लिखो नया इतिहास (राष्ट्र पर्व 15 अगस्त 1960)
“लिखो नया इतिहास” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 अगस्त सन् 1960 को लिखी गयी थी। इसमें देश के पुनर्निमाण का आह्वान झलकता है। पढ़ें यह कविता–
मुक्ति मिली थी आज ही, सिद्धि मिली थी आज ही।
धरती की परतों को तोड़ो लिए फावड़ा हाथ में
खेतों की मिट्टी को जोतो हल-बैलों के साथ में
रज से रजत निकालो श्रम से नई खाद दो आज ही ।
ऊँचे-ऊँचे टीले-पर्वत बुलडोजर से तोड़ दो
फिर इठलाती नदियों का पानी खेतों में मोड़ दो
हरी-भरी खेती हो जाये, बनो भगीरथ आज ही।
ज्वार-बाजरा के पौधे सिर ऊँचा करके लहरायें
बैठ मेंड़ पर धरती के राजा मन ही मन हर्षाये
जौ-गेहूँ की सोने जैसी फसल उगाओ आज ही।
बाग-बगीचा हरे-भरे हों, सुमन-सुमन फिर मुस्काये
फल-फूलों की हाट लगी हो, गुन-गुन गुन भौरे गाये
घर-घर में सुख-शान्ति बसी हो, करो कामना आज ही
सब हिलमिल कर बच्चे खेलें, घनी नींव की छांव में।
मना रहे हो खुशी बहुत ही अपने-अपने गांव में।
स्वच्छ वसन, निर्मल तन वाले हो जायें सब आज ही।
लिखो नया इतिहास देश के, निर्माणों का आज ही॥
उधर युवतियाँ झूला डालें झूल रही हों मोद में।
दे हिचकोले बढ़ा रही हों झूले को आमोद में।
हास-विलास बहा फिरता हो, गली-गली में आज ही।
लिखो नया इतिहास देश के, निर्माणों का आज ही॥
ढमक-ढमक घर-घर में ढोलक बाजे चारों ओर रे!
सुन पड़ता हो छूम छनन छन पायलिया का शोर रे!
सबके मन में जीवन की अभिलाषा जागे आज ही ।
लिखो नया इतिहास देश के, निर्माणों का आज ही ॥
ग्वाल-बाल की टोली, नित ही अपना रास रचाती हो।
पीरी फरिया लाल घुघरिया, पहिन राधिका आती हो।
मनमोहन की मनहर वंशी बजे, बजाये आज ही।
लिखो नया इतिहास देश के, निर्माणों का आज ही॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।