कुंथुनाथ चालीसा – Bhagwan Kunthunath Chalisa
कुंथुनाथ चालीसा का पाठ करने वाला सहसा ही स्वयंसिद्ध हो जाता है। इस शक्ति-कणों से परिपूर्ण चालीसा को पढ़ने से जगत में कुछ भी अप्राप्य नहीं रहता है। कहते हैं कि कुंथुनाथ चालीसा का पाठ सिद्धि, यश-वैभव, ज्ञान और बल प्रदान करने वाला है। जो व्यक्ति भक्तिभाव से इसका पाठ करता है, उसकी सभी समस्याओं का अन्त हो जाता है और जीवन में इच्छानुसार प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति होती है। पढ़ें कुंथुनाथ चालीसा–
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भगवान कुन्थनाथ का चिह्न – बकरा
दयासिन्धु कुन्थु जिनराज,
भवसिन्धु तिरने को जहाज॥
कामदेव-चक्री महाराज,
दया करो हम पर भी आज॥
जय श्री कुन्थुनाथ गुणखान,
परम यशस्वी महिमावान॥
हस्तिनापुर नगरी के भूपति,
शूरसेन कुरुवंशी अधिपति॥
महारानी थी श्रीमति उनकी,
वर्षा होती थी रतनन की॥
प्रतिपदा बैसाख उजियारी,
जन्मे तीर्थंकर बलधारी॥
गहन भक्ति अपने उर धारे,
हस्तिनापुर आए सुर सारे॥
इन्द्र प्रभु को गोद में लेकर,
गए सुमेरु हर्षित होकर॥
न्हवन करें निर्मल जल लेकर,
ताण्डव नृत्य करें भक्ति-भर॥
कुन्थुनाथ नाम शुभ देकर,
इन्द्र करें स्तवन मनोहर॥
दिव्य- वस्त्र- भूषण पहनाए,
वापिस हस्तिनापुर को आए॥
क्रम- क्रम से बढे बालेन्दु सम,
यौवन शोभा धारें हितकार॥
धनु पैंतालीस उन्नत प्रभु- तन,
उत्तम शोभा धारें अनुपम॥
आयु . पिचानवे वर्ष हजार,
लक्षण ‘अज’ धारें हितकार॥
राज्याभिषेक हुआ विधिपूर्वक,
शासन करें सुनीति पूर्वक॥
चक्ररतन शुभ प्राप्त हुआ जब,
चक्रवर्ती कहलाए प्रभु तब॥
एक दिन गए प्रभु उपवन में,
शान्त मुनि इक देखें मग में॥
इगित किया तभी अंगुलिसे,
“देखो मुनिको”- कहा मंत्री से॥
मंत्री ने पूछा जब कारण,
“किया मोक्षहित मुनिपद धारण”॥
कारण करें और स्पष्ट,
“मुनिपद से ही कर्म हों नष्ट”॥
मंत्री का तो हुआ बहाना,
किया वस्तुत: निज कल्याणा॥
चित्त विरक्त हुआ विषयों से,
तत्व चिन्तन करते भावों से॥
निज सुत को सौंपा सब राज,
गए सहेतुक वन जिनराज॥
पंचमुष्टि से केशलौंचकर,
धार लिया पद नगन दिगम्बर॥
तीन दिन बाद गए गजपुर को,
धर्ममित्र पड़गाहें प्रभु को॥
मौन रहे सोलह वर्षों तक,
सहे शीत- वर्षा और आतप॥
स्थिर हुए तिलक तरु-जल में,
मगन हुए निज ध्यान अटल में॥
आतम में बढ़ गई विशुद्धि,
केवलज्ञान की हो गई सिद्धि॥
सूर्यप्रभा सम सोहें आप्त,
दिग्मण्डल शोभा हुई व्याप्त॥
समोशरण रचना सुखकार,
ज्ञानतृषित बैठे नर – नार॥
विषय – भोग महा विषमय है,
मन को कर देते तन्मय हैं॥
विष से मरते एक जनम में,
भोग विषाक्त मरे भव-भव में॥
क्षण भंगुर मानव का जीवन,
विद्युतवत् विनसे अगले क्षण॥
सान्ध्य ललिमा के सदृश्य ही,
यौवन हो जाता अदृश्य ही॥
जब तक आतम बुद्धि नही हो,
तब तक दरश विशुद्धि नहीं हों॥
पहले विजित करो पंचेन्द्रिय,
आतमबल से बनो जितेन्द्रिय॥
भव्य भारती प्रभु की सुनकर,
श्रावकजन आनन्दित को कर॥
श्रद्धा से व्रत धारण करते,
शुभ भावों का अर्जन करते॥
शुभायु एक मास रही जब,
शैल सम्मेद पे वास किया तब॥
धारा प्रतिमा योग वहाँ पर.
काटा कर्मबन्ध सब प्रभुवर॥
मोक्षकल्याणक करते सुरगण,
कट ज्ञानधर करते पूजन॥
चक्री- कामदेव- तीर्थंकर,
कुन्थुनाथ थे परम हितंकर॥
चालीसा जो पढे भाव से,
स्वयंसिद्ध हों निज स्वभाव से॥
धर्म चक्र के लिए प्रभु ने,
चक्र सुदर्शन तज डाला॥
इसी भावना ने अरुणा को,
किया ज्ञान में मतवाला॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुन्थनाथाय नमः
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर कुंथुनाथ चालीसा (Kunthunath Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें कुंथुनाथ चालीसा रोमन में–
Read Kunthunath Chalisa
dayāsindhu kunthu jinarāja,
bhavasindhu tirane ko jahāja॥
kāmadeva-cakrī mahārāja,
dayā karo hama para bhī āja॥
jaya śrī kunthunātha guṇakhāna,
parama yaśasvī mahimāvāna॥
hastināpura nagarī ke bhūpati,
śūrasena kuruvaṃśī adhipati॥
mahārānī thī śrīmati unakī,
varṣā hotī thī ratanana kī॥
pratipadā baisākha ujiyārī,
janme tīrthaṃkara baladhārī॥
gahana bhakti apane ura dhāre,
hastināpura āe sura sāre॥
indra prabhu ko goda meṃ lekara,
gae sumeru harṣita hokara॥
nhavana kareṃ nirmala jala lekara,
tāṇḍava nṛtya kareṃ bhakti-bhara॥
kunthunātha nāma śubha dekara,
indra kareṃ stavana manohara॥
divya- vastra- bhūṣaṇa pahanāe,
vāpisa hastināpura ko āe॥
krama- krama se baḍhe bālendu sama,
yauvana śobhā dhāreṃ hitakāra॥
dhanu paiṃtālīsa unnata prabhu- tana,
uttama śobhā dhāreṃ anupama॥
āyu . picānave varṣa hajāra,
lakṣaṇa ‘aja’ dhāreṃ hitakāra॥
rājyābhiṣeka huā vidhipūrvaka,
śāsana kareṃ sunīti pūrvaka॥
cakraratana śubha prāpta huā jaba,
cakravartī kahalāe prabhu taba॥
eka dina gae prabhu upavana meṃ,
śānta muni ika dekheṃ maga meṃ॥
igita kiyā tabhī aṃgulise,
“dekho muniko”- kahā maṃtrī se॥
maṃtrī ne pūchā jaba kāraṇa,
“kiyā mokṣahita munipada dhāraṇa”॥
kāraṇa kareṃ aura spaṣṭa,
“munipada se hī karma hoṃ naṣṭa”॥
maṃtrī kā to huā bahānā,
kiyā vastuta: nija kalyāṇā॥
citta virakta huā viṣayoṃ se,
tatva cintana karate bhāvoṃ se॥
nija suta ko sauṃpā saba rāja,
gae sahetuka vana jinarāja॥
paṃcamuṣṭi se keśalauṃcakara,
dhāra liyā pada nagana digambara॥
tīna dina bāda gae gajapura ko,
dharmamitra paḍa़gāheṃ prabhu ko॥
mauna rahe solaha varṣoṃ taka,
sahe śīta- varṣā aura ātapa॥
sthira hue tilaka taru-jala meṃ,
magana hue nija dhyāna aṭala meṃ॥
ātama meṃ baḍha़ gaī viśuddhi,
kevalajñāna kī ho gaī siddhi॥
sūryaprabhā sama soheṃ āpta,
digmaṇḍala śobhā huī vyāpta॥
samośaraṇa racanā sukhakāra,
jñānatṛṣita baiṭhe nara – nāra॥
viṣaya – bhoga mahā viṣamaya hai,
mana ko kara dete tanmaya haiṃ॥
viṣa se marate eka janama meṃ,
bhoga viṣākta mare bhava-bhava meṃ॥
kṣaṇa bhaṃgura mānava kā jīvana,
vidyutavat vinase agale kṣaṇa॥
sāndhya lalimā ke sadṛśya hī,
yauvana ho jātā adṛśya hī॥
jaba taka ātama buddhi nahī ho,
taba taka daraśa viśuddhi nahīṃ hoṃ॥
pahale vijita karo paṃcendriya,
ātamabala se bano jitendriya॥
bhavya bhāratī prabhu kī sunakara,
śrāvakajana ānandita ko kara॥
śraddhā se vrata dhāraṇa karate,
śubha bhāvoṃ kā arjana karate॥
śubhāyu eka māsa rahī jaba,
śaila sammeda pe vāsa kiyā taba॥
dhārā pratimā yoga vahā~ para.
kāṭā karmabandha saba prabhuvara॥
mokṣakalyāṇaka karate suragaṇa,
kaṭa jñānadhara karate pūjana॥
cakrī- kāmadeva- tīrthaṃkara,
kunthunātha the parama hitaṃkara॥
cālīsā jo paḍhe bhāva se,
svayaṃsiddha hoṃ nija svabhāva se॥
dharma cakra ke lie prabhu ne,
cakra sudarśana taja ḍālā॥
isī bhāvanā ne aruṇā ko,
kiyā jñāna meṃ matavālā॥
jāpa:- oṃ hrīṃ aha~ śrī kunthanāthāya namaḥ