कुष्मांडा माता की आरती – Maa Kushmanda Aarti
कुष्मांडा माता की आरती (Maa Kushmanda Aarti) नित्य गाने से दुःख का सागर यह संसार सुखद व सुंदर बन जाता है।
माँ कूष्माण्डा देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं। नवरात्र पर्व के चतुर्थ दिन इनकी उपासना का विधान है। कुष्मांडा देवी की आरती शक्ति-संपन्न है और इसे पढ़ना भक्तों के हृदय के पाप नष्ट करने वाला है। इससे अन्तःकरण का मालिन्य स्वतः ही विनष्ट हो जाता है। माँ ने अपने “ईषत्” हास्य से संपूर्ण ब्रह्माण्ड को रचा है। अतः समस्त संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जो देवी कूष्माण्डा की उपासना से संभव न हो सकता हो। कुष्मांडा माता की आरती गाने से माँ तुरन्त प्रसन्न हो जाती हैं क्योंकि वे अत्यल्प सेवा-भक्ति से भी प्रसन्न होने वाली ममतामयी हैं। कहते हैं कि कुष्मांडा माता की आरती पढ़ने से भक्त के सभी रोग-शोक नाश को प्राप्त हो जाते हैं।
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कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
मां कूष्मांडा स्तोत्र
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
मां कूष्मांडा ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर कुष्मांडा माता की आरती ( Maa Kushmanda Aarti ) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें कुष्मांडा माता की आरती रोमन में–
Read Maa Kushmanda Aarti
kūṣmāṃḍā jaya jaga sukhadānī।
mujha para dayā karo mahārānī॥
pigaṃlā jvālāmukhī nirālī।
śākaṃbarī māṃ bholī bhālī॥
lākhoṃ nāma nirāle tere।
bhakta kaī matavāle tere॥
bhīmā parvata para hai ḍerā।
svīkāro praṇāma ye merā॥
sabakī sunatī ho jagadambe।
sukha pahuṃcatī ho māṃ ambe॥
tere darśana kā maiṃ pyāsā।
pūrṇa kara do merī āśā॥
māṃ ke mana meṃ mamatā bhārī।
kyoṃ nā sunegī araja hamārī॥
tere dara para kiyā hai ḍerā।
dūra karo māṃ saṃkaṭa merā॥
mere kāraja pūre kara do।
mere tuma bhaṃḍāre bhara do॥
terā dāsa tujhe hī dhyāe।
bhakta tere dara śīśa jhukāe॥
māṃ kūṣmāṃḍā stotra
durgatināśinī tvaṃhi daridrādi vināśanīm।
jayaṃdā dhanadā kūṣmāṇḍe praṇamāmyaham॥
jagatamātā jagatakatrī jagadādhāra rūpaṇīm।
carācareśvarī kūṣmāṇḍe praṇamāmyaham॥
trailokyasundarī tvaṃhi duḥkha śoka nivāriṇīm।
paramānandamayī, kūṣmāṇḍe praṇamāmyaham॥
māṃ kūṣmāṃḍā dhyāna maṃtra
vande vāñchita kāmārthe candrārdhakṛtaśekharām।
siṃharūḍha़ā aṣṭabhujā kūṣmāṇḍā yaśasvinīm॥
bhāsvara bhānu nibhām anāhata sthitām caturtha durgā trinetrām।
kamaṇḍalu, cāpa, bāṇa, padma, sudhākalaśa, cakra, gadā, japavaṭīdharām॥
paṭāmbara paridhānāṃ kamanīyāṃ mṛduhāsyā nānālaṅkāra bhūṣitām।
mañjīra, hāra, keyūra, kiṅkiṇi, ratnakuṇḍala, maṇḍitām॥
praphulla vadanāṃcārū cibukāṃ kānta kapolām tugam kucām।
komalāṅgī smeramukhī śrīkaṃṭi nimnanābhi nitambanīm॥