माँ पर निबंध – Meri Maa Essay in Hindi
माँ पर निबंध माँ (Meri Maa essay in Hindi) की ममता, जीवन में उसके महत्व और भूमिका पर प्रकाश डालता है। “मेरी माँ” नामक यह निबंध बताता है कि मां ही बच्चे के लिए पहली गुरु है और वह जीवन का आधार है। पढ़ें विस्तार से यह निबंध–
मेरी माँ और प्रकृति
माँ को प्रकृति का पर्याय माना जाता है, क्योंकि जैसे प्रकृति हमसे बिना कुछ लिए फल, फूल, सब्जी, अनाज तथा अलग-अलग तरह के मौसम हमें प्रदान करती है उसी प्रकार माँ भी अपने बच्चों तथा परिवार से बिना कुछ लिए या किसी तरह की इच्छा प्रकट किए बिना सदैव उन्हें सुख देने की क्षमता रखती है तथा उनके सुख को ध्यान में रखकर हृदय से कार्य करती है।
कहा जाता है कि ईश्वर नहीं दिखता हैं इसलिए प्रकृति ने माँ के रूप में ईश्वर को धरती पर भेजा हैं और यह बात सत्य भी साबित होती है क्योंकि जब भी हम गिरते है या हमें चोट लगती है तब अधिकतर हमारे मुख से निकलने वाला पहला शब्द ‘माँ’ ही होता है तथा शिशु अवस्था में बच्चों द्वारा जिस शब्द का सबसे पहले उच्चारण किया जा है वह ‘माँ’ शब्द से ही शुरू होता है।
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माँ के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि वह स्वयं हमें नया जीवन देती है और मुश्किल से मुश्किल घड़ी में हमारा सहारा बनती है। संसार में प्रत्यके मनुष्य के व्यवहार तथा रिश्ते में परिवर्तन आ सकता है लेकिन एक माँ कभी नहीं बदलती और न ही उसके प्रेम में परिवर्तन आता है।
हमारी सफलता में पूरी दुनिया हमारे साथ होती है पर असफलता में ऐसा नहीं होता लेकिन एक माँ का अपने बच्चों की सफलता और असफलता दोनों में उनके साथ खड़े रहना यह सिद्ध करता है कि वह पृथ्वी-सी होती है इसलिए बिना किसी भेद-भाव के अपने बच्चों के साथ-साथ पूरे परिवार को अपने स्नेह भरे आँचल में समेटे रहती है, यही कारण है कि माता को श्रेष्ठ मित्र का दर्जा भी दिया जाता है। अब मेरी माँ पर निबंध में चर्चा करते हैं बच्चों के जीवन में माँ की क्या भूमिका है।
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बच्चों के जीवन में माँ की भूमिका
“माँ” शब्द दिखने में भले ही छोटा हो लेकिन इसका अस्तित्व संसार में विशाल रहा है। वह अपने सुख से पहले अपने बच्चों के सुख के बारे में सोचती है तथा संतान की आँखों में आँसू न आए इस बात को ध्यान में रखते हुए हमेशा उनकी ख़ुशी के लिए कार्यरत रहती है।
परिवार में प्रत्येक सदस्य हमसे नाराज़ हो सकता है लेकिन वह मात्र एक ऐसी सदस्य होती है जो अपने बच्चों से कभी नाराज़ नहीं होती, न उन्हें कभी अकेलापन महसूस होने देती है तथा खुद भूखे सो तो सकती है लेकिन बच्चों को भूखे नहीं रहने देती है। किसी रिश्ते को निभाने में कमज़ोर पड़ सकती है लेकिन जब बात बच्चों की हो या बच्चे किसी विपत्ति में पड़े हो तो वह झाँसी की रानी बनकर उनकी रक्षा के लिए खड़ी हो जाती है। यही कारण है कि सभी रिश्तों में से माँ के रिश्ते को सबसे ऊपर रखा जाता है तथा अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है।
बच्चे उम्र में कितने भी बड़े हो जाए माँ के वात्सल्य भरे प्रेम में कोई परिवर्तन नहीं आता उसके लिए युवा या युवती हमेशा गोद में पड़े उस मूक शिशु के समान ही होते हैं जिनको भूख लगती है या अन्य कष्ट होता है तो वह मात्र रो सकते है और माँ का हृदय उन्हें रोता देख उनको कष्ट मुक्त करने में लग जाता है। हम अपना दुःख दर्द भले ही सबसे छुपा लें लेकिन माँ से नहीं छुपा पाते क्योंकि दुनिया में एक माँ ही है जो बिना बताए अपने बच्चों के दुःख और दर्द को पहचान लेती है।
वह नहीं चाहती कि किसी भी वजह से उसके बच्चों को किसी भी प्रकार का दुःख पहुँचे तथा वह बच्चों की पसंद एवं नापसंद का सदा ध्यान रखती हैं; सुबह से रात तक वह उनकी खुशी का ध्यान रखते हुए घर से विद्यालय, विद्यालय से महाविद्यालय और महाविद्यायल से विश्वविद्याल एवं देश-विदेशों में अपने बच्चों के साथ उनके जीवन का सफ़र आसान बनाती है और सदैव उनका हौसला बढ़ते हुए उनके संघर्ष का साथी बनी रहती है फिर भी वह कभी भी बच्चों के सामने अपने थकान या दुःख को जाहिर नहीं होने देती है।
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प्रथम गुरु के रूप में माँ
गुरु तथा मार्गदर्शक का सबसे पहला दर्जा माँ को दिया जाता हैं, क्योंकि बचपन से ही माँ अपने बच्चों को सत्य की राह पर चलना, बिना फल की परवाह किए नेकी करना तथा संघर्ष से न डरना जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ देती हैं। अतः माँ पर निबंध (Maa Par Nibandh) में मां के इस पहलू की चर्चा बहुत आवश्यक है। जब बच्चा जीवन में कभी अपना रास्ता भटक जाता है तब वह उसे सद-मार्ग पर लाने का निरंतर प्रयास करती रहती है, कोई भी माँ अपने बच्चों को गलत कार्य करने से रोकती अवश्य है और यही शिक्षा जीवन भर काम आती है; जिससे एक बेहतर जीवन का निर्माण होता है।
जीवन में रोज़मर्रा के कार्य जैसे कि कपड़े पहनना, रास्ते पर नियमों का पालन करते हुए बचकर चलना, जूते का फीता बाँधना, दाँतों को ब्रश से साफ करना, भोजन करना आदि सिखाने के साथ-साथ प्रारभिक शिक्षा की नीव भी सबसे पहले माँ ही रखती है इसलिए उसके द्वारा दी गई शिक्षा हमारे जीवन में एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थान रखती हैं।
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परिवार का आधार माँ
एक औरत जन्म से रिश्तों के साथ बंधती जाती है। उसमें शिशु को जन्म देने तथा उसका लालन-पालन करने की अद्भुत शक्ति है; जिसके बाद उसे माँ के रूप में एक नया रिश्ता प्राप्त होता है, जिसे विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा सम्मान भी दिया जाता है। माता-पिता दोनों का ही बच्चों के जीवन निर्माण में बड़ा महत्त्व रहता है लेकिन एक माँ होना पिता होने से अत्यधिक कठिन जान पड़ता है।
वह सब रिश्तों को निभाते हुए अपनी बहुत सारी खुशियों का त्याग करती जाती है बेटी, बहू से लेकर माँ तक का सफ़र उसके लिए आसान नहीं होता अगर यह कहा जाए कि वह कभी खुद के लिए जीती ही नहीं है तो यह कहना गलत नहीं होगा क्योंकि वह अपनी पूरी ज़िन्दगी अपने परिवार तथा बच्चों के नाम कर देती है और उन्हीं की खुशी में अपनी खुशी मान लेती है।
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नैसर्गिक प्रेम
माँ जैसा ममत्व किसी रिश्ते में नहीं प्राप्त होता इसका उदाहरण रामायण तथा महाभारत जैसे पवित्र ग्रन्थों में देखने को मिल जाता है; राम से बिछड़ने के बाद उनकी माँ का हृदय जितना दुखी हुआ उतना किसी का नहीं, जो नैसर्गिक प्रेम कृष्ण को अपनी माँ से मिला वैसा वात्सल्य उन्हें किसी से नहीं मिला जिसको तुलसीदास तथा सूरदास जैसे महान कवियों ने अपनी रचनाओं में भी चित्रात्मक रूप में दर्शाया है। प्रसिद्ध रचनाकार अज्ञेय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ. गिल ने क्रमश: कहा है कि-
“माँ एक बार की जननी और आजीवन ममता है”
“पिता एक बार का जनक और आजीवन आदर्श है”
माँ नौ महीने शिशु को अपने कोख में रखकर विकसित करती है फिर जानलेवा पीड़ा को झेलकर एक शिशु को इस दुनिया में जन्म देती है और इसलिए यह भी सत्य है कि उस पीड़ा का कर्ज़ कोई भी नहीं उतार सकता है।
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वर्तमान समय में माँ
माँ पर निबंध आधुनिक परिप्रेक्ष्य की चर्चा के बिना अधूरा है। अगर आधुनिकता के सकारात्मक प्रभाव मिले तो बहुत सारे नकारात्मक प्रभाव भी मिल रहे हैं, इसने माँ की ममता को भी प्रभावित किया है आज-कल की भाग-दौड़ की ज़िंदगी में बच्चों को अपनी माँ से अलग रहना पड़ रहा हैं या माँ को बच्चों से दूर रहना पड़ रहा है क्योंकि हमें लगता है कि बेहतर शिक्षा और बेहतर भविष्य किसी विशेष शहर, प्रदेश या देश में रहकर ही प्राप्त हो सकती है एवं कही न कही ऐसी सोच से रिश्तों पर थोड़ा प्रभाव पड़ता ही है, वह प्रभाव मानसिक भी हो सकता है, शारीरिक भी और बाहरी भी हो सकता है।
जीवन में बच्चे बड़ी से बड़ी गलतियाँ करते है लेकिन माँ बड़ी सहजता से उन गलतियों को भूलकर अपने बच्चों को माफ़ कर देती है और परिवार को खुश देखने की चाहत हमेशा रखती है फिर भी आज-कल बहुत से बेटे अपनी माँ को वृद्धा-आश्रम में छोड़ आते है फिर भी वह उनकी खुशी की दुआ करती है और अकेले रहकर भी उन्हीं की बातें तथा उन्हीं के बारे में सोचती रहती है, उनका हर फ़ैसला आसानी से मान जाती है।
उसके दिल जैसा किसी का दिल नहीं है, वह हमेशा अपने बच्चों का कल्याण दिल से ही सोचती है। उनके चेहरे की उदासी उससे कभी सहन नहीं होती, वह उदासी के पीछे के कारण को जानकर उसका निवारण ज़ल्द से ज़ल्द करने की चाहत रखती है। अपने बच्चों को ज़िन्दगी की हर मार से बचाती है पर कभी-कभी बच्चे स्वयं को समझदार समझकर अपनी माँ से कुछ नहीं बताते तथा सारे दुःख और दर्द को छिपाने की कोशिश करते हुए स्वयं को इतना अकेला कर लेते है कि वह अवसाद के शिकार होते जाते, माँ से दूर किसी और जगह या दूर रहने के कारण कभी-कभी माँ उनके लिए कुछ नहीं कर पाती इसलिए हर वह बात जो आंतरिक रूप से तथा मानसिक रूप से परेशानी का कारण बने उसे माँ से अवश्य बताना चाहिए क्योंकि एक वही है जो हमें सबसे बेहतर जानती है तथा हमारा सबसे अधिक भला चाहने वाली भी वही है।
सब छोड़कर जा सकते हैं लेकिन वह जीवन भर हमारा साथ नहीं छोड़ती और पग-पग पर हमारा सहारा बनी रहती है। जितना माँ अपने बच्चों की खुशी के लिए करती है उतना इस दुनिया में कोई नहीं कर सकता इसलिए हमें अपनी माँ को वही स्नेह देना चाहिए जो उनसे हमें प्राप्त होता रहा है। अब धीरे-धीरे महिलाएँ आर्थिक रूप से मज़बूत होने लगी हैं, इस कारण से उनके पास अपने निजी जीवन के लिए बहुत कम समय बचता है लेकिन फिर भी एक माँ इस प्रयास में लगी रहती है कि वह अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय दे पाए साथ ही उनकी पसंद-नापसंद को ध्यान में रखते हुए उनके लिए तथा उनके भविष्य के लिए कुछ बेहतर कर पाए इसी चाहत के साथ वह हर दिन की शुरूआत करती है।
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माँ पर निबंध – निष्कर्ष
जननी के बिना इस विश्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती क्योंकि वह ही मनुष्य के जीवन का आधार स्तंभ है तथा हर छोटी-बड़ी समस्याओं से अपने अंश को बचाती तथा गलतियों को सुधारने के लिए अपना साथ बनाए रहती है। हम जीवन में कितने ही बड़े उपाधि धारक या शिक्षित क्यों न हो जाए फिर भी इस दुनिया में हमारी माँ ही हमारा पहला प्यार, पहला गुरु और पहला मित्र होती हैं।
हमें उम्मीद है कि “माँ पर निबंध” अथवा “मेरी माँ” नामक यह निबंध आपके लिए उपयोगी साबित होगा। यदि आपको लगता है कि इस निबन्ध में कुछ बिंदु छूट गए हैं, तो कृपया हमें टिप्पणी करके अवश्य अवगत कराएँ। हम उन्हें शीघ्र ही इस निबंध में जोड़ने का प्रयत्न करेंगे।
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