनों के संग कौन धरा पर यह उतरा है।
धरती की गोदी में किसने फूलों का भण्डार भरा है।
कौन सुरभि बनकर आया है किसने गति बदली है मन की
स्नेहिल स्वर में कौन अपरिचित देता परिभाषा जीवन की।
आज धरा के कण-कण में यह कौन नया जीवन लाया है।
तृण-तृण में किसने आकर के नव जीवन रस छलकाया है॥
मन्द पवन के झौकों से हैं झूम रही गेहूँ की बालें।
तरु शिखरों पर बैठे पक्षी अपनी सरगम खूब निकालें ॥
आज चना के सिर पर सेहरा सरसों दुलहिन बन आई है।
सुघर सहेली अलसी पहने नीली साड़ी इठलाई है॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।